जिम कॉर्बेट ने बनवाया था फतेहपुर में डाक बंगला

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जिम कॉर्बेट ने बनवाया था फतेहपुर में डाक बंगला

लक्ष्मण सिंह बटरोही 

हल्द्वानी-रामनगर मोटर मार्ग पर जंगलात के पुराने रास्ते में हल्द्वानी से करीब छह-सात किलोमीटर बाद एक दुराहा पड़ता है जिसका बांया हिस्सा लामाचौड़ होते हुए रामनगर के लिए जाता है और दायाँ बेल-बसानी और पटवाडांगर होते हुए नैनीताल से मिलता है. साल और शीशम के कीमती पेड़ों से घिरे इस वन-प्रांतर में अंग्रेजों के ज़माने में बना बावन खम्बों का एक पुल है जिसे ‘बावन डाठ’ के नाम से पुकारा जाता है. घने जंगल के बीच से गुजरने वाले इस रास्ते को लेकर वन-विभाग की ओर से अनेक बार आपत्ति उठाई गई और जब प्रभावशाली लोगों की दखल के बाद पक्का रास्ता बना तो आरम्भ से ही यह मार्ग विवादों के घेरे में रहा है. यही कारण है कि कई वर्षों से कुछ किलोमीटर का रास्ता अभी भी कच्चा है और प्रशासन की इजाजत की बाट जोह रहा है. रास्ते की खासिसत यह है कि इस रास्ते से हल्द्वानी-नैनीताल की सड़क-मार्ग से दूरी सिर्फ पच्चीस किलोमीटर रह जाएगी और यह रास्ता मल्लीताल के कुमाऊँ विवि के प्रशासनिक भवन होते हुए सूखाताल के बस अड्डे में मिलेगा.  

फतेहपुर में जहाँ पर से रास्ता रामनगर और नैनीताल के लिए अलग होता है वह तिराहा मेरे आवास ‘बिशन कुटी’ के गेट से लगा लगा हुआ है. हमारे घर से चार सौ मीटर आगे घने जंगल में वन विभाग का एक डाक बंगला है जिसे प्रसिद्ध शिकारी और पर्यावरण-प्रेमी जिम कॉर्बेट ने 1930 में अपनी देख-रेख में बनवाया था. कई एकड़ के व्यास में फैला यह बंगला इस पूरे इलाके में दूर-दूर तक मशहूर है. बड़े-बड़े सरकारी मुलाजिम इसी बंगले में ठहराए जाते थे और पुराने वक़्त में तो शिकार-प्रेमियों की भी यह पसंदीदा जगह थी. जैसा कि हिन्दुस्तानियों की प्रकृति है, सरकार का अंकुश ढीला होने के बाद यह बंगला अरसे तक अफसरशाहों और नव-धनाड्यों का पिकनिक-स्पॉट बना रहा, मगर बाद में सरकार की ओर से कुछ सख्ती बरते जाने पर इसका दुरुपयोग कुछ कम हुआ है.

पिछले कुछ वर्षों में फतेहपुर गाँव डाक-बंगले की बगल से गुजरने वाली मुख्य सड़क के गिर्द सिमट आया है जो अब एक छोटे-से गाँव की शक्ल ले चुका है. यह गाँव अब हल्द्वानी के उपनगर  बनने की ओर अग्रसर है. रास्ते के गाँव मुखानी, कुसुमखेडा, ऊँचापुल और कठघरिया तो बन ही चुके हैं, यह नया फतेहपुर भी देर-सवेर क़स्बा बन जायेगा. बहुत मामूली किराये पर इस जगह से हर दो-चार मिनट में ऑटो चलते हैं, यदा-कदा रामनगर-काशीपुर मार्ग पर बसें भी जाती हैं और खुद के वाहनों से तो खूब सुविधाजनक आवाजाही है ही. जब से कमालुवागाँजा वाला बायपास बना है, बसें फतेहपुर होते हुए नहीं जातीं, मगर पहले यही मुख्य रास्ता था.

जिम कॉर्बेट ने अपने यात्रा-संस्मरणों में फतेहपुर होते हुए नैनीताल जाने वाले इस पैदल रास्ते का अनेक बार ज़िक्र किया है. कालाढूंगी (जिसे उन्होंने ‘नयी हल्द्वानी’ नाम से बसाया था) के घर से वह पैदल अपने बड़े भाई टॉम के साथ आसपास के जंगलों में शिकार खेलने जाते थे और बाद में जब भी उन्हें नैनीताल के अपने घर ‘गर्नी हाउस’ जाना होता, फतेहपुर होते हुए ही जाते थे. इस पैदल रास्ते का जिम ने अपने यात्रा-संस्मरणों में खूब जिक्र किया है.

अच्छी बात यह है कि रिज़र्व फ़ोरेस्ट की श्रेणी में आने के कारण बंगला अभी बचा हुआ है और भू-माफ़िया की कुटिल नज़रों में नहीं चढ़ा है. अन्यथा जिम कॉर्बेट का नाम ही इसके मनमाने दोहन के लिए काफी था. अब हल्द्वानी-नैनीताल मोटर मार्ग बन जाने के बाद अनेक आशंकाएँ जन्म लेने लगी हैं और इस सुरक्षित वन-क्षेत्र को बचा पाना सवालों के घेरे में आता जा रहा है.

जंगल का घनत्व तो कम हो ही रहा है, हमारे देखते-देखते कई मूल्यवान पेड़ गायब हो गए हैं. विशाल आकार के कई ऐसे पेड़ जो रहस्यमय आकृतियाँ बनाते हुए जंगल के जीवन की तमाम फंतासियों को जन्म देते थे, गायब होती जा रहे हैं. पशु-पक्षी, जंगली जानवर, सरीसृप, भौरे-तितलियाँ और दुर्लभ प्रजातियों के जीव, सभी नष्ट होने की कगार में हैं.  

यह एक अलग चिंता का सबब है कि इस के लिए कौन जिम्मेदार है और कैसे इस सांस्कृतिक विरासत को समाज की नयी पीढ़ी को सौंपा जा सकता है; मगर सिर्फ एक पक्ष को जिम्मेदार ठहराने से भी काम नहीं चलने वाला है. अपनी किताब ‘मेरा हिंदुस्तान’ की शुरुआत जिम कॉर्बेट बड़े भावुक अंदाज़ में यह कहते हुए करते हैं कि ‘मैं अपने प्यारे नैनीताल का पक्का वाशिंदा हूँ और मुझे इस इलाके से बेइंतहा प्यार है.’ उसकी इस बात का सम्मान करते हुए हमें उसकी विरासत की सुरक्षा तो करनी ही चाहिए. वरना इतिहास हमसे कभी-न-कभी तो जवाब मांगेगा ही.  

साभार फेसबुक से 

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