अंबरीश कुमार
लखनऊ पानी पानी हो गया है . पूरे शहर में पानी भर गया है .चारबाग स्टेशन से लेकर गोमती नगर तक. हाल में ही हुई बरसात में बंगलूर शहर पानी पानी हो गया.इतना पानी की नाव चलने लगी.इससे पहले मुंबई ,दिल्ली और कोलकाता में भी यह सब देखने को मिल चुका है.सितंबर के मध्य में हुई बरसात के चलते उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सारे स्कूल कालेज बंद कर दिए गए . दस लोगों को जान भी गई.मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर का भी बुरा हाल नजर आया . यह सब क्यों होने लगा है.दरअसल शहरीकरण और विकास के नाम पर हमने शहरों का ड्रेनेज सिस्टम यानी जल निकासी व्यवस्था को बर्बाद कर दिया है. ड्रेनेज सिस्टम के साथ ही बेतरतीब तरीके से बनाई गई ऊंची ऊंची सड़के बरसात के समय बांध में बदल जाती है.तीसरी महत्वपूर्ण बात खादर की उस जमीन की है जिसपर अंधाधुंध निर्माण कर दिया गया है . खादर की जमीन नदियों के विस्तार का हिस्सा होती है ताकि जब नदी बढ़े तो पानी इसके दायरे में रहे . यही स्थिति ताल तालाब की होती है जिसे हम पात कर निर्माण कर देते हैं. दिल्ली का नया और अत्याधुनिक हवाई अड्डा टर्मिनल तीन तालाब पाट कर ही जो इलाके बनाए गए उसी का हिस्सा है . लखनऊ में हाई कोर्ट का नया भवन कठौता तालाब के एक हिस्से को पाटकर गोमती नगर में बनाया गया है जो बरसात में पानी से भर जाता है. ज्यादातर शहरों में ताल तालाब पाट तो दिए गए पर यह ध्यान नहीं रखा गया कि तालाब की ढाल की तरफ जो पानी स्वभाविक रूप से बहता था वह जाएगा कहां ?लखनऊ का सबसे पाश माना जाने वाला इलाका गोमती नगर तो बसा ही गोमती नदी के खादर की जमीन पर है.
ज्यादातर शहरों से जो नदियां निकलती हैं उनके खादर की जमीन पर निर्माण कर ड्रेनेज सिस्टम को बाधित किया जा चुका है. जिन शहरों में नदिया नहीं है ताल तालाब हैं वहां तालाब के रास्ते में आवासीय परिसर बना दिए गए है . चेन्नई में भी बरसात में इसी वजह से काफी ज्यादा जल भराव होने लगा है. बंगलूर में भी यही दोहराया गया. दूसरे शहर के बीच से जो नदी निकलती है उसके दोनों ओर बांध बना कर रिवर फ्रंट बनाने की जो नई परिपाटी शुरू की गई है वह और ज्यादा खतरनाक है. इससे एक तो नदी को नहर में बदल कर उसका इको सिस्टम खत्म कर दिया जाता है जिसका असर नदी में पालने वाले जीव जंतुओं पर पड़ता है तो दूसरी तरफ शहर से जो पानी नदी में आसानी से बह जाता था उसका रास्ता बंद हो जाता है. दरअसल शहरों में पिछले दो दशक में जो भी नई सड़क बनाई गई उसकी वजह से शहर का ड्रेनेज सिस्टम बुरी तरह प्रभावित हुआ है. एक उदाहरण बड़े ताल तालाब के शहर महोबा का हैं जहां चंदेलों के बनाए बड़े तालाब का है. ये तालाब न सिर्फ आसपास की बड़ी आबादी की पानी की जरूरत को पूरा करते हैं बल्कि बरसात का सारा पानी भी ये ले लेते है. पर बाद में जो ऊंची सड़के बनी उससे इस शहर का ड्रेनेज सिस्टम भी प्रभावित हो गया. यह उदाहरण बताता है कि किसी भी निर्माण के समय हम ड्रेनेज सिस्टम का जरा भी ध्यान नहीं रखते हैं. इस वजह से जरा स भी तेज बरसात हो तो शहर डूबने लगते हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह बरसात अब कहीं भी कभी भी हो सकती है. इसलिए बरसात को कोसने की बजाए हमे शहरों के ड्रेनेज सिस्टम को लेकर नए सिरे से सोचना चाहिए.
साथ ही शहरों के बीच से गुजरने वाली नदियों को बांधने की परिपाटी खत्म करनी चाहिए ताकि शहर का ड्रेनेज सिस्टम बेहतर हो सके . जहां पर बांध बन गए हैं वहां पानी निकासी की कोई नई व्यवस्था पर ध्यान देना होगा.इसके अलावा ताल तालाब आगे से न पाटे जाएं इसका भी ध्यान रखना होगा ताकि शहरों का पानी आसानी से वहां चल जाए . अभी भी बहुत से शहरों में नदियों के खादर की जमीन बची हुई है अगर अभी से सरकार इस दिशा में कुछ ठोस करे तो भविष्य में अन्य शहर तो बच ही जाएंगे. साथ ही समाज की भी जिम्मेदारी है यह समझना चाहिए . जब भी ऐसे निर्माण होते हैं तो समाज से कोई आवाज क्यों नहीं उठती . खासकर ताल तालाब पाटने के खिलाफ. हर बात की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं होती समाज की भी तो होती है. अब समाज की तो कोई बात ही नहीं करता है जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है .
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