जूनागढ़ में भी चीतों को लाया गया था

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जूनागढ़ में भी चीतों को लाया गया था

आलोक कुमार

गुजरात.बुरे फंसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.जब 2009 में नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम थे, तब वे दो नर और दो मादा तेंदुआ लाए थे और उन चारों तेंदुओं की मौत हो गई थी.इस संदर्भ में गुजरात सरकार के 2009 में किए गए प्रयासों को याद करते हुए, राज्य के वन विभाग के अधिकारियों ने कहा कि दो जोड़ी चीते सिंगापुर प्राणी उद्यान से एक एशियाई शेर और दो शेरनी के बदले लाए गए थे.उन्होंने कहा कि 24 मार्च 2009 को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक सार्वजनिक समारोह के बाद जूनागढ़ में देश के सबसे पुराने सक्करबाग प्राणी उद्यान में इन चीतों को लाया गया था.

सक्करबाग प्राणी उद्यान के सहायक निदेशक नीरव मकवाना के एक नोट के अनुसार, जोड़े 2012 तक मिलन करने में नाकाम रहे और स्कॉटलैंड के एक विशेषज्ञ भ्रूणविज्ञानी की देखरेख में प्रजनन के सहायक प्रयास के प्रस्ताव को लागू नहीं किया जा सका. नोट में कहा गया है कि चीतों के दो जोड़े मार्च 2009 में अदला-बदली कार्यक्रम के तहत सिंगापुर प्राणी उद्यान से लाए गए थे.दरअसल, (सक्करबाग प्राणी उद्यान में) कुशल प्रबंधन और पशु चिकित्सा देखभाल के कारण, जोड़े 12 साल की उम्र तक जिंदा रहे. सिंगापुर प्राणी उद्यान ने 2006 में अफ्रीकी चीतों के बदले सक्करबाग प्राणी उद्यान से एशियाई शेरों को लाने का प्रस्ताव रखा था और उस वर्ष अगस्त में केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा इसे मंजूरी दी गई थी.

         

जूनागढ़ की मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) आराधना साहू ने कहा, ‘63 साल के अंतराल के बाद, मार्च 2009 में दोनों जोड़े एक शेर और दो शेरनी के बदले देश में पहुंचे. बारह साल की उम्र के बाद प्राकृतिक कारणों से दो जोड़े की मृत्यु हो गई. आखिरी चीते की मृत्यु 2017 में हुई.’


24 मई, 2009 को जूनागढ़ के चिड़ियाघर में दो जोड़े को लाने के लिए आयोजित कार्यक्रम में मोदी ने संवाददाताओं से कहा था कि यह देश में चीतों के सफलतापूर्वक प्रजनन कराने के राज्य सरकार के प्रयासों का हिस्सा है.नोट में कहा गया कि भारत से विलुप्त होने वाले एशियाई चीतों की आधिकारिक घोषणा 1952 में की गई थी. साथ ही, इसमें कहा गया कि इस प्रजाति के चीते अब केवल ईरान में हैं.नोट में कहा गया कि 1980 के दशक में, भारत के कई प्राणी उद्यानों में विदेश के प्राणी उद्यानों से अफ्रीकी चीते लाए गए, लेकिन उनके आहार, पर्यावरण और प्रजनन संबंधी अन्य बाधाओं के कारण उनकी संख्या बढ़ाने में कामयाबी नहीं मिली.


इसी को लेकर चीता की भारत वापसी के बाद सियासी बयानबाजी का दौर तेज हो गया है , 70 साल में देश चीता लेन के कोई प्रयास नहीं हुए संबंधी प्रधानमंत्री के बयान पर पलटवार करते हुए राज्यसभा सांसद शक्तिसिंह गोहिल ने गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि, प्रधानमंत्री किसी राजनीतिक दल का प्रतिनिधि नहीं है, वह देश का प्रधानमंत्री है.हम गर्व से कह सकते हैं कि पिछले सभी प्रधानमंत्रियों ने कुर्सी की गरिमा को बनाए रखा है.कम से कम आप तो नहीं हैं.


गुजरात विधानसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोहिल ने कहा कि “मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारे प्रधान मंत्री ने चीता के नाम पर जो टाइपो किया था और उस टाइपो में उन्होंने जो झूठ बोला था, उससे आज मैं दुखी हूं. हम सभी खुश हैं कि हमारी जमीन पर रहने वाला तेंदुआ हमारी जमीन पर आ गया.

सिंगापुर से चार चीते (दो नर और दो मादा) लाए गए और बदले में हमारे भी सिंह सिंगापुर को दे दिए गए.कहा गया कि मैं यह तेंदुआ लाया हूं.ये तेंदुआ बहुत प्रजनन करेंगे, आबादी बहुत बढ़ेगी.तेंदुओं को देखने के लिए दुनिया भर से लोग गुजरात आएंगे और रोजगार में काफी वृद्धि होगी. उसके बाद किसी ने इस तेंदुए का चेहरा नहीं देखा और चार तेंदुओं में से कोई भी अब जीवित नहीं है और अब वे झूठ क्यों बोल रहे हैं कि 72 साल में पहली बार मध्य प्रदेश में एक तेंदुआ आ रहा है?


प्रधानमंत्री ने कहा कि तेंदुआ लाने के लिए आज तक कोई प्रयास नहीं किया गया, यह उनका एक और झूठ है. दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी और यू.पी.ए. सरकार ने हमारे देश में तेंदुए को लाने की कोशिश की.सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने विशेषज्ञों की एक समिति बनाई और उस समिति में वन्यजीव संस्थान के निदेशक रंजीत सिंह को अध्यक्ष बनाया गया.डी.जी.पी. वन्यजीव धनंजय मोहन और डी.आई.जी. सहित तीन व्यक्तियों की एक समिति.

इस विषय पर अन्य लोगों और विदेशों के विशेषज्ञों के साथ चर्चा करने के बाद, यह समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची कि गुजरात का बन्नी-कच्छ क्षेत्र पूरे देश से चीता लाने के लिए सबसे अच्छी जगह है और इसे गुजरात के लिए गर्व की बात कहा जा सकता है.भारत की कांग्रेस सरकार ने बिना किसी भेदभाव के गुजरात में भाजपा सरकार के बावजूद एक प्रस्ताव भेजा और केंद्र सरकार राज्य सरकार को पूर्ण सहायता प्रदान करेगी और आधिकारिक तौर पर इस परियोजना को स्वीकार करने और चीता के लिए एक अभयारण्य बनाने के लिए कहा.

बार-बार यह कहने के बावजूद कि वर्तमान प्रधानमंत्री और तत्कालीन मुख्यमंत्री ने गुजरात के कच्छ में तेंदुए के लिए इस परियोजना को स्वीकार क्यों नहीं किया और समिति के अध्यक्ष रंजीत सिंह ने दुख के साथ कहा कि केंद्र सरकार की सभी मदद की तैयारी के बावजूद , इस परियोजना को स्वीकार नहीं किया गया था. तो हम उस तेंदुए में निवास नहीं कर सकते.


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