आचार्य विनोबा भावे को याद किया

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आचार्य विनोबा भावे को याद किया

आलोक कुमार

श्योपुर.विनोबा भावे एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता और भूदान आंदोलन के प्रणेता थे, जिनका मूल नाम विनायक नारहरी भावे था। आचार्य विनोबा भावे का जन्म 11 सितम्बर 1895 को रायगढ़, ब्रिटिश भारत में हुआ और उनकी मृत्यु 15 नवम्बर 1982 को पनवार, वर्धा में हुई। इन्हे भारत का राष्ट्रीय अध्यापक और महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी का दर्जा प्राप्त हुआ.

      आचार्य विनोबा भावे का जन्मदिन के अवसर पर आज सोमवार को महात्मा गांधी सेवा आश्रम श्योपुर में 50 गावों के मुखिया ने भूदान आंदोलन के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे जी की जयन्ती  मनाई गयी.आचार्य विनोबा भावे को सभी वर्गो के लोगो ने याद किया.बाबा विनोबा के  कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रणसिंह परमार थे.सहरिया समाज की चौरासी पंचायत के अध्यक्ष रामनाथ चौहान,जिला अध्यक्ष एकता परिषद गंगाराम ,समाजसेवी कैलाश पाराशर जी ,हबीब भाई ,छोटेलाल सेमरिया, ब्रजमोहन, घनश्याम, रामचरण, अजय, जी सहित लगभग 20 गावों के मुखिया ने अपने विचार रखे.

      इस अवसर पर मुख्य अतिथि एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रणसिंह परमार ने कहा कि सन् 1958 की बात है, जब तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव के हरिजनों ने विनोबा भावे से अपने जीवन यापन के लिए 80 एकड़ भूमि देने का अनुरोध किया तब आचार्य विनोबा भावे ने जमींदारों से आगे आकर गरीबों को भूमि दान करने के लिए कहा इसे भूदान आंदोलन कहा गया.

     उन्होंने कहा कि इसी से भूदान आंदोलन की शुरुआत हुई. भूदान का अर्थ भूमि को उपहार में दे देना होता है.  इस आंदोलन से 44 लाख एकड़ भूमि दान में ली और उससे लगभग 13 लाख गरीबों की मदद की। इस भूदान आंदोलन से उन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा.

          उन्होंने कहा कि आचार्य विनोबा भावे गांधीजी द्वारा चलाए गए सभी आंदोलनों में भाग लिया.असहयोग आंदोलन में उन्होंने सभी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और उनका साथ छोड़ने का आह्वान किया.इनको गांधीजी ने 1940 में पहले सत्याग्रही के रूप में भी चुना गया.इन्हे स्वतंत्रता संग्राम के लिए 1930 से लेकर 1940 में कई बार जेल में जाना पड़ा.

इस कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन जयसिंह जादौन ने किया.

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