शिवकांत
ग्लासगो में जमा हुए दुनिया भर के देश जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए पैट्रोल, डीज़ल और कोयले के प्रयोग को बंद करने पर माथापच्ची कर रहे हैं. पर भारत ने डीज़ल और पैट्रोल को सस्ता करने के लिेए केंद्र और राज्य सरकारों के शुल्क घंटा लिए हैं. इससे महंगाई कम होगी, अर्थव्यवस्था की रफ़्तार बढ़ेगी और ग़रीबों को थोड़ी राहत मिलेगी.
लेकिन साथ ही डीज़ल और पैट्रोल की खपत भी बढ़ेगी और पहले से गैस-चेंबर बने भारत के सारे बड़े-छोटे शहरों की आबोहवा और ख़राब हो जाएगी. साँस की बीमारियों से लोग उसी तरह मरने लगेंगे जैसे कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन के बिना मरने लगे थे. आज शुल्क घटाने और डीज़ल सस्ता करने के लिए जिन सरकारों की जयकार हो रही है उन्हीं के मुर्दाबाद के नारे लगेंगे.
मैं महंगाई और डीज़ल के ऊँचे दामों की हिमायत नहीं कर रहा. केवल उसके परिणाम की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूँ. जब तक डीज़ल, पैट्रोल और कोयला सस्ता रहेगा तब तक लोग बिजली से चलने वाले वाहनों को ख़रीदने की ज़हमत क्यों करेंगे? किसानों के लिए डीज़ल सस्ता रखने का परिणाम क्या हुआ? भारत की कार कंपनियों ने सारी महँगी और बड़ी कारें डीज़ल की बना दीं.
हम सब जानते हैं डीज़ल का प्रदूषण पैट्रोल से भी कई गुणा घातक है. फिर भी किसानों के लिए सस्ते डीज़ल की आड़ में लोग डीज़ल की कारें और दूसरी गाड़ियाँ ख़रीदते चले गए. इससे सिद्ध होता है कि लोग अपने फ़ैसले जलवायु की चिंता के आधार पर नहीं करते. अपनी जेब और किफ़ायत के आधार पर करते हैं. यदि आपको पैट्रोल, डीज़ल और कोयले से पिंड छुड़ाना है तो इन्हें महँगा रखना होगा और इनके मुक़ाबले बिजली से चलने वाले वाहनों को सस्ता और किफ़ायती करना होगा.
बिजली भी कोयले और गैस के बजाए सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन, पवन, पानी और परमाणु से बनानी होगी. इसके लिए भारत ने 2070 का लक्ष्य रखा है. भारत को अभी आर्थिक विकास करना है जिसके लिए बिजली और तेल की ज़रूरत है. लेकिन जीने के लिए साफ़ हवा और पानी की भी तो ज़रूरत है. जब आप साँस ही नहीं ले पाएँगे. या लेते ही बीमार होकर मरने लगेंगे. तो ऐसे विकास का क्या करेंगे? गंदी हवा और पानी की कमी से नहीं तो तूफ़ान, भूस्खलन, अकालवृष्टि और सूखे से मर जाएँगे. फ़ैसला आपका है.फोटो साभार गार्जियन
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