अंबरीश कुमार
उतराखंड में तीन दिन की भारी बरसात में इस बार जैसी तबाही हुई वैसी पहले नहीं हुई थी खासकर नैनीताल जिले के भीमताल ,भवाली ,रामगढ़ ,सतबुंगा, नथुआखान ,भटेलिया और मुक्तेश्वर
जैसे इलाकों में . इसकी दो तीन वजहें साफ दिखाई पड़ रही है . ये वे इलाके हैं जहां बीते दो दशक में काफी ज्यादा निर्माण हुआ है और बेतरतीब निर्माण हुआ है . क्योंकि ये ऊंचाई वाले इलाके है जहां जलवायु परिवर्तन के बाद भी मौसम ठंढा रहता है . इन इलाकों में ज्यादातर बाग बगीचे हैं जिसमें सेब आड़ू खुबानी और नाशपाती होता है . यह उतराखंड की फल पट्टी के नाम से भी मशहूर है . बाग बगीचों की जगह अब बड़ी बड़ी कोठी और भवन बन रहे हैं . घर कोठी और सड़कों का जाल बढ़ता जा रहा है जिसकी वजह से कई जगह पानी के परंपरागत स्रोत न सिर्फ बंद कर दिए गए या उन्हे इधर उधर घुमा दिया गया बल्कि ड्रेनेज सिस्टम को बंद कर निर्माण किया गया .
इन इलाकों में ज्यादातर वे घर टूटे या बहे हैं जो पानी के रास्ते में आए . आप तल्ला रामगढ़ से भीमताल तक देखें तो यह नजर आएगा . जबकि जंगल वाले इलाकों में बहुत कम तबाही हुई है .
दरअसल इस बार की भारी बरसात में पहाड़ के बहुत से ऐसे जल स्रोत भी खुल गए जो काफी समय से बंद थे या जिन्हे बंद कर दिया गया था . पहाड़ में बहुत से लोगों ने नदी ,नाले ,नौले और गंधेरों के आस पास भी निर्माण करा रखे है . एक वजह शहरी जमात के लिए पानी का दृश्य का आकर्षण भी है . रिवर व्यू एपार्टमेंट की तर्ज पर . पर नदी या पानी के स्रोत के आसपास निर्माण करते हुए जो सावधानी बरतनी चाहिए थी उसे नहीं बरता जाता है . इसका खामियाजा भी कई जगह भुगतना पड़ा है . बाग बगीचों की कच्ची जमीन पर जहां भी लोगों नें सघन निर्माण किया और भारी भरकम रिटेनिंग वाल दी वह भारी बरसात में इमारत और पत्थर की भारी दीवार का बोझ नहीं सह सकी और धंस गई . कई जगह सड़क धंसी तो कई जगह घर मकान दरक गए .
दरअसल पानी की निकासी यानी ड्रेनेज सिस्टम को बंद कर निर्माण करने की वजह से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है. मैदानी शहरों में तो पानी इधर उधर से भले निकल जाए पर पहाड़ में पानी का तेज बहाव ढलान वाले घरों की मिट्टी को काट देता है जिससे घरों को खतरा पैदा हो जाता है .
बीते दो दशक में आभिजात्य वर्ग ने पहाड़ी अंचल में जो जमीन ली और जो निर्माण कराया दोनों में सावधानी नहीं बरती गई . फिर और भी लोगों ने आसपास निर्माण किया और यह समस्या बढ़ी . पहाड़ के पुराने निर्माण में जिन बातों का ध्यान रखा जाता था उनका ध्यान मैदान के लोगों ने नहीं रखा . पानी के स्रोत का भी और पानी की निकासी यानी ड्रेनेज सिस्टम का भी . दूसरे पहाड़ पर पहले छोटे छोटे घर होते थे अब जो निर्माण हो रहे है वे काफी बड़े होते हैं . होटल और रिसार्ट तो और भी बड़े कमरे बाथरूम और लान आदि बना रहे हैं . ज्यादातर इलाकों में पहले नक्शा पास कराने की भी जरूरत नहीं थी जिससे बेतरतीब निर्माण और ज्यादा हुए .
फिर अगर किसी ने ऐसी जगह बाग बगीचे की जमीन ले ली जहां वाहन नहीं जा पाता है तो उसने निजी सड़क भी बनवा दी . कई जगह यह सड़क दो तीन किलोमीटर लंबी भी होती है . पहाड़ पर सड़क बनाने के लिए पहले जो सावधानी बरती जाती थी अब वह सावधानी भी नहीं बरती जा रही है . सरकारी सड़क तो जेसीबी मशीन से पहाड़ काट कर बना दी जाती है या फिर बारूद लगा कर पहाड़ तोड़ा जाता है . इससे पहाड़ कमजोर होता है और भारी बरसात में दरक भी जाता है . निजी रूप से जो सड़क बनाते है वे भी यह ध्यान नहीं रखते कि सड़क का भार पहाड़ सहन कर पाएगा या नहीं खासकर बाग बगीचे की कच्ची जमीन वाला पहाड़ . इस बार यही हुआ . बड़े पैमाने पर सड़क धंस गई और पानी के स्रोत के आस पास के भवन ध्वस्त हो गए . यह सब पहाड़ की प्रकृति को समझे बिना किए गए निर्माण की वज से हुआ .
दूसरे पहाड़ी इलाकों में जहां जहां जंगल तेजी से काटे गए है वहां के पहाड़ ज्यादा कमजोर हुए और भारी निर्माण की वजह से धंस गए . फिर पानी के स्रोत को दबाने से यह समस्या कितनी विकराल हुई इसका उदाहरण भीमताल जैसी घनी आबादी के बीच में ऊपर की ओर गोरखपुर तिराहे की तरफ जाती सड़क के दोनों ओर रहने वाले लोगों ने भुगता . तीन दिन की भारी बरसात में यह सड़क एक झरने में बदल गई . इस सड़क पर इतना मलबा आया जो हफ्ते भर बाद भी साफ नहीं हो पाया . यह जल स्रोत के आगे ही घना निर्माण कर दिया गया . दरअसल जलवायु परिवर्तन के चलते अतिवृष्टि और बादल फटने की घटनाएं तो बढ़ ही रही हैं पर अगर सावधानी बरती जाए तो इनका भी मुकाबला किया जा सकता है . घर मकान एपार्टमेंट आदि के निर्माण के समय अगर जल स्रोत और पान की निकासी का ध्यान रखा जाए तो घर भी सुरक्षित रहेगा और लोगों की जान भी बच जाएगी . इस बार की आपदा में सौ से ज्यादा लोगों की जान जाने आशंका है तो बड़ी संख्या में नए बने घर ध्वस्त हो गए हैं . ऐसे में आगे के लिए लोगों को सोचना चाहिए .
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