अंबरीश कुमार
समाजवादी चिंतक डा राम मनोहर लोहिया एक यात्रा में दक्षिण भारत की एक नदी में स्नान कर रहे थे.वहां मौजूद एक मछुवारे ने उनसे पूछा ,आप का मुलुक किस नदी के किनारे है ? अचानक पूछे इस सवाल से लोहिया कुछ देर के लिए हैरान रह गए फिर जवाब दिया ,मैं सरयू का पुत्र हूं.मछुवारे ने मुस्करा कर कहा ,अच्छा राजा रामचंद्र के गांव के हो.इस घटना का जिक्र लोहिया ने अपनी एक टिपण्णी में किया था. इससे पता चलता है नदियों से लोगों का क्या रिश्ता होता था.नदियों के किनारे ही विश्व की कितनी सभ्यताएं विकसित हुई.पर पिछले सिर्फ चार पांच दशक में नदियों का क्या हाल हो गया है इसके दो उदाहरण हाल के हैं.उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गोमती नदी हरी हरी दिखने लगी तो लोग चौंक गए.सोशल मीडिया पर हरी होती गोमती के बहुत से चित्र दिखाई पड़े.इसी दौर में बनारस में गंगा का पानी हरा हो गया तो सभी चिंतित हो उठे.
आदिगंगा मानी जाने वाली गोमती के पानी पर इतनी ज्यादा जलकुंभी हो गई थी कि कहीं पानी ही नहीं दिख रहा था.वैसे भी गोमती नदी में जब जलकुंभी नहीं थी तो भी इस नदी का पानी नहाने लायक तक नहीं बचा था.लखनऊ में वर्षों गोमती नदी की मछली कोई नहीं खाता है क्योंकि इसका पानी बहुत ज्यादा प्रदूषित हो चुका है.लखनऊ में घाघरा नदी से पकड़ी गई मछली बिकती है या फिर माताटीला ताल से लेकर आसपास के ताल तालाब की मछली आती है.आंध्र प्रदेश से भी मछली यहां आती है तो समुद्र की भी.पर लखनऊ के बीच बहने वाली गोमती की मछली नहीं मिलेगी.मछली तो कुछ हद तक साफ़ पानी में ही रह पाती है अगर पानी बहुत ज्यादा प्रदूषित हुआ तो मछली नहीं मिलेगी. इसलिए किसी नदी में अगर मछलियां बची हैं तो समझ लें अभी उसका पानी पूरी तरह प्रदूषित नहीं हुआ है.गुजरात की दमन गंगा इतनी प्रदूषित हुई कि इस नदी से मछली एक दशक पहले ही गायब हो चुकी है.और अब देश की कई नदियां इसी दिशा में जा रही हैं.
गोमती नदी में जलकुंभी इस नदी की बदहाली का संकेत और संदेश दोनों दे रही है.दरअसल जलकुंभी से पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे मछलियों के साथ अन्य जलीय वनस्पतियों और जीवों का दम घुटने लगता है.यह पानी के बहाव को भी 20 से 40 फीसद तक कम कर देती है.जिससे नदी का पानी एक तरह से ठहर जाता है.और अगर चलता हुआ पानी ठहर जाए तो वह पानी किसी काम का नहीं रहता.गोमती का पानी तो लखनऊ पहुंचने से पहले ही काफी प्रदूषित हो चुका होता है.पीलीभीत से निकलने वाली गोमती में बहुत सी चीनी मिलों और शराब के कारखानों के कचरे के साथ सीवेज का नाला जगह जगह गिराया जाता है.इसके बाद जलकुंभी के हमले से यह नदी कैसे बच सकती है.
इसी तरह पिछले दिनों बनारस में गंगा का पानी हरा हो गया. वाराणसी के ज्यादातर घाट पर गंगा का पानी हरा हो गया.इसकी वजह थी हरा शैवाल जो बहुत ही जहरीला होता है.इस शैवाल की वजह से गंगा का पानी लायक तो पहले ही नहीं था इसका कोई दूसरा इस्तेमाल करना भी खतरनाक हो सकता है.क्योंकि इसमें माइक्रोसिस्टिस नाम का साइनोबैक्टीरिया मिला है.गंगा का पानी हरा हुआ तो लोगों की चिंता बढ़ी.गंगा प्रदूषित तो पहले से थी पर पानी के हरे रंग ने लोगों को और डरा दिया.डर के साथ लोग यह जानना भी चाहते थे कि आखिर अचानक पानी हरा कैसे हो गया.क्योंकि ऐसा हरा रंग पहले तो नहीं दिखा.इधर ही नहीं गंगा के उस पार भी यही हाल था .हालांकि बरसात के मौसम में ताल तालाब के उलटे प्रवाह के चलते गंगा में कई बार काई आ जाती थी जिससे पानी कुछ जगह हरा दिखता था. पर इस बार यह शैवाल की वजह से हुआ.
वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर कहीं पानी स्थिर हो जाता है यानी उसका बहाव रुक जाता है तब न्यूट्रिएंट्स की मात्रा ज्यादा होने की वजह से माइक्रोसिस्टिस पनपता है.यह आम तौर पर नाले और तालाब में पाया जाता है.ऐसा लगता है कि यह वहीँ से बह कर आया है .पर अगर इसे साफ़ नहीं किया गया तो यह पानी के जीव जंतुओं को भी खत्म कर देगा. इसलिए इसे जल्द से जल्द हटाना चाहिए. इसी तरह गोमती से भी जलकुंभी को पूरी तरह हटाना बहुत जरुरी है.बरसात का मौसम आ चुका है.इसे नदियों के नहाने का मौसम भी कहते हैं.ऐसे में बहुत छोटे प्रयास से भी यह काम आसानी से किया जा सकता है.इसकी वजह यह है कि अच्छे मानसून की वजह से नदी नालों का जल प्रवाह बढ़ जाता है.दस पंद्रह दिन में यह स्थिति आने वाली है.ऐसे में चाहे जलकुंभी हो या शैवाल इन्हें हटाने का काम ज्यादा आसान हो जाएगा.साभार दैनिक हिंदुस्तान फोटो साभार
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