पटना .बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान खासकर चुनावी सभा में मतदाता को वो माहौल नहीं मिल पा रहा जो लालूप्रसाद की गंवई बोली में मिलता था. उनको ग़ांव क्या शहर के लोग भी याद करते है. बगैर लालूप्रसाद सब सुनसान सा महसूस कर रहे है.
चुनावी सभा चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हो या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की. मतदाता उन्हें सुनने तो जाते है. मगर वह हंसी और खिलखिलाहट नदारत है. उनकी पत्नी राबड़ी देवी या तेजस्वी यादव में भी वो बात नहीं है. बरारी के कैलाश मंडल बताते है कि हालांकि दो चार बातें तेजस्वी उनकी स्टाइल में बोलते भी है जैसे नीतीश कुमार को पलटू चाचा तो नरेंद्र मोदी को गड़बड़ मोदी. मगर लालूप्रसाद का गंवई पुट कोई नेता नहीं दे सकता.
तीनटंगा दियारा के लोकमानपुर ग़ांव के सिरों यादव, भवेश मंडल और जानकी तांती कहते है कि 2014 की चुनावी सभा में लालूजी आकर वोट भी मांगा और हंसाया भी खूब. उनकी बातों से पेट में बल पड़ जाता था. वे बोले ध्यान से बूथ में जाकर मशीन में वोट डालना है. उस मशीन पर लालटेन का छाप बना है. उसी के सामने बटन तब तक दबाकर रखना है जबतक मशीन पीइं---- नहीं बोले. समझ गइल न. इसी में लोगों की ठहाकेदार हंसी से सभा का माहौल गुंजायमान हो जाता था.
देवघर के वाशिंदें संजय भारद्वाज बताते है कि उन्हें मंच पर साथ खड़े उम्मीदवार को भी डपटते देर नहीं लगती. एक खुद पर बीती सच बात का बखान करते हुए उन्होंने बताया कि झारखंड के मधुपुर विधानसभा क्षेत्र से 2009 में हुए विधानसभा सीट से वे राजद उम्मीदवार थे. लालू जी चुनावी सभा को संबोधित करने मधुपुर हेलीकाप्टर से पधारे. उनके पैर पर चोट की वजह प्लास्टर चढ़ा था. उन्हें मंच पर किसी तरह ले जाया गया. तबतक कोई माइक से भाषण दे रहा था. उनके मंच पर आने के बाद भी चालू रहा. बस वे मुझे ही डपट दिए. संजय कहते है कि उनकी फटकार में भी प्यार छिपा होता है.
दिलचस्प बात है कि मंच से अगल - बगल थोड़ा शोरगुल होता तो फटकारते भी उन्हें देर नहीं लगती. और सामने बैठे कई लोगों को नाम लेकर भी बुलाते. मंच पर चढ़ने के दौरान ग़ांव की कई महिलाओं से ठेठ गंवई बोली में बतियाते और हालचाल पूछ लेते. यह बात सब में नहीं है. इसी वजह से लालूप्रसाद जेल में होने के बाबजूद ग्रामीणों के बीच चर्चा का विषय बने हुए है. तेजस्वी हरेक सभा में गांववालों को यह बताने से नहीं चूकते कि मेरे पिता लालूप्रसाद को नरेंद्र मोदी और छोटका मोदी(सुशील मोदी) और पलटू चाचा ने मिलकर फंसाया है. वे जेल से बाहर रहते तो एसटी-एससी एक्ट में संशोधन करने की मजाल नहीं थी. ये आपकी हकमारी कर रहे है.
यह अलग बात है कि ग्रामीणों के जेहन में इसका असर कितना हो रहा है. यह पता तो मतदान के दिन और वोटों की गिनती से पता चलेगा. मगर वे लालूप्रसाद को अपने बीच न पाकर कुछ खोया- खोया सा महसूस जरूर कर रहे है. तिरुपति यादव कहते है कि जेल का फाटक टूटेगा लालू यादव छूटेगा. लालूप्रसाद की जमानत पर उच्चतम न्यायालय सुनवाई करने वाला है.
ग़ांव के मतदाताओं को लुभाने के लिए राजद ने नारा गढ़ा है. " करे के बा---लड़े के बा---जीते के बा . " यह नारा बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बोल से कुछ मिलता जुलता है. वे बंगाली में मतदाताओं को कहती है करबो-लड़बो-जीतबो. इसके अलावे राजद ने एक गीत भी तैयार करवाया है. गीत के केंद्र में लालूप्रसाद के साथ तेजस्वी भी है. जिसमें भोजपुरी और गंवई पुट देते हुए अपने विरोधियों और मतदाताओं को सजग किया गया है. " दुश्मन होशियार-जागा बिहार-किया है यह यलगार-बदलेंगे सरकार . " राजद युवा के प्रदेश नेता अरुण कुमार यादव बताते है कि इस तरह के गीत का वीडियो जल्द रिलीज होने वाला है.
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