ठंढ का मौसम चल रहा है ऐसे में खानपान में भी बदलाव आता है . शामिष और निरामिष दो तरह के आहार में . देश में दोनों तरह के आहार प्रचलित हैं और खानपान सबकी निजी पसंद का मामला भी है इसलिए जिसे जो अच्छा लगता है वे वह सब खाएं जिन्हे नहीं पसंद है वे न खाएं न विरोध करें . ध्यान रखें विंध्याचल ,कमख्या , पशुपतिनाथ से लेकर अपने पूर्वाञ्चल में तरकुल्हा देवी के यहां भी बकरा चढ़ाया जाता है और प्रसाद पकता और बटता है . रामगढ़ में पिछली बार घोडाखाल से भी प्रसाद आया था ,किसी मंदिर से . यह भूमिका इसलिए क्योंकि की बार ऐसी पोस्ट पर शाकाहारी आंदोलन वाले कूद फांद करते है जो ठीक नहीं है . अब मौसम और खानपान पर आते है . पचास पचपन की उम्र के बाद रेड मीट से बचने का प्रयास करना चाहिए या कम कर देना चाहिए . इसलिए मछली ,मुर्गा या अन्य विकल्प पर ध्यान दें . ऐसी ही एक विकल्प बटेर है जो प्रतिबंध मुक्त परिंदा है और बड़े पैमाने पर फ़ार्मिंग भी की जाती है . अपने को स्वाद तब का चढ़ा हुआ है जब गांव में जल मुर्गाबी से लेकर तरह अरह के परिंदों के शिकार होते थे . ताऊजी अंग्रेजों के दौर में ही जेलर बन गए थे और सत्तर के दशक तक सेवा में थे वे खुद भी शिकारी थे और जब शिकार पर प्रतिबंध लग गया तो दूसरे विकल्प पर लौट गए . हिरण से लेकर तरह रह के जानवरों का शिकार होता और पकता . परिंदों में जल मुर्गाबी ,तीतर बटेर आदि भी . तब फार्म वाले मुर्गों का प्रचलन भी नहीं था . जंगली और देसी मुर्गे बनते पर अगर ठीक से न बनाया जाए तो वे मुर्गे की तरकारी में बदल जाता जैसे कई लोग बकरे की तरकारी बना देते हैं .
अवध की कूजीन में मांसाहारी व्यंजनों को बनाने में भूनने पर ज्यादा जोर दिया गया है . तभी उसकी रंगत निखरती है और स्वाद बढ़त है .
तीतर बटेर को अवध और पूर्वाञ्चल के कायस्थ परिवारों में भी खूब तवज्जो दी गई . इनका स्वाद मुर्गों से बेहतर होता है . कभी इस ठंढ में बटेर लाएं और उसका सालन बनाएं या लबाबदार बटेर बनाएं . यह ठंड में सेहत के लिए भी अच्छा माना जाता है और आयुर्वेद भी इसके गुण बताता है . इस समय लखनऊ में बटेर कुछ महंगा हुआ है और अस्सी रुपये का एक मिल रहा है चार लोगों के छह बटेर काफी है . इसे सिरके वाले पानी से धोकर दही में मैरिनेट करें चार पांच घंटों के लिए . फिर एक बटेर के हिसाब से एक प्याज का हिसाब रखें और उसी के अनुपात में लहसुन और अदरक का भी . प्याज गुलाबी होने के बाद इसे सरसों के तेल में पहले तेज फिर धीमी आंच पर भुने . दही का इस्तेमाल करें और बेहतर हो इसे लबाबदार यानी लटपटा बनाएं
अंबरीश कुमार की फ़ेसबुक पोस्ट से
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