डॉ शारिक़ अहमद ख़ान
ये 'ख़त वाली शीरमाल' है.ये शीरमाल सिर्फ़ लखनऊ में मिलती थी,लेकिन अब नहीं मिलती.हमने लखनऊ के चौक के मशहूर निहारी के होटल 'रहीम निहारी' वाले को जब इस शीरमाल का आर्डर दिया तो उससे जुड़ा क़िस्सा पहले सुनिए.हम रहीम निहारी वाले के यहाँ सुबह क़रीब आठ बजे पहुँचे तो एक बुज़ुर्ग़ नानबाई बैठे हुए कुल्चे और शीरमाल बना रहे थे.हमने उनसे पूछा कि क्या 'ख़त वाली शीरमाल' आप बनाते हैं.ये सुन उन्होंने हैरानी से हमें ऊपर से नीचे तक देखा.फिर कहने लगे कि साहब आप किस दौर की बात कर रहे हैं,मज़ा आ गया,आपने तो मेरा बचपन याद दिला दिया,बचपन आँखों के सामने तैर गया.हमारे दादाजान ख़त वाली शीरमाल बनाते थे,ये पुराने दौर में बनती थी.अब तो लखनऊ में वो नफ़ासत रही नहींं,कम लोग ही शौक़ीन बचे हैं.अब हम ख़त वाली शीरमाल बनाने लगें तो कई लोग कहेंगे कि शीरमाल निकालकर छोटी कर दी,काट दी.फिर नानबाई ने आगे कहा कि हमने भी ख़त वाली शीरमाल बनायी है,लेकिन मुद्दतों पहले,तब कुछ शौक़ीन बनवाते थे,हम आपके लिए बना देंगे.
बहरहाल,हमने तय वक़्त पर आदमी भेजा तो ख़त वाली शीरमाल आ गई,रहीम की निहारी और टुंडे के कबाब भी आ गए,ये सब लखनवी अदा का खानपान है और इसके ऊपर अवधी नवाबी खानपान की शैली की छाप है.गोश्त की अवधी ग़िज़ा नफ़ासत से भरपूर होती है,लद्धड़ नहीं होती,नियामतों में मसाले ठंडे और गरम दोनों पड़ते हैं,इसका ख़्याल रखा जाता है मसाले अच्छी तरह जज़्ब हो जाएं,मतलब कि हाज़िर रहें लेकिन दिखायी ना दें.शीरमाल के साथ कबाब और शीरमाल के साथ निहारी बहुत ही मशहूर लखनवी नाश्ता है.शीरमाल एक किस्म की मीठी तंदूरी रोटी होती है.शीरमाल ख़मीरी तो होती ही है,मोटी-पतली-फ़तीर भी होती है.
अब ख़ास शीरमाल 'ख़त वाली शीरमाल' की कहानी बताते हैं कि कैसे इसका चलन हुआ.इसके बारे में अब बहुत कम लोगों को मालूम होगा.दरअसल,अवध के नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर ने एक बार रोटी बनाने की प्रतियोगिता रखी,उसमें तरह-तरह की रोटियाँ नानबाईयों ने बनायीं,एक नानबाई ने शीरमाल बनायी और ये अवध के इलाक़े की पहली शीरमाल थी,इसके पहले यहाँ शीरमाल का चलन नहीं था.शीरमाल फ़ारस के खानपान का हिस्सा थी और वहीं से आयी.जब शीरमाल बन गई तो नवाब साहब के हुज़ूर में पेश हुई.नवाब को बहुत पसंद आयी और उन्होंने शीरमाल बनाने वाले को ईनाम दिया.
शीरमाल बनाने वाले नानबाई ने कहा कि अब हम जब भी शीरमाल बनाएंगे उसमें से पहले 'शाह-ए-ज़मन'मतलब 'धरती के राजा' नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर का हिस्सा पहले निकाल देंगे.नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर शाह-ए-ज़मन कहे जाते थे.ख़ैर,नानबाई इसी अदा से शीरमाल बनाने लगा,धीरे-धीरे दूसरे नानबाई भी यही शीरमाल बनाने लगे और इस ख़ास शीरमाल का नाम 'ख़त वाली शीरमाल' पड़ गया.सदियों तक लखनऊ में ख़त वाली शीरमाल बनती रही.इस शीरमाल में ख़ास अदा से ज़रा सा हिस्सा निकालकर तंदूर में शीरमाल को लगाया जाता है.यही निकला हुआ हिस्सा 'शाह-ए-ज़मन' का हिस्सा होता है जो तस्वीर में नज़र आ रहा है,मतलब कि किसी के खाने से पहले नानबाई उस शीरमाल में से नवाब का हिस्सा निकालकर ही देते हैं.इस तरह से देखा जाए तो हमने ये जो ख़त वाली शीरमाल खायी उसे पहले नवाब साहब ने ज़रा सा चख लिया था.वक़्त गुज़रा तो धीरे-धीरे ख़त वाली शीरमाल बनना बंद हो गई,हमने ख़ास आर्डर देकर बनवायी तो माना जा सकता है कि शाह-ए-ज़मन की रूह को बहुत दिनों बाद शीरमाल मिली होगी,शाह-ए-ज़मन की रूह बहुत ख़ुश हुई होगी.
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments