बॉम्बे के ईरानी रेस्त्रां की चाय

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बॉम्बे के ईरानी रेस्त्रां की चाय

डॉ शारिक़ अहमद ख़ान

आज हिंदोस्तान के पारसी समुदाय का नवरोज़ है.पारसी नवरोज़ को जमशेदी नवरोज़ भी कहा जाता है.ईरान के राजा जमशेद ने ही जमशेदी कैलेंडर चलाया जिसे पारसी मानते हैं.नवरोज़ में एक दूसरे पर रंग और पानी फेंककर ख़ुशी मनाने का रिवाज है.नवरोज़ का मतलब नया दिन,नये साल का नया दिन,हिंद के पारसी कैलेंडर के अनुसार आज वो दिन है.नवरोज़ फ़सल से जुड़ा त्योहार भी है.कहते हैं नवरोज़ के दिन काना दज्जाल नाम का शैतान मारा जाएगा और लूत के इलाके में उसका वध होगा.हिंदोस्तान में पारसी आज के दिन और शिया इक्कीस मार्च को नवरोज़ मनाते हैं.नवरोज़ रंगारंग त्योहार है और पारसियों की होली भी है.पारसी आज के दिन तरह-तरह के व्यंजन बनाते हैं और सिरके को पवित्र मान उसका पान करते हैं.पारसी अग्निपूजक हैं,उनके मंदिर जिसे दार-ए-मेहर और अग्यारी कहते हैं .

उसमें लगातार आग जलती रहती है जो कभी नहीं बुझती.पारसी अपने मंदिर में किसी ग़ैर पारसी को नहीं आने देते,लेकिन हमने उनका लखनऊ और मुंबई का मंदिर घूमा है,हमें किसी ने नहीं रोका.पारसी अब बहुत कम बचे हैं,जो हैं उनमें से ज़्यादातर बॉम्बे में रहते हैं.पारसियों ने हिंदोस्तान के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया है.लखनऊ में अब पारसी गिनती के ही बचे हैं,पचास से भी कम,उनमें से ज़्यादातर पारसी अंजुमन के कैंपस में रहते हैं.लखनऊ के इस पारसी दुआ घर में अग्यारी नहीं है,लेकिन क़रीब दस-बारह बरस पहले हम इस अंजुमन में गए थे तो देखा था कि यहाँ पवित्र अग्नि जल रही थी.लखनऊ के पारसी कानपुर के पारसियों से जुड़े हैं,कानपुर में पारसियों का फ़ायर टेंपल है,कानपुर से ही पारसियों के धार्मिक काज कराने पारसी धर्मगुरू आते हैं.पारसी धर्म मानने वाले व्यक्ति के शव को मृत्यु के बाद टॉवर ऑफ़ साइलेंस नाम के ऊंचे टावर पर रखने का विधान है जिससे चील-गिद्ध शव को खा सकें.बॉम्बे में बहुत बड़ा टॉवर आफ़ साइलेंस है.लेकिन जहाँ टॉवर ऑफ़ साइलेंस नहीं है वहाँ पारसी शवों को दफ़नाते हैं.लखनऊ में पारसी अपने शवों को दफ़नाते हैं,यहाँ उनका कब्रिस्तान है,इलाहाबाद में भी पारसी कब्रिस्तान है.इलाहाबाद के पारसी क़ब्रिस्तान में ही इंदिरा गाँधी के पति फ़ीरोज़ गाँधी की अस्थियों के फूल मतलब राख दफ़न हैं.

फ़ीरोज़ गाँधी पारसी थे,जब उनकी मृत्यु हुई तो उनकी इच्छानुसार उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीतियों से किया गया.राजीव गाँधी ने चिता को अग्नि दी.लेकिन राख के तीन हिस्से लगे,एक हिस्सा हरिद्वार में गंगा में विसर्जित किया गया,दूसरा इलाहाबाद के संगम आया और तीसरे हिस्से को इलाहाबाद के पारसी क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया.वहाँ दफ़न अस्थियों मतलब राख पर क़ब्र भी बनायी गयी.सोनिया गाँधी राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी का पारसी क़ब्रिस्तान में फ़ीरोज़ गाँधी को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए जाना होता है.बहरहाल,बॉम्बे के टावर आफ़ साइलेंस के शवों के लिए ज़रूरी है कि गिद्ध अच्छी संख्या में हों.गिद्ध आजकल कम हो गए हैं,इसलिए रतन टाटा ने टॉवर ऑफ़ साइलेंस के लिए गिद्ध की संख्या बढ़ाने के लिए काफ़ी प्रयास किया है.लखनऊ के पारसियों की बात करें तो दो सदी पहले गुजरात से रेशम और मोती का काम करने वाले पारसी नवाबी दौर में लखनऊ में आकर बसे,जहाँ आज जीपीओ है,वहीं उनकी बसावट थी,ये लोग रेशम और मोतियों का व्यापार करते थे जिसकी नवाबी दौर में ख़ूब मांग थी.तब से यहाँ पारसी आबाद हैं.

दिल्ली में भी पारसी आबाद है,एक पारसी मंदिर में हम दिल्ली में गए हैं,वो दिल्ली के दरियागंज का पारसी मंदिर था.लेकिन सबसे ज़्यादा पारसी तो बॉम्बे में ही हैं.ज़्यादा क्या अब पूरे देश में लगभग पचास हज़ार पारसी ही बचे हैं,इनकी घटती संख्या के पीछे वजह है इंटर रिलीजन मैरिज,जो पारसी पुरूष ग़ैर पारसी महिला से शादी कर लेता है उसके बच्चों को तो पारसी अपना मानते हैं,लेकिन जब पारसी लड़की ग़ैर पारसी लड़के से शादी करती है तो पारसी उस लड़की के बच्चों को पारसी नहीं मानते.पारसी देश की एक शिक्षित क़ौम है,कितने प्रसिद्ध पारसियों के नाम गिनाएं जिन्होंने देश की सेवा की,बहुतेरे नाम हैं.पारसी अपने रीति-रिवाजों और कर्मकांडों को लेकर बहुत सजग रहते हैं,वो बाहरी हस्तक्षेप पसंद नहीं करते.पारसी ईरान से हिंद में आए,अपने साथ अपना कल्चर लाए,पारसी खानपान का भी अपना एक कल्चर है,कई बरस पहले बॉम्बे में कई ईरानी रेस्त्रां में हमने पारसी व्यंजनों का लुत्फ़ उठाया,खाने के साथ-साथ बॉम्बे के ईरानी रेस्त्रां की चाय भी ख़ूब होती है जिसे दम ईरानी चाय कहते हैं.पारसी नवरोज़ के दिन 'सल्ली बोटी' नामक का व्यंजन बनता है जिसमें सालनदार गोश्त होता है और ये पारसी रेसिपी पर आधारित होता है,सिरके की प्रधानता की वजह से इसका अलग सा स्वाद होता है.इसके अलावा पारसी नवरोज़ पर 'पात्रा नी मच्छी' नामक व्यंजन शुभ माना जाता है.इसमें केले के पत्ते पर हरी चटनी के साथ मछली परोसी जाती है.मीठे में लगन नू कस्टर्ड,मीठा फ़ालूदा और मिट्ठू दही नामक मीठा दही ख़ूब बनता है.पारसी समुदाय को पारसी नवरोज़ की मुबारकबाद.तस्वीर मेरे कैमरे से.

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