डा शारिक अहमद खान
ये हैं सूरी कबाब,आज बने. सूरी कबाब का नाम शेरशाह सूरी के नाम पर पड़ा. कहते हैं कि शेरशाह सूरी को बहुत पसंद थे. कबाब चौबीस तरह के होते हैं. सबको बनाने के तरीके और मसाले अलग होते हैं. कुछ कबाब जो हमने खाए हैं और जिनके नाम हमें याद आ रहे हैं वो ये हैं. टिक्का कबाब-बोटी कबाब-चपली कबाब-शामी कबाब- कस्तूरी कबाब-अचारी कबाब-क़लमी कबाब-गोला कबाब-रेशमी कबाब-नरगिसी कबाब-गलावटी कबाब-सुतली कबाब-दकनी कबाब-ज़मीनी कबाब-सूरी कबाब-हड्डी कबाब-महताबी कबाब-मुट्ठी कबाब-ज़ाफ़रानी कबाब सीस्तानी कबाब-मुसल्लम कबाब और सींक कबाब. कबाब का जोड़ कॉफ़ी के साथ है और शराब के साथ है. जिसकी जैसी श्रद्धा कबाब के प्रति हो वो उसके साथ जोड़ जमाए. अगर शामों को कबाब बने हैं तो हम ब्लैक कॉफ़ी के साथ इन्हें लेते हैं.
बहरहाल,फ़िराक़ साहब को भी कबाबों का बड़ा शौक़ था. एक बार क्या हुआ कि फ़िराक़ के बंगले पर शामी कबाब बने थे. पीने का दौर था,मौलवी रौनक़ तशरीफ़ रखते थे. फ़िराक़ पीकर टुंच थे और रौ में शायरी कर रहे थे. फ़िराक़ ने आख़िरी कबाब हाथ से उठाकर जैसे ही नोश फ़रमाना चाहा कि कबाब बीच से टूटकर ज़मीन पर गिर गया,ज़मीन पर सिगरेट की राख और जूतों की धूल थी. लेकिन फ़िराक़ साहब ने लप्प से टूटा कबाब ज़मीन से उठाया और गप्प से मुँह के हवाले किया. इस तरह से देखा जाए तो फ़िराक़ साहब कबाबों से इतनी मोहब्बत करते थे कि उन्हें ज़मीन के हवाले क़त्तई नहीं करना चाहते थे. चाहते थे कि कबाबों को मुँह जैसा वही पवित्र स्थान मिले जिनके लिए वो बने हैं.
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