भोजपुरी में इसे फारा कहते हैं

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भोजपुरी में इसे फारा कहते हैं

डा शारिक अहमद खान  

जब बारिश होती है तो ऐसी ही चीज़ों के लिए मन लरजता है.शादी के फ़ायदों में से एक फ़ायदा ये भी है कि बारिश में रिमझिम को त्योहार की तरह मनाने वाले व्यंजन बन जाते हैं.ये फरे हैं.भोजपुरी में फारा कहा जाता है और स्थानभेद से देहाती इसको अलग अलग नाम से जानते हैं.ऊपरी आवरण चावल के आटे का होता है.अंदर दाल भरे फरे भी होते हैं और कीमे वाले भी होते हैं.ये क़ीमे का है.इसके अंदर नफ़ीस बकरे का कीमा भरा है.जब बारिश होती है तो मेरा मन करता है कि 'कुछ बनै कुछ कटै'.

ये मेरी टैगलाइन है.हमने 'कुछ बनै,कुछ कटै' वाली टैगलाइन अपने पिता के अधीन रहे फ़ोर्थ क्लास के कर्मचारियों से बचपन में सीखी है.जब मौसम रंगीन होता तो ढिबरी की रोशनी में फ़ोर्थ क्लास वाले कर्मचारी मसलन वार्ड ब्वाए स्वीपर और चौकीदार अपने क्वार्टरों में लकड़ी के चूल्हे पर मोटे मोटे रोट पकाते और दाल सब्ज़ी ख़ीर पकाते.जो नॉनवेज खाते वो कभी कभार गोश्त भी पकाते.तब गोश्त बहुत सस्ता था.बीस रूपये किलो बकरा था.ग़रीब भी प्रेम से 'पा' लेते.हम उनको पकाते देखते और उनका ये सेलिब्रेशन हमें पसंद आता.हमारे पास हमेशा से सुविधाएं रहीं और हैं.लेकिन हमें 'कुछ बनै कुछ कटै' वाला माहौल हमेशा से पसंद आया है.हम चाहते हैं कि लाइट बंद या मद्धम की जाए,कुछ लकड़ी का धुआँ धक्कड़ हो,कुछ उपले सुलगें,कुछ बनै कुछ कटै.यही मेरा प्रिय सेलिब्रेशन है,हम इसको बकायदा आर्गेनाइज़ करते हैं.

अब आज बारिश हुई है,कल मौसम रंगीन रहा तो कल संडे को क़रीबी दोस्तों संग भऊरी-चोखे और मीट की कटाई निश्चित है.जब बनना होता है तो हम पहले से अपने कर्मचारियों से कह देते हैं कि 'आज बनेगा,आज कटेगा'.कर्मचारी प्रसन्न हो जाते हैं.मेरे कई दोस्त कहते हैं कि हम कभी कभार 'बिलो स्टैंडर्ड' लाइफ़ स्टाइल में जीने लगते हैं,मजूरों की तरह बाटी चोखा मिटुआ खाना पसंद करते हैं.हम कहते हैं कि बच्चा हम हर तरह के जीवन का आनंद लेते हैं,खुर्री खाट वाला भी और चाँदी के छपरकट वाला भी.बच्चों की तरह रहते हैं,एक से बढ़कर एक तुर्रम ख़ाँ को गोईठे के धुएँ धक्कड़ के पास वहीं बैठा देते हैं जहाँ 'कुछ बनै,कुछ कटै' वाला माहौल रहता है.ज़रा तुम लोग बैठा कर दिखा दो और ऐसा दरबार सजा दो तो जानैं.हम ये भी कहते हैं कि बचवा मजूरा की तरह भी जीना सीखो,उसमें खुश रहना सीखो.क्योंकि कल को अगर लक्ष्मी पल्टा खा जाएँ और धम्म से भुईंयाँ आ लगो तो कऊनो तकलीफ ना होवै.

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