कविता कादंबरी
गया शहर के बीचो-बीच खड़ी यह जर्जर इमारत जद्दनबाई की हवेली के नाम से जानी जाती है. जद्दनबाई नरगिस दत्त की माँ और संजय और प्रिया दत्त की नानी थीं. उनकी मुख्य पहचान एक भारतीय गायिका, संगीतकार, नर्तकी, अभिनेत्री, फिल्म निर्माता और भारतीय सिनेमा की एक प्रतिष्ठित अग्रदूत के रूप में है. वह भारतीय सिनेमा की पहली महिला संगीतकारों में से एक थीं.
बहुत मन था कि इमारत को भीतर से देखा जाय, उसके इतिहास को महसूस किया जाय, मगर इमारत की जर्जर स्थिति और उससे जुड़ी अनेक दुर्घटनाओं की कहानियों की वजह से सीढ़ियों को पार करके भीतर जाने का हौसला न बन पाया.
(इस पोस्ट पर Faridi Ul Hasan Tanveer ने एक बेहद ज़रूरी सवाल जोड़ा है. उनकी टिप्पणी भी पढ़िए. "आधा इतिहास ही जाना आपने डॉक्टर साहिबा! या फिर मसलाहतन आधा ही लिखा?जद्दन बाई की एक पहचान आप छिपा गई? इग्नोर कर गई? या उनके इसमे आपने अपमान महसूस किया? इसलिये न बताई? आपकी नियत पर शक नहीं. जद्दन बाई और उनके पूर्वज नामी तवायफ़ खानदान से ताल्लुक रखते थे. ये भी उनकी एक मजबूत आइडेंटिटी है. दरअसल सारी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री शुरुआती नचनियों, तवायफों, रंडियों, मुज्रेवलियों के ही दम पर खड़ी हुई थी. फ़िल्म रेडियो और संगीत तक.
वर्तमान आला खानदान के लोग इनका तब ये कह कर उपहास उड़ाते थे. फिर नाम पैसा प्रसिद्धि सक्सेस को देखकर उन्हीं उच्च खानदानों ने सारी इंडस्ट्री को कब्ज़ा लिया. और अब आप जैसी बोल्ड महिला भी जद्दन बाई की वास्तविक इडेन्टिटी का उल्लेख न करे तो कुछ मिसिंग सा लगता है. मुद्दा इमारत नहीं बल्कि यह होना चाहिए वो लोग कौन थे जिन्होंने किसी इंडस्ट्री को खड़ा किया. फिर कौन लोग थे जो उनका उपहास उड़ाने के बाद भी उस इंडस्ट्री पर मुनाफा देख कब्ज़ा कर लिए. ये चर्चा का विषय होना चाहिए.
कविता कादंबरी की पोस्ट से साभार
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