अंबरीश कुमार
माही तुर्श दम एक कश्मीरी व्यंजन है पर ये प्रवासी कश्मीरियों की विकसित की गई डिश है .यह दही में बनती है .इसके बारे में बताया वैभव कौल ने जो मेरे पड़ोसी हैं .वे पूर्व केंद्रीय मंत्री और लखनऊ की सांसद रहीं शीला कौल के परपोते हैं .पर बाबा यानी कौल साहब एनबीआरआई लखनऊ के निदेशक थे उसी दौर में जब मेरे पापा सीडीआरआई में चीफ इंजीनियर थे .यह अपने को उनसे जोड़ता भी है . वे लंदन ने पढ़ाते थे पर हिमालय पर शोध और लेखन ने उन्हें कुछ वर्ष पहले एक बड़े हादसे का शिकार बना दिया .ग्लेशियर के अध्ययन के चक्कर में पांच सौ किलोमीटर बर्फ पर पैदल चले और एक बार इसी तरह की यात्रा में भेड़ियों के झुंड से घिर गए .बचने के लिए बर्फ से जो फिसले तो डेढ़ हजार फुट नीचे गिरे और हाथ पैर की कई हड्डियां टूट गई .लंबा इलाज चला अब भी उसका असर है .फिलहाल वे हिमालय से संबंधित एक पुस्तक लिख रहे है रामगढ़ में .अकेले रहते हैं पर मेहमानों से घिरे रहते हैं .मेहमानों का भोजन वे अकेले ही बनाते हैं .पिछले हफ्ते पचास से ज्यादा मेहमानों की आवभगत की .वे शानदार कुक हैं कश्मीरी ,मुगलई ,पंजाबी और कांटिनेंटल सब उन्हीने ही दम मछली बनाने की विधि बताई घर आए तो एक डोंगा सिवइयां बना कर लाए जो बहुत ही स्वादिष्ट थी .पर्यावरण,भूगोल ,इतिहास और संगीत के भी अद्भुत जानकार मुझे कश्मीरी पंडितों का इतिहास बताया .कैसे उनके पूर्वज बाहर से आये और उनके खानपान पर पर्सिया का असर पड़ा कश्मीरी व्यंजनों के नाम देखें तमकमाल ,रोगन जोश ,कलिया सब फ़ारसी के शब्द हैं .बहरहाल इधर एक समस्या पैदा हो गई है जो कश्मीरी मेहमान आते हैं उनमें कुछ हलाल वाला रोगनजोश चाहते हैं जिसके लिए उन्हें भवाली जाना पड़ता है तो सुरमई मछली के लिए हल्द्वानी .और आना जाना भी बस या जीप से होता है क्योंकि उनके पास कोई निजी वाहन नहीं है . भवाली के फ्रोजन स्टोर में बाशा मछली मिलती है जो वियतनाम की है .हालांकि अब रामगढ़ ने ट्राउट मिलने लगी है पर उसकी मांग दिल्ली में इतनी ज्यादा हो गई है कि पहले कहना पड़ता है खैर अपना शौक बागवानी और खानपान दोनो का है .अभी कुछ पौधे शहतूत के लगाए तो वैभव ने बताया कि उन्होंने पहले से लगा रखे हैं क्योंकि शहतूत पर पहाड़ी बुलबुल अपना अड्डा बना लेती है.पर अपने तो कीवी पर ही तरह तरह के परिंदे आते रहते हैं .फ़ोटो में रामगढ़ की ट्राउट है
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