कलानंद मणि
पिछले तीन दिनों से गुजरात के खेड़ा, आनंद तथा दाहौद की यात्रा पर था . कल रात ही दाहौद पहुंचा था . दाहौद स्टेशन पर सहज संस्था की संस्थापिका तथा आदिवासी हस्तकला की विशेषज्ञ जबीन तथा संघर्ष वाहिनी के समय के साथी विजय प्रकाश जानी का साथ मिला . दाहोद को औरंगजेब के जन्म स्थल के रूप में जाना जाता है .
दाहौद स्टेशन से कोई 18 किलोमीटर दूर आदिवासी बहुल गांव में सहज संंस्था का परिसर स्थित है . जबीन जो दाऊदी बोहरा संप्रदाय से हैं, लेकिन इन्होंने खुद को धर्म की कट्टरता से मुक्त रखा है . सहज संस्था जबीन के संघर्ष व रचनात्मक जीवन की उत्पत्ति है जो पिछले 20 सालों से आदिवासी तथा गुजराती ग्राम शिल्प को आगे बढ़ाने में लगी हैं .
यह जबीन से मेरी पहली मुलाकात थी . लेकिन गोवा से निकलते समय फ़ोन पर हुई पहली बातचीत में ही दोस्ती हो गई थी . उस पहली बातचीत में ज़बीन से बोहरा खानपान का निमंत्रण मिल गया था .
कल रात कोई 11 बजे सहज पहुंचा तब से लेकर अभी कोई घंटा भर पहले दाहोद से पुणे के लिए निकलते तक बोहरा आतिथ्य शैली व अत्यन्त स्वादिष्ट बोहरा खानपान से मन तृप्त और अभिभूत हो गया . कल रात की खिचड़ी भी अब तक खाई खिचड़ी में से अलग और अत्यंत स्वादिष्ट थी . आज दोपहर के भोजन में दाल के पानी तथा बेसन मिला सूप था . बोहरा खानपान में पानी के माफिक सूप का इस्तेमाल होता है . सूखा दाल मिश्रित चावल लखनऊ और हैदराबाद की बिरयानी से भी ज्यादा स्वादिष्ट था और इसके साथ था गोश्त .
जबीन आज शाम अपने पुश्तैनी घर ले कर गयीं . भोजन भी घर पर हुआ . पहले दस्तरख्वान बिछा और स्टील के रिंग पर एक बड़ी थाली रख दी गयी . बोहरा परिवार में सभी स्त्री पुरुष सदस्य एक साथ एक थाली में ही खाते हैं . इसमें स्त्री पुरुष का भेदभाव नहीं रखा जाता है . बड़ी थाली को दस्तरख्वान पर रिंग के उपर रखने से पहले मुझसे पूछ लिया गया कि क्या मैं बोहरा शैली में एक साथ खाना पसंद करूंगा या आपके लिए अलग से प्लेट लगा दिया जाए ? मैंने सहर्ष बोहरा शैली अपनाई . इसमें सबसे पहले सेंधा नमक चाटने के लिए दिया गया. फिर मिठाई और इसके बाद दही और नमकीन मिक्स, जिसे सलाद कहते हैं, और फिर थाली पर बिरयानी परोसा गया और अलग से चिकन सूप . यहां खाते समय पानी की जगह सूप का ही प्रयोग होता है . मैंने देश के हर प्रांतों की बिरयानी चखा, खाया है. लेकिन आज बनी बिरयानी हर मामले में सर्वोत्तम थी . खाना का अंत करने से पहले फिर मिठाई दी गई और अंत नमक चखने से किया गया. खाना अंत करते समय मेरी एक भूल का सुधार जबीन की बड़ी भाभी, जो शादी पूर्व करांची में रहती थीं , ने किया. जब उन्होंने देखा मैंनै अपने खाए हुए हिस्से में बिरयानी चावल का कुछ दाना थाली में छोड़ दिया है, तो वे मुझे एक एक दाना खा लेने का सुझाव दीं. मुझे बताया गया कि बोहरा थाली में अनाज का एक भी दाना नहीं छोड़ते. इससे अन्न का अपमान होता है . मैंने दिल से साॅरी कहा . मुझे यह भी बताया गया का बोहरा परिवार में आंगतुको को पहले पानी देने का रिवाज नहीं है . यहां मांगने पर ही पानी दिया जाता है . यदि आगंतुक को पानी देने पर उन्होंने पानी पीने से इंकार नहीं करना चाहिए, इससे पानी का अपमान होता है .
इतने परिवारमय आतिथ्य के बाद जबीन और साथी विजय को अलविदा कह कर मैं पुणे की ओर निकल पड़ा हूं जहां पश्चिम घाट बचाओ आंदोलन से जुड़े साथियों के साथ बैठक होगी तथा उसके बाद कल देर शाम से लोनावाला में अंधश्रद्धा निर्मूलन अभियान के साथियों के साथ रहूंगा .
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