मुकेश नेमा
सुना है सात जून बतौर पोहा दिवस मनाती है दुनिया . इंदौर वाले सुनेंगे यह बात तो हँस हँस कर मर जायेगे. उनके लिये तो रोज़ ही पोहा दिवस है. पोहे की जितनी इज्जत करते है तो इंदौर वाले . वैसी भयंकर इज्जत तो कोई अपने बाप की भी न करें।ऐसे पोहाखोर मैंने पूरे हिंदुस्तान मे कहीं नहीं देखे . क्वांटिटी का पक्का तो पता नही पर रोज आठ दस क्विंटल पोहे का भोग लगा लेते हो ये लोग तो कोई बड़ी बात है नही .
इंदौरियो से अधिक पोहे से प्रेम और कोई नही कर सकता . ये सपने मे अपनी प्रेमिका को नही पोहे के ठेले को देखते हैं . प्रेमिका यदि धोखे से दिख भी जाये सपने मे तो पोहा खाते ,बनाते या खिलाते हुये ही दिखती है इन्हें .
इंदौर की सड़कों पर सुबह टहलने निकलिये . हर गली के मोड़ पर ,चौराहे पर ,हर चौथी दुकान पर ,बस स्टेंड से लेकर रेल्वे स्टेशन यहाँ तक ही हॉस्पिटलो के सामने भी पोहे के साफ सुथरे ठेले सज़े दिखेंगे आपको . ये पोहे के ठेले ,पोहाप्रेमियो की भीड से घिरे होते हैं ,लोग या तो पोहा खा रहे होते है या पोहे की प्लेट हाथ लगने के इंतज़ार मे होते है . वैसे ये पोहा हमेशा प्लेट मे ही परोसा जाये ये कतई जरूरी नही होता ,रद्दी अखबार मे रख कर इसे दिया जाना इंदौरियो की ही इजाद है ,मुझे तो ये लगता है कि इंदौर वाले अखबार ख़रीदते ही इसलिये है ताकि अगली सुबह उस पर रखकर पोहा खाया जा सके .
अब ऐसा भी नही है कि इंदौरी अपने घर मे पोहा नही खा सकता . घर मे भी खूब पोहा ख़ाता है वो और घर मे पोहा खाने के बाद सीधा नज़दीकी पोहे के ठेले पर पहुँचता है . उसे पोहा खाने की संतुष्टि हासिल ही तभी होती है जब वो ठेले पर खड़ा होकर यार दोस्तो के साथ पोहा खा ले . पोहे ने यारबाज बनाया है इंदोरियो को . ये पोहे की वजह से दोस्ती करते हैं और दोस्तों को पोहा खिलाते हैं .
पोहे के ठेले पर खड़े इंदौरी को देखिये . वो पूरे धीरज के साथ अपनी बारी का इंतज़ार करता है . वो यह देखता है कि पोहे वाला उनकी प्लेट लबालब भरने मे कोई कंजूसी तो नही दिखा रहा . वो चाहता है कि प्लेट में पोहे का पहाड़ खड़ा कर दिया जाये . वो एक्स्ट्रा जीरावन और कटी प्याज़ की माँग करता है . नींबू और निचोड़ देने की फरमाईश होती है उसकी और थोड़े और सेव मिल जाने पर बहुत ज्यादा खुश हो जाता है .
इंदौरी सुबह उठते ही इसलिये है कि पोहा खाया जा सके और पोहे के बहाने ,अड़ोस पड़ौस से लेकर दुनिया जहान की बातें की जा सकें . अब ये बात भी सही है कि इंदौरी बात चाहे ज़माने की कर ले उसे आख़िर मे पोहे की बात पर ही लौट आना है .
पोहे की बात भर निकल आये ,इंदौरियो की आँखे चमक जाती है . इंदौरी पोहा खाने के लिये ही पैदा होता है . जीता पोहे के साथ है और जब मर जाता है तो शोक जाहिर करने आये लोग ,पोहा खाते हुये उसकी और पोहे की तारीफ करते हैं . भैया थे तो व्यवहार कुशल . कल सुबह ही तो दिखे थे पोहे के ठेले पर . जब भी मिलते थे पोहा खिलाये बिना मानते नही थे . जल्दी गुज़र गये . हरिइच्छा .
इंदौरियो का जीवन चक्र पोहे के ठेले के आसपास ही घूमता है . ये देश दुनिया के हाल-चाल बाबत बीबीसी पर भरोसा करने के बजाय यहाँ मिली ख़बरों पर ज्यादा यक़ीन करते हैं . ये यहीं लड़ते झगड़ते भी है ,प्यार मोहब्बत और बीमारो की बाते भी करने के लिये भी सबसे बेहतर मौक़ा और जगह होती है ये . और बहुत बार बच्चो के ब्याह संबंध की बाते भी पोहे के ठेले पर बन जाती हैं .
पोहा खाने को हमेशा तैयार ये बंदे इसके लिये ना रात देखते हैं ना दिन . इन्हें पोहा खाने के लिये दिन के चौबीस घंटे कम पडते हैं . यक़ीन ना हो तो किसी भी इंदौरी से पूछ कर देख लें तो या तो पोहा खाकर आया होगा या पोहा खाने जा रहा होगा .
यदि किसी इंदौरी की बातचीत मे पोहे का जिक्र नही आया तो क्या खाक इंदौरी हुआ वो . आप इनसे दुनिया के किसी भी दूसरे सब्जेक्ट पर बात करने की कोशिश करके देख लें ये बेहद जल्दी पोहे की प्लेट पकड़ लेंगे . आप एनआरसी की बात छेड़ेंगे तो ये उस रजिस्टर के पन्नों पर पोहा रखकर खाने की सोचेंगे . इंदौर से बाहर बसे आदमी से पोहे का जिक्र छेड कर देखिये . वो तडपने लगेगा . मिलने आने वालों से पोहा साथ लेकर आने की उम्मीद रखेगा . ये ऑक्सीजन के बिना रह सकते है पर पोहे के बिना इनका जी पाना नामुमकिन है .
इंदौरियो ने पोहे के साथ जो प्रयोग किये हैं वो काबिलेतारीफ है . ये भाई लोग पोहे मे नींबू ,प्याज़ ,जीरावन ,सेव तो मिलाते ही है ,इसके अलावा सारी साग सब्ज़ियाँ ,तरी जैसी और भी दुनिया मे खाने लायक शायद ही कोई चीज छोडी होगी इन्होने जिसे ये पोहे के साथ मिलाकर ना खा लेते हों . इस तरह बने पोहे को ऊसल पोहा कहते है ये . ये इतना कुछ मिला लेते है पोहे में कि इंदौरी पोहा देखते ही आपको फौरन इंदौरियो की मिलनसारिता पर यक़ीन हो जायेगा .
इंदौरियो को एनआरसी और कश्मीर से ज्यादा पोहे मे कम डाले गये सेव परेशान करते हैं . मंहगाई को लेकर भारत बंद हो तो उसे इस बात का टेंशन होता है कि पता नही आज छप्पन के जैन की पोहे की दुकान खुलेगी या नही .
वैसे इंदौर मे पोहा खाने वालो की पूरी तसल्ली तब होती है जब पोहे के साथ जलेबी मिल जाये उन्हे . यदि पोहा जलेबी के बाद गाढ़े दूध की मीठी ,कट चाय भी हासिल हो जाये तो वो मान लेते है कि वो सुबह सुबह किसी भले आदमी की शक्ल देख कर उठे हैं .
एक सच्चा इंदौरी पोहे की क्वॉलिटी और क्वांटिटी से कभी समझौता नहीं करता ,वो अपने धंधे में दीवाला निकल जाना बर्दाश्त कर लेगा पर पोहे का उन्नीस निकल जाना वह सहन कर जाये ऐसा होना नामुमकिन है .
इंदौर मे पोहा बनता भी लाजवाब है . यह तय है कि ऐसे पोहे और कहीं बनते नही . पता नही यहाँ के पानी की तासीर है ये या पोहे को ही इंदौरियो से प्यार है जो खुद बखुद इतना बढिया बन जाता है . आप को पोहा पसंद है या नही यह मैं नही जानता . पर इंदौर आकर आप इसके प्यार मे पडे बिना नही रह सकते . यकीन ना हो तो इंदौर जाकर आजमा लीजिये इसे . फ़ेसबुक से साभार
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