संजय श्रीवास्तव
दो पारिवारिक वैवाहिक आयोजनों के चलते इस बार कई सालों बाद लखनऊ आना हुआ. आपाधापी के बीच एक शाम 100 साल से कहीं ज्यादा पुराने सखावत कबाब रेस्टोरेंट जाने का मौका मिला. सखावट रेस्टोरेंट को अब 05वीं या 06वीं पीढ़ी चला रही है. यहां बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे जो बचपन में साइकिल से यहां शामी कबाब या दूसरे नान वेज व्यंजन खाने आते थे. अब दाढ़ी सफेद होने पर भी आते हैं. वैसे तो लखनऊ खाने-पीने की सलाहियतों और खानों की रिवायतों का शहर है. वैसे लखनऊ के नानवेज खानों की मार्केटिंग टुंडे कबाब से ज्यादा होती है लेकिन ये कहना चाहिए अगर आप लखनऊ आकर सखावट में नहीं गए या सखावट के कबाब नहीं खाए तो जरूर कुछ मिस करेंगे.
ये केसरबाग में अवध जिमखाना के ठीक बगल से जाने वाली गली में है. गली एक कार तो बमुश्किल घुस सकती है और उसे दूसरी तरफ से निकलने का रास्ता भी मिल जाएगा. गली में घुसते ही नानवेज व्यंजनों की खुशबु नाक से टकराएगी. रेस्टोरेंट छोटा सा है. उसमें जो तस्वीरें लगी हैं, उससे लगता है कि रजनीकांत से लेकर कई सितारे और शख्सियतें भी यहां आ चुकी हैं. रेस्टोरेंट की एक खासियत ये भी है कि जब होटलों और ढाबों में ईंधन का काम गैस से होने लगा है, उसके बीच यहां अब पकने-पकाने का काम कोयले की भट्टी में धीमे-धीमे पकते हैं.
वैसे तो यहां के मेनू में रोज कोई खास डिश होती है लेकिन मुख्य तौर पर यहां शामी कबाब, काकोरी कबाब, गुलावटी कबाब, बोटी कबाब, गोली मटन, मटन चाप, बिरयानी और चिकन रोज मिल जाएंगे. यहां आने वालों की अमूमन पहली पसंद शामी कबाब है.
कबाब के बारे में कहा जाता है कि ये तुर्की में जंग के दौरान सैनिकों ने ईजाद किया, वो शिकार किए जानवरों को तलवार में फंसाकर भूनकर खाते थे. कबाब का असल मतलब ही होता है भूनना., हालांकि अब कबाब भूने भी होते हैं और तेल के साथ आग पर सेंके गए भी. एशियाई देशों में कबाब के साथ तरह तरह के इनोवेशन हुए हैं. वैसे कबाब को असली छटा, जायका, जादू और विविधता अवध से ही मिला. मतलब लखनऊ की धरती कबाब की धरती भी है, यकीनन इसमें नवाब वाजिद अली शाह की भूमिका खास थी. उनके खाने के शौक ने शाही दस्तरखाना को खानपान की एक बड़ी प्रयोगशाला में बदल दिया था.
अरब से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक अब कबाब किसी के लिए अपरिचित नहीं. असल मायने में इसकी बादशाहत अब भी दो ही देशों में है - भारत और पाकिस्तान. कबाब मेमने और बकरी के गोश्त से लेकर बीफ और मछली ही नहीं चिकन से भी बनाया जाता है. वैसे तुर्की में तो स्टीम कबाब का खूब चलन है.
आप अगर लखनऊ में हों और कबाब नहीं खाएं तो बात कुछ अधूरी रहती है. आमतौर पर लखनऊ और कबाब का जिक्र आने पर जुबान पर टुंडे कबाब का नाम आता है. मैने टुंडे का स्वाद भी चखा है लिहाजा कह सकता हूं सखावटी कबाब जुबान पर स्वाद, मुलायमियत, मसालों की लज्जत के लिए शायद कुछ बेहतर होंगे.
लखनऊ में शामी, गुलावठी और सींक कबाब ज्यादा पसंद किए जाते हैं. हालांकि कबाब की मोटे तौर पर दो दर्जन से ज्यादा हिट वैरायटीज हैं. सींक, शामी, रेशमी, चपली, बिहारी, टिक्का कबाब, पेशावरी कबाब, पसंदे कबाब वगैरह वगैरह. सबके बनने और बनाने के तरीके अलग हैं और उनके मसालों के साथ डांस और आगे में पकने के तरीके अलग. ज्यादातर कबाब में मीट के साथ प्याज, हरी मिर्च, धनिया पाउडर, जीरा, काली मिर्च, नींबू और धनिया पत्ती का इस्तेमाल होता है. कुछ में कच्चा पपीता मिलाया जाता है. अब तो खैर वेज कबाब भी ऐसे आ गए हैं कि जीभ पर रखिए तो नानवेज का मजा देगा.
चलिए सखावट के लजीज कबाब पर लौटते हैं. ये कोयले की भट्टी पर रखे बड़े से अल्यूमिनियम थाल पर तेल के साथ सिंकते रहते हैं. जब आप शामी कवाब को चम्मच या कांटे से कांटेंगे तो बहुत नफासत से कटेंगे. जीभ पर आते ही एक स्मूद स्वाद देंगे. जिसमें मुलायमियत, मसालों का सरगम, टैक्सचर और खास स्वाद जीभ महसूस करने लगेगी. जीभ पर ये बहुत नजाकत से घुलने लगेगा.
वैसे सखावट को 1911 में एक छोटे खोमचे की शक्ल में खोला गया. फिर ये अपने आकार प्रकार को बदलती रही. हालांकि ये अब भी आकार में छोटी ही है लेकिन ग्राहक डेडिकेटेड हैं. यहां की डिशेज असल में असली फारसी व्यंजनों का भी प्रतिनिधित्व करती है. इसके मसालों में कुछ बात है तो कुछ बात इसे बारीक पेस्ट बनाकर कबाब की शक्ल देने में. फिर परफेक्ट तरीके से तेल के साथ धीरे धीरे सेंकने में.
हमें जो शख्स सखावट की तारीफों के पुल बांधते हुए वहां ले गए थे, उनके पिता इसके मुरीद थे. नियमित यहां आते थे. दुकान पर आकर कबाब खाते थे. कच्चा पेस्ट पैक कराकर घर लेजाकर फ्रीज में रखते थे. जब मन होता था, तब सेंककर खाते थे.
शामी और गुलावठी कबाब के साथ मटन और चिकन की और भी खास डिशेज यहां हैं. मैं बाकि चीजों का स्वाद तो नहीं ले पाया लेकिन केसरबाग और जिमखाना की ओर अगर जा रहे हैं तो अपनी कार या वाहन को इधर मोड़कर इस कबाब का आनंद निराश नहीं करने वाला.
फ़ेसबुक वाल से साभार
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