डा शारिक अहमद खान
इसमें चार किस्मों के खरबूज़ हैं.लाल धारीदार कजरी खरबूज़ है.उसके बगल में दाहिने तरफ़ नाशपाती खरबूज़ है.छोटा वाला बाबी है और हरा वाला भातकोल है.खरबूज़ भारतीय मूल का नहीं है.संयुक्त फ़ारस मतलब ईरान के मूल का है.पहले यहाँ खरबूज़ कोई नहीं जानता था.मुस्लिम काल में मुसलमान जब फ़ारस वग़ैरह से हिंदोस्तान आए तो खरबूज़ के बीज भी लेकर आए और खरबूज़ की खेती भारत में शुरू की.जिसको मुस्लिम प्रतीकों से चिढ़ है वो खरबूज़ भी ना खाए,खरबूज़ भी हिंदोस्तान में मुसलमान लेकर आए और ये मुस्लिम देशों से आया.सिर्फ़ हिजाब और उर्दू अरबी से नफ़रत क्यों,नफ़रत करनी है और नफ़रत की तोप हो तो मुक़म्मल नफ़रत करो,खरबूज़ खाना भी त्याग दो.बहरहाल,खरबूज़ों की तमाम किस्में हैं.जौनपुर के जमैथा के खरबूज़ अलग हैं तो आज़मगढ़ के कोयलसा के अलग.फ़ैज़ाबाद के खरबूज़ अलग हैं तो लखनऊआ डस्क खरबूज़ अलग हैं.
मऊ के भातकोल खरबूज़ सबसे मीठे माने जाते हैं.भातकोल खरबूज़ की तो पूरी कहानी ही हमने कई बार फ़ेसबुक पर सुनाई और शंभू सर ने अख़बार में भी छापा.बदख़्शाँ-नेशापूर से लेकर तमाम इलाक़ों से खरबूज़ के बीज हिंद में आए और अब उत्तर भारत के मैदानों में इसकी विभिन्न किस्मों का राज है.आज ये खरबूज़ बाज़ार से लाए हैं.लखनऊ राजधानी है तो पूरे प्रदेश की खरबूज़ पट्टी से खरबूज़ों की यहाँ आमद होती है.नाशपाती खरबूज़ को तिब्बी हिकमत में दवा के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है.कई बार हम खरबूज़ों की कहानी विस्तार से लिख चुके हैं,इसलिए आज कहानी नहीं,बस खुशरंग खरबूज़ों को देखा जाए.इस मौसम में खरबूज़ ख़ूब खाने चाहिए.हम तो सुबह बतौर शेक इनका इस्तेमाल करते हैं.
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