महुआ कुछ नहीं मांगता

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महुआ कुछ नहीं मांगता

चंचल

दरख़्त है , फूल , फल , लकड़ी , आक्सीजन , शीतल छाया , परिंदों को बसेरा सब देता है .  माँगता कुछ नही , न पानी न खाद , यह अनुदान भोगी नही है , पुरुषार्थ पर यक़ीन है , धरती इसकी मा है ताउम्र उसी के सहारे खड़ा रहता है .  स्वाभिमानी दरख़्त है .  चैत की अलसायी भोर में चूता है .  मादक गंध का पीलापन लिए सफ़ेद फूल डूब घास की हरियाली पर दूर से दिखायी पड़ता है .  भँवरे खुद पर नियंत्रण नही कर पाते , इर्द गिर्द  चक्कर लगाते हैं .  ऊपर  कमनीय  त्रिभंगी उप शाख़ों पर झूलते कूचों पे रसचूसनी चोंच मारती है , पट्ट से महुआ चू  जाता है .  मधु मक्खी रस के अग़ल  बग़ल  घूम घूम कर मान मनौवल करती है .  

       खजुराहो के रेस्तराँ में बैठा शहर अकनता है - ये चम्पा की इतनी ज़बरदस्त महक कहाँ से आ रही है कनछेदी आँख गोल कर के शहर को देखता है और फिस्स ऐ हँस देता है - यह चम्पा की महक  नही है

  .  ?

  . महुआ चुआ है !

   . महुआ ?

 कोने में पड़ी आराम कुरसी  में धँसा दाढ़ी बुदबुदाता है - महुआ

और हँस देता है /, ज़ोर से / बिल्कुल आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की तरह / बाक़ी कुरसियाँ उचक के उस हंसी से मुख़ातिब हो जाती हैं , जो कोने से उठी थी .  

 - आप हँस  रहे थे ?

 -  पर्यटक हूँ मित्र , हंसने के लिए हाई तो घर ने निकला हूँ

शार्ट स्कर्ट को उत्सुकता हुयी , काजल वक्री हुआ , सहेली को टिप दिया - फ़िलासफ़र लगता है , जितने आराम से बैठा है , कोई नार्मल इंसान नही बैठ सकता , देखो ज़रा / शहर को उत्सुकता हुई , अपने सवाल पर कम , हंसने वाले शख़्सियत में उसकी दिलचस्पी  बढ़ गयी - दरसल हमने महुआ देखा नही है .  इस लिए कनफ़्यूज हुआ क़ि यह चम्पा की महक है .  

 . नही , हम आप  पर नही  , महुआ पर भी नही , हमे हंसी आ गयी चंपा पर !

     -?

 . चम्पा में गुण तीन हैं , रूप , रंग औ बास

      अवगुण केवल एक है , भ्रमर न आवे पास !

 . हम ये नही जानते थे !

  . ये जो जानना है है न ? फले से जाना हुआ नही होता .  हम भी नही जानते थे , घुमंतू आदत है , एक बार अपने  परचित साथ एक गाँव गया .  वहाँ जो कुछ ज्ञान मिला बो बहुत काम का निकला .  हमे ज्ञान दिया गया था क़ि गाँव में  ग़रीबी है और इतना अन्न की कमी है की लोग  चकवड़ का शाग  और महुये का चबैना चबाते हैं .  हम भी आपकी तरह शहर  रहे , केंचुल छोड़ रहा हूँ , अभी आदमी बनने में वक्त लगेगा , हाँ तो क्या कह  रहा था महुए का चबैना / आपकी तरह हमे भी हैरानी हुई थी भुना हुआ , चना , मटर , मक्का , गेहूं जौ वग़ैरह का चबैना तो जानता था लेकिन महुआ ?

  . फिर ?

. आप के पास समय की कमी या अनावश्यक फ़िज़ूल की  कहानी से परहेज़ हो तो संक्षेप हो जाऊँ वरना

 . नही वरना पर ही  चलते  रहें ,

. आप टफलर से मिले हैं क्या ? एल्विन टफलर बात करते समय बात बात में या बेबात के ही टेढ़े मेढ़े विदेशियों का नाम उच्चरित करना हमने जलेस और प्रलेस से सीखा है .  ऐसा नही वे काम के नही होते , बहुत काम के होते हैं अब इस टफलर को  ही  ले लीजिए - चबैना तुम  आन लाइन माँगा सकते हो .  चड्ढी की तरह या जूते की तरह .  पूरी बजार आन लाइन है .  

लेकिन यह टफलर कहता है - रिहाईस का पता - जनता प्रेस काली कुत्ती , ओलंद गंज जौनपुर शहर से बाहर निकलो शाही पुल  की ओर बढ़ो , दाएँ बेनी राम इमारती की दुकान है बाएँ बलई पूड़ी वाले हैं ,यहीं से मुड़ जाओ बदलापुर पड़ाव की ओर यह रंडियों  का मुहल्ला है , दस कदम की दूरी पर शास्त्री जी का छापा खाना है वही निम के पेड़ के नीचे बिलायती चबैना वाले भूँज मिलेंगे .  उनका भाड़ ठेले पर बरता है .  आठ आने कि चबैना लीजिए लहसुन नमक मुफ़्त में मिलेगा लीजिए और चबाते हुए लौट आइए कालीकुत्ती .  बोर हुए न ? आप नही , उसकी बात कर रहा हूँ जो चबैना लेने गया था .  आन लाइन मंगा सकता था .  

. ?

 - ऐसे मत देखिए ! हम नही , टफलर कह रहा है - काली कुट्टी से चलकर शास्त्री के छापे खाने तक जाना , चबैना लेकर लौटना , यह सूचना को छिपाने की  बकैती है .  भूल जाते हो तुमने रास्ते में देखा है , कम्युनिस्ट हनीफ़ भाई नगरपालिका सफ़ाई कर्मचारियों का जूलूस निकाले मिले थे .  उसे देखलिए .  इक्के पर प्रचार चल रहा  था , उत्तम ताकीज के रूपहले पर्दे पर , गंगा जमुना , तीनो शो .  बैंडवाले बजा रहे थे -  नज़र लागी राजा , तुम्हारे मन में एक सवाल उठा - आज ये मोची लोग कहाँ गये ? पुलिस खड़ी है , सरकार का आदेश है सड़क ख़ाली रखो .  ये जो जो वाक़यात तुम देख रहे थे , सुन रहे थे ये सन आन लाइन मिलता ? नही न ? टेकनालोजि , मशीन , हड़बड़ी मा मनोविज्ञान तुम्हें तनहा बनाएगा .  फाँस का दार्शनिक अर्थशास्त्री  गॉ शेरमन भारत में थे , आडवाणी का रथ जापान का बना हुआ था , रथी पाकिस्तान का था , सेना बेरोज़गारी के दफ़्तर से पास होकर उत्तेजना से अलंकृत होकर पीछे पीछे चली थी .  सोमनाथ से चढ़ा यह सारथी वैतरणी पार कर पाएगा ? अनुत्तरित सवाल था .  समाज बाँट कर मुल्क मज़बूत नही किया जा सकता , फ़क़ीर बोला हाई था क़ि बंदूक़ से गोली निकल गयी .  फ़क़ीर आगे आगे , गोली पीछे पीछे .  

  . ? 

  . इंटरेस्टिंग , स्कर्ट और बिंदी दोनो कुरसियाँ कोने की तरफ़ घूम चुकी हैं .  

  . बकवास  है हम जानते हैं , लेकिन अमर्त्य सेन को तो बचाना है दुनिया उन्हें सुनती है .  बकबकी भारत उनकी मशहूर किताब है ( The talkative  India ) /हम बदल जाँय तो उनकी किताब का क्या होगा ? तो हम कह रहे थे गाँव गया था .  पहले  चकवड़ की खोजबीन की .  उसकी दूसरी और लम्बी कहानी है .  किस तरह चकवड़ लिए लिए दर दर भटका  हूँ .  काशी विश्वविद्यालय द्रव्य विभाग के दुबे जी  से मिला , ग़ज़ब की जानकारी , लेकिन निर्गुन / यह जानकारी गाँव गाँव क्यों नही गयी ? गाँव का चकवड़ चवंपरासों का बाप .  ग़ज़ब की विटामिन का श्रोत , शाहरुख़ खान की क्रीम की आदि आजी चकवड़ की पाती , छोड़ो आओ महुआ पर

  . ?

  बकरी चरा रहा था शाम  ढल रही थी , “काठ की घंटी सर्वेश्वर जी ने इसी गाँव में देखा होगा . हमने सुना .  

. महुआ यहाँ कहीं मिलेगा ?

. हूँ

 - हमरे साथ आवा जाय , नज़दीक़य बा .  हमरे घर के पास

 कितना फितरती  इंसान रहा - प्रकृति का अकेला जंतु है यह इंसान अपनी  माँ के अलावा दूसरों की माओं का भी दूध  पी कर अकड़ता है .  अछा लगा यह देख कर माएँ इंसान के बच्चे को हांकने लगी है .  चरवाहा आगे है बकरियाँ पीछे पीछे .  

    . साहेब ! कांग्रेस का होगा ?

अमर्त्य सेन के सवाल को हमने ब्रेख़्त के पास टिका दिया .

  ब्रेख़्त की उँगली भारत के  नक़्शे पर है , ठहाका यहाँ तक सुनायी पड़ता है -

     . “ चरवाहे की मामूली सी गलती पर बकरियों ने खुद को कसाई के हवाले कर दिया ॥

   ब्रेख़्त से बात नही कर सका चरवाहा बजरियों के साथ उनके घर तक आ गया था .  बकरियाँ अपने आप दालान में चली गयी

और चरवाहा आगे आगे , अब बकरियों की जंग हम थे . एक खंडहर की साँकल बजी

   . तेवारी जी ! दरवाज़ा खोलअ , एक ठो महुआ चाही

हमारी तरफ़ मुड़ा - एकय चाही न साहेब ?

 . हाँ एकय

   पिछले कुछ दिनो से हमने सोचना बंद कर दिया है .  

 . एक महुआ ?

  गाँव में इसे  महुआ कहते हैं उठा और डस्टबीन में बोतल डाल दिया , महुआ का असर

           आप बताइए

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