डा शारिक अहमद खान
ये रक्तार्क है. आज सुबह सैर के दौरान दिख गया. इसके पौथे को उर्दू में मंदार-मदार हिंदी में आक-अकौआ और संस्कृत में वसुक: कन्दुरी नाम से जाना जाता है. स्थानभेद से देहातियों में विभिन्न स्थानीय नामों से भी जाना जाता है. मदार में तीन तरह के रंग होते हैं. एक श्वेतार्क जिसके फूल सफ़ेद होते हैं. दूसरा रक्तार्क जिसके फूल लाल और बैंगनी चित्तीदार होते हैं. तीसरा राजार्क जिसके फूल चाँदी के रंग के होते हैं. श्वेतार्क आमतौर पर नज़र आता है,लेकिन रक्तार्क और राजार्क कम दिखता है. मदार के पत्ते और फूल पूजा के भी काम आते हैं. शिव को अर्पित होते हैं. मदार को हवा से ज़हरीले तत्व खींच लेने वाला पौधा माना गया है,इस तरह से इसे हवा साफ़ करने वाला पौधा माना जाता है.
बचपन में जब नंगे पैर खेलते हुए पैरों में कांटा चुभ जाता तो इसकी पत्ती को तोड़कर उस पत्ती की डंठल पर निकले दूध को कांटे वाले स्थान पर हम लगाते,कांटा निकल जाता. इसी तरह हड्डे मतलब बर्रे काटने मधुमक्खी के काटने पर इसके दूध को डंक लगे स्थान पर रखने से राहत मिलती थी. आयुर्वेद में मदार के तमाम इस्तेमाल हैं. लेकिन मदार ज़हरीला होता है,इसके दूध का ग़लत इस्तेमाल मृत्यु का कारण भी बन सकता है. अदाकार अमिताभ बच्चन ने मदार का एक उपयोग बता इसे ख़ूब प्रचलित किया कि मदार के पत्ते को उल्टा कर पैर के तलवों के नीचे रख उसके ऊपर मोज़ा और मोज़े पर जूता पहन दिनभर रहने पर कुछ दिनों में मधुमेह कम हो जाता है,नियंत्रित हो जाता है,ये शुगर लेवल डाउन करता है.
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