जंगली जानवरों के शिकार पर तैयार हुई नगा पुलिस ..

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जंगली जानवरों के शिकार पर तैयार हुई नगा पुलिस ..

बद्री प्रसाद सिंह 

 बात वर्ष १९९१ की है जब मैं पीलीभीत में सिख आतंकवाद से जूझ रहा था.एक दिन शाम सूचना मिली की आतंकियों के विरुद्ध नागालैंड सशस्त्र बल की दो- दो कम्पनी नैनीताल तथा पीलीभीत को मिली है ,हमारे यहां की दोनों कंपनी कुछ देर में पूरनपुर पहुंच रही है जिनके ठहरने की व्यवस्था की जाय.हमने रात में मंडी समिति पूरनपुर में उनके रुकवाने के लिए निरीक्षक पूरनपुर को निर्देशित कर कहा कि कल सुबह आकर उनकी स्थाई व्यवस्था करूंगा.नागा पुलिस रात में मंडी समित में ठहरा दी गई जहां पीएसी की ३ कंपनी पहले से ही रूकी थी.

        सुबह मैं, सीओ राजेन्द्र यादव तथा निरीक्षक पूरनपुर के साथ मंडी समिति पहुंचा तो पीएसी के अधिकारियों ने अपने कैम्प के लिए दूसरा स्थान मांगा.मेरे कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि नागा पुलिस उनके कैम्प के कुत्तों को मार कर खा रही हैं. हमारे लिए यह अविश्वसनीय खबर थी. हम नागा पुलिस के अधिकारी को लेकर जब नागा कैम्प  पहुंचे ,तो वहां का अद्भुत नजारा देख हम स्तब्ध रह गए.जगह जगह ५-६ के समूह में बैठे नागा जवान भूने कुत्ते लटकाए या फर्श पर रखे हुए थे,बगल में तेज धार वाला चाकू , नमक  और मदिरा से भरा जाम रखा हुआ था,जवान  कुत्तों के भूने गोस्त को चाकू से काट कर खा रहे थे साथ ही लबों पर जाम थिरक रहे थे.हर महफ़िल में  पश्चिमी धुन में तेज आवाज में बज रहे ट्रांजिस्टर माहौल बनाने में मदद कर रहे थे.हम उनके बगल से वर्दी में गुजर रहे थे लेकिन न कोई हमें सेल्यूट किया न सम्मान दिया.यह वीभत्स दृश्य देख कर हम पुनः पीएसी कैम्प आकर नागा अधिकारी से इस उद्दंडता के विषय में पूछा तो वह बोले कि इस बल का अनुशासन ढीला है,इसमे आत्मसमर्पण कर चुके कुछ नागा विद्रोही भी हैं,कड़ाई करने पर वे शस्त्र सहित भाग कर पुनः विद्रोही भी बन सकते हैं.नागा पुलिस का यह प्रथम साक्षात्कार हमारे लिए नया अनुभव था.

       पीलीभीत के जंगलों में आतंकियों की गतिविधियों की सूचना मिलती रहती थी ,हमने सीमा सुरक्षा बल एवं सीआरपीएफ को जंगल के डाक बंगले में ठहरने को कहा था लेकिन सुरक्षा कारणों से वे दोनों मना कर दिए थे.जंगली प्रदेश के निवासी होने तथा एम्बुश के विशेषज्ञ होने एवं जंगली जानवरों के शिकार के लिए नागा पुलिस जंगल में रहने के लिए सहर्ष तैयार हो गई. जंगल में उनके रहने की व्यवस्था में ४-५ दिन लगे तब तक नागा पूरनपुर कस्बे तक के कुत्तों का शिकार करते रहे.काला कुत्ता उनका सर्वोत्तम भोजन था.आलम यह हो गया था कि यदि नागा जवान रिक्शे या पैदल  कहीं जाएं तो उन्हें देखते ही कुत्ते भाग खड़े होते थे.कस्बा वाले भी उनके इस आचरण से दुखी हो गए थे.

     नागा पुलिस की दोनों कंपनी जंगल के दो डाक बंगलों में भेज दी गई.कुछ दिन उन्हें आसपास के क्षेत्र समझने के लिए दिया गया,साथ में एक दरोगा तथा एक सिपाही गाइड के रूप में दे दिया. प्रतिदिन जंगली जानवरों का शिकार उनकी दिनचर्या हो गई. सुअर,सांभर,हिरण ही नहीं बंदरों की भी शामत आ गई.हमने समझाया कि संरक्षित जंगल में शिकार तो प्रतिबंधित है ही, शिकार की लालच में कभी वे आतंकियों के शिकार भी हो सकते हैं, लेकिन वे नहीं सुधरे.कुछ दिन बाद हम अपने साथ कांबिंग में ले जाने लगे जहां वे बीएसएफ,पीएसी, सिविल पुलिस से साथ चलते.

       नागा पुलिस अपने साथ रायफल के अलावा एक दांव (तेज खुखरी) ,एक गुलेल तथा पीठ पर एक झोला रखते हैं.काम्बिंग का प्रारंभ सब साथ करते थे लेकिन समाप्ति पर जब गिनती कर सभी अधिकारी खैरियत की रिपोर्ट देते तो नागा अधिकारी की टुकड़ी में ४-५ जवान कम होते जो जंगल में कोई जानवर दिखने पर उसके पीछे लगे होते.हम बार बार डांटते लेकिन उनमें सुधार न होता.जंगल में कोई कीड़ा, सांप ,कछुआ आदि मिलता तो वे अपने झोले में भर लेते. चिड़िया के लिए गुलेल थी.जब वे लौट कर अपने कैम्प में जाते तो सब अपने बैग के जानवर निकाल कर काट कर कच्चे या फ्राई कर खाते.सांप का सर काट कर खाते. नागालैंड के जंगलों में जानवर, चिड़िया नहीं बची हैं, इसलिए वे यहां मस्ती में रहते.एक दिन उनके अधिकारी मेरे पास आकर .३०३ रायफल के ढेर सारे खोखे बदल कर उनके स्थान पर जीवित कारतूस की मांग की.तब तक उनकी आतंकियों से कोई मुठभेड़ नहीं हुई थी.पूछने पर बताया कि उनके जवान शिकार में इतने कारतूस खर्च किए हैं.मैंने कारतूस तो बदल दिए लेकिन भविष्य में कारतूस न बदलने की बात कह कर जवानों के शिकार पर नियंत्रण हेतु कहा.

       एक दिन हम पुलिस अधिकारियों को लंच हेतु अपने कैम्प पर उन्होंने बुलाया.जब खाना लगा तो मीट,दाल तथा चावल देख   कर सुलखान सर ,मैं तथा कई अधीनस्थों ने व्रत का बहाना बनाया.उनके पूछने पर बताया गया कि वे बंदर,सांप आदि खाते हैं जिसे हम नहीं खाते. उन्होंने बताया कि हमारे लिए आज  बकरा पका है लेकिन हमें उनका विश्वास न था.अंत में हम चावल दाल उबला सरसों जैसा पत्ता खाएं और भविष्य में हमें दावत न देने का अनुरोध किया.

        एक शाम आईजी जोन बरेली की बरेली में हो रही बैठक में लगभग आठ बजे एक फोन पर बात कर आईजी सर ने मुझसे नाराजगी में कहा कि नागा पुलिस क्यों बेहूदगी कर रही है? मेरे पूछने पर बताया कि महोफ वन रेंज में नागा पुलिस ने एक बंगाल टाइगर की हत्या कर दी है जब वन अधिकारी बाघ का शरीर लेने गए तो वन रेंजर तथा दो अन्य को बंधक बना लिए हैं.मैं तत्काल वहां जाकर वन अधिकारियों को मुक्त कराकर मृत बाघ उन्हें दिला दूं तथा उनका स्पष्टीकरण लूं.मैंने कहा कि रात में मैं वहां नहीं जाऊंगा क्योंकि वे सब शराब के नशे में होंगे,नशे में वे हमें नहीं पहचानेंगे, अधिक कड़ाई करने पर फायरिंग की भी नौबत आ सकती है,कल सुबह जाकर मैं यह सब क्या दूंगा.अगले दिन सुबह मैं नागा कैम्प जाकर बंधक अधिकारियों को छुड़वा कर बाघ का चमड़ा उन्हें दिलवाया क्योंकि बाघ का मांस वे रात में ही खा चुके थे.बाघ का सर उन्होंने यह कह कर नहीं दिया कि वे इसका सर नागालैंड अपने मेस में लगाएगें क्योंकि यह उनकी सर्वोत्तम ट्राफी है.मैंने बहुत समझाया कि बाघ का शिकार प्रतिबंधित है लेकिन वे नहीं माने. वे जो भी जंगली जानवर का शिकार करते ,उसका सर काट कर डाक बंगले में लटका देते,पूछने पर उसे अपनी ट्राफी बताते थे.उनका कैम्प  इन ट्राफियों से इतना दुर्गंध छोड़ता था कि हम वहां खड़े नहीं हो पाते.

        नागा पुलिस की दो कंपनी पीलीभीत तथा दो कंपनी नैनीताल में दो साल तक रही और इस अवधि में उन्होंने उन वनों के  वन्य जीवों का लगभग सफाया ही कर दिया था.साभार फ़ेसबुक वाल से  

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