महेंद्र सिंह
बरसों से बाहर हूँ पर इंडियन ग्रोसरी स्टोर में पहली बार बथुए का साग दिखाई दिया.हिंदुस्तान से बाहर रहने वाले हम अवध वाले ही इस ख़ुशी को समझ सकते हैं, ख़ासकर वे लोग जो ग्रामीण इलाक़ों से हैं जो गेहूं के साथ उगने वाले बथुए को ख़ास तौर पर उड़द की दाल के साथ पकाए गए स्वाद से वाक़िफ़ हैं.
मेरी तरह अन्य सभी जो इसे खाते हुए बड़े हुए हैं वे तस्दीक़ करेंगे कि जनवरी-फ़रवरी की किसी इतवार की गुनगुनी धूप में छत पर या आँगन में बैठकर ताज़ा बने हुए बथुआ पड़े हुए उड़द दाल (सगपैंइता) जिसमें उदारता से घी डाला गया हो को चावल के साथ खाने का जो स्वाद है उसका पूरी दुनिया की किसी डिश से कोई मुक़ाबला नहीं हो सकता.
ख़ैर, दशकों से इसे नहीं खाया था क्योंकि हिंदुस्तान जाना केवल गर्मियों के मौसम में हो पाता है और यह साग केवल सर्दियों के दिनों में वहाँ मिलता है! सो घर आते ही उसे पका डाला! वह स्वाद तो उसमें नहीं मिल सकता पर बचपन और युवावस्था की वे स्मृतियाँ पुनर्जीवित ज़रूर हो गयीं.
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