डा शारीक अहमद खान
आजकल होरहा मतलब होरा मतलब होला का मौसम है. आज हरे चने का झक्कड़ आ गया था,लिहाज़ा पत्तियों और पेड़ों की सूखी पतली टहनियों पर सहन में भुनाई करायी. जब होली क़रीब होती है तो होरहा खाने में मज़ा आता है. हरी मिर्च धनियाँ और लहसुन की चटनी भी पिसवायी,इसके साथ ख़ूब मज़ा देती है,मिर्च और नमक के साथ भी इसका आनंद है. बस आग पर छिलके समेत भुने इस हरे चने को भूनने के बाद हाथ से इसका छिलका निकालते जाइये और जीमते जाइये. इस कसरत में हाथ काले हो जाते हैं,दांत भी काले हो जाते हैं. फिर चाय-कॉफ़ी के साथ आनंद आता है,गन्ने-नींबू या गुड़-नींबू-दही के रस के साथ भी इसका मौज है. गाँवों में तो मेड़ पर ही लोग होरहा भुनाई कर लेते हैं और मय पीने के शौक़ीन इसके साथ देसी मिस्टर लाइम-महुआ-संतरा-मस्ती या कुड़ी मसाला या दूसरी देसी दारू के साथ इसका जोड़ जमाते हैं. इसको महुए की शुद्ध शराब के साथ भी लेते हैं,सौंफ़ी या नौसादर या क्रीक भी कई लोग आज़मा लेते हैं. अंग्रेज़ी तो नफ़ासती साहब लोगों की चीज़ है हे साहब,इसके साथ उसका जोड़ा नहीं,ये गँवई चखना तो देसी मांगता है बाबू देसी. एकदम टटका शुद्ध मसालेदार या सादा रंगीन माल छैला बाबू,एकदम टटका जी टटका. खा के होरहा,पी के टटका,गाँव का छैला मेड़ पे मटका.
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