डॉ शारिक़ अहमद ख़ान
ये रसियावल है. कल शाम आज़मगढ़ ज़िले के मेरे पैतृक निवास गाँव से आया. इसे बखीर भी कहा जाता है,लेकिन मेरे गाँव और आसपास की भाषा में इसका नाम रसियावल है. ख़ासतौर से मुस्लिम बाहुल्य गाँवों के मुसलमान रसियावल कहते हैं. बखीर शब्द का इस्तेमाल हमारे यहाँ के हिंदू हज़रात करते हैं. रसियावल पकाना मेहनत का काम हैे. ये कभी अच्छा बनता है मिट्टी की मेटी में गोइठे मतलब कंडे या सरकंडे की हल्की आंच पर पकाया जाए. इसे बनाने के लिए गन्ने के ताज़े रस को मिट्टी की मेटी में उबलने दिया जाता है,उबलते समय रस में से जो ख़राब हिस्सा निकलता है उसे कटोरी या चम्मच से निकालते जाते हैं. जब रस ख़ूब गाढ़ा हो जाता है तब इसमें चावल पड़ता है. रसियावल के लिए नया चावल ज़्यादा मु़फ़ीद माना जाता है. ये रसियावल भी मेरे खेत के नए आदमचीनी चावल में है. चावल अब मेटी में गलने लगता है,हौले-हौले गलता है. बीच में कुछ लोग गरी या मेवा भी इसमें मिला देते हैं. जब रसियावल पक जाता है तो इसे और सोंधापन देने के लिए मिट्टी की नई मेटी में जमा दिया जाता है. फिर इसे कम से कम एक पहर बाद खोला जाता है. अब स्वादिष्ट रसियावल तैयार है.
कल शाम जब मिट्टी की मेटी में जमा सियावल आया तो थोड़ा हमने कल खाया और ज़्यादा सुबह के लिए बचा रखा. फिर सुबह खाया. क्योंकि रसियावल को बसियाऊर मतलब दूसरे दिन बासी खाने से परम आनंद की प्राप्ति होती है. इसे सुबह बासी खाने का ग्रामीण अंचलों में ख़ूब चलन है. कुछ लोग रसियावल में पसंद के हिसाब दूध और बालाई मतलब मलाई मिलाकर भी खाते हैं. हमें दो दोनों तरह से पसंद है,सादा भी और दूध या बालाई वाला भी. बहरहाल,रसियावल से डॉ.राही मासूम रज़ा के उपन्यास 'नीम का पेड़' पर बने दूरदर्शन के टीवी धारावाहिक की याद आ गई. धारावाहिक में कुछ यूँ रहता है कि भदरसा ख़ुर्द ज़िला सुल्तानपुर के ज़ामिन मियाँ बुधईया को रसियावल और अन्य फ़सली चीज़ें देकर अपने बहनोई मियाँ मुस्लिम डिप्टी मिनिस्टर यूपी सरकार के पास ट्रेन से लखनऊ भेजते हैं. बुधईया के साथ ज़ामिन मियाँ की बूढ़ी अम्मा भी रहती हैं. बुधईया ट्रेन से लखनऊ में उतरता है तो एक तांगे पर सवार होता है. तांगे वाला लखनवी नफ़ासत का रहता है. बुधईया से पूछता है कि 'बक़िब्ला मियाँ कहाँ से तशरीफ़ ला रहे हैं और कहाँ ले जाएंगे'. बुधईया को बात समझ नहीं आती है. उसके हिसाब से मियाँ तो ज़मींदार ज़ामिन और मुस्लिम मियाँ हैं जिनकी वो प्रजा है. इसलिए बुधईया नाराज़ होता है,तांगेवाले से कहता है कि 'का कहत हो जी बकबक,हम कहाँ मियाँ हैं जी,हम त म्याँ के चाकर हैं,बुधई उर्फ़ बुधईया उर्फ़ बुधिराम'. तब तांगेवाला हँसता है और कहता है कि अच्छा बुधिराम साहब आप कहाँ से तशरीफ़ ला रहे हैं और कहाँ ले जाएंगे,ये तो बताइये.
अब बुधईया को फिर बात समझ नहीं आती है. वो ठहरा खांटी ग्रामीण आदमी जो धरती से उपजी हुई भाषा ही बोलता है और समझता है,उसके ज़ामिन मियाँ भी उससे इसी भाषा में बात करते हैं और आमतौर पर यही भाषा बोलते हैं. इसलिए तशरीफ़ का मतलब ना समझने पर बुधईया तांगेवाले से कहता है कि 'हम तशरीफ-फरसीफ नहीं लाय रहे हैं,हम त मियाँ मुस्लिम के वास्ते रसियावल अमरूद का खमीरा अऊर अरूवा चावल लाय रहे हैं'. अब तांगेवाला ठहाका लगाता है और कहता है कि अच्छा जनाब,मैंने कान पकड़े,ये बताइये कि आप कहाँ जाएंगे. अब ज़ामिन मियाँ की अम्मा भी हँसने लगती हैं. तब तांगेवाला उनसे भी पूछ बैठता है कि आप कहाँ जाएंगी. ये सुन बुधई तांगेवाले पर कुपित हो जाता है,पीटने को तैयार हो जाता है,कहता है कि तुम बीबीजी से कईसे बात किहो,हम मरद हैं,मियाँ के ख़ास आदमी हैं,हमसे पूछो. तांगेवाला डर जाता है,हाथ जोड़ लेता है,कहता है माफ़ी बुधई साहब. अब बुधईया तांगेवाले को बताताै है कि सुनौ,हम जावेंगे मियाँ मुस्लिम डिप्टी मिनिस्टर के यहाँ. तांगा चल देता है. रास्ते में तांगेवाला बुधईया से पूछता है कि मियाँ मुस्लिम कहाँ रहते हैं.
अब बुधई फिर नाराज़ हो जाता है. कहता है कि 'नखलऊ' मा हम रहत हैं कि तूँ,तब हमका का मालूम ऊ कहाँ रहत हैं'. अब तांगेवाला कहता है कि अच्छा जनाब,कोई बात नहीं,वो मिनिस्टर हैं तो पता चल ही जाएगा. अब बुधईया मुस्लिम मियाँ के यहाँ तांगे से पहुँच जाता है,उतरता है और रसियावल की मिट्टी की मेटी लिए मुस्लिम मियाँ के पास पहुंचता है. गोल कमरे में ज़मीन पर उँकड़ू बैठ जाता है. कपड़े से बंधी मेटी को खोलने लगता है. मियाँ मुस्लिम पूछते हैं कि इसमें क्या लाया है बे. तब बुधईया मेटी खोल दिखा देता है और कहता है कि 'म्याँ आपके वास्ते रसियावल भेजेन हैं'. रसियावल देख मियाँ मुस्लिम सरकारी कागज़ किनारे रखते है और बहुत ख़ुश हो जाते हैं. कहते हैं कि ये भाईजान भी कितनी छोटी-छोटी ख़ुशियों का ख़्याल रखते हैं. अब बुधईया कहता है कि हाँ मियाँ,सो तो है,सबकी खुसी का खियाल रखत हैं,हमका भी नवा जोड़ा-जामा पहिनाय के भेजेन हैं,आप रसियावल खाएं मियाँ. अब मियाँ रसियावल बहुत चाव से खाने लगते हैं.
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