एक था सोपान !

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एक था सोपान !

विवेक शुक्ल 

 सोपान के बाहर अब उसके नए मालिक की नेम प्लेट जल्दी ही टंग जाएगी. साउथ दिल्ली के पॉश गुलमोहर पार्क का लैंड मार्क घर अब बिक गया है. ग्रीन पार्क मेट्रो स्टेशन से आप तीन-चार मिनट में गुलमोहर पार्क में प्रवेश करते हैं. यह कॉलोनी 1970 के दशक के आरंभ में बननी शुरू हुई थी. तब ही गुलमोहर पार्क में हिन्दी साहित्य के शिखर पुरुष हरिवंश राय बच्चन और उनकी पत्नी तेजी बच्चन सुबह से शाम तक अपने घर सोपान को बनता हुआ देखते थे. तब तक बच्चन दंपती के बड़े पुत्र अमिताभ बच्चन को बॉलीवुड में सफल होने में कुछ वक्त और शेष था. छोटे पुत्र अजिताभ भी अपने करियर को बनाने संवारने में लगे थे.


सोपान को अमिताभ बच्चन ने 23 करोड़ रुपए में बेच दिया है. इस 300 वर्ग गज के घर की यह कीमत वाजिब है. यह बच्चन कुनबे का पहला घर था. सोपान को खरीदने वाले शख्स का नाम अवनी बदर है. साउथ दिल्ली में रहने वाले अनवी बिस्कुट और इंफ्रास्ट्क्चर क्षेत्र के बिजनेसमैन हैं. वे अब बी 7 गुलमोहर पार्क यानी सोपान के नए मालिक हैं! 


 कब छोड़ा बच्चन जी ने दिल्ली


अमिताभ बच्चन बॉलीवुड में कायमाबी की बुलंदियों को छूने लगे तो बच्चन जी अपने गुलमोहर पार्क के मित्रों-पड़ोसियों को बताने लगे कि मुन्ना ( अमिताभ का घर का नाम) हम दोनों को अपने साथ बंबई (मुंबई) लेकर चलने के लिए कह रहा है. फिर डॉन फिल्म की अपार सफलता के बाद अमिताभ बच्चन अपने माता-पिता को मुंबई ले गए. यह 1979 की बात है. उसके बाद बच्चन दंपती मुंबई में ही बस गए.


 फिर सोपान में बच्चन परिवार के किसी सदस्य का आना-जाना लगातार घटता गया. वरिष्ठ कवि सुभाष वसिष्ठ बताते हैं कि बच्चन दंपती कभी-कभार किसी कार्यक्रम में भाग लेने दिल्ली आते तो सोपान में ठहरते. वे सुबह-शाम फिर से यहां के पार्क में घूमने के लिए आ जाते. सुभाष वसिष्ठ का घर सोपान के साथ ही है. सोपान 1980 के दशक के आरंभ से ही सुनसान हो गया था. शाम को इधर कभी कोई लाइट जल जाती तो कभी अंधेरा पसरा रहता. यहां पर कभी-कभार केयरटेकर आ जाता था.


तेजी बच्चन के नाम था सोपान


गुलमोहर पार्क में कई पत्रकारों ने प्लॉट लेने से मना कर दिया था क्योंकि तबतक इस जगह को दिल्ली वाले उजाड़ ही मानते थे. उस दौर में दिल्ली वालों को कनॉट प्लेस और चांदनी चौक के आसपास ही रहना पसंद था. तब तक दिल्ली का विस्तार कहां हुआ था. इस कारण गुलमोहर पार्क के कई प्लॉट बिक नहीं रहे थे. तब एक तीन सौ  गज़ का प्लॉट आकाशवाणी में काम कर रहीं तेजी बच्चन ने खरीदा. गुलमोहर पार्क मैनेजमेंट कमेटी ने मीडिया से मिलते जुलते पेशे से जुड़े लोगों को भी प्लॉट आफर किये थे. इसलिए तेजी जी को प्लाट दे दिया गया.  1969 में गुलमोहर पार्क की ज़मीन की कीमत 40 रूपये प्रति गज़  थी. हाल के दौर में इधर कई पत्रकारों ने मोटी कामतों पर घर बेचे . अब गुलमोहर पार्क में कई नामी वकील भी आकर रहने लगे हैं.


सोपान की होली- दिवाली


सोपान की होली- दिवाली सारे गुलमोहर पार्क में मशहूर हुआ करती थी. उसमें सारा बच्चन कुनबा शामिल रहता था. हरेक अतिथि को एवरग्रीन स्वीट्स की मिठाई खिलाई जाती थी.  एक बार दिवाली पर अनार जलाते हुए अमिताभ बच्चन के हाथ जल गए थे. एक अरसे से सोपान में दिवाली के मौके पर केयरटेकर आलोक सज्जा अवश्य कर देता था. गुलमोहर पार्क के पुराने लोगों को याद है जब बच्चन जी यह सुनिश्चित करते थे कि अमिताभ की हर फिल्म यहां के उनके मित्र भी देख लें. वे सबको फिल्मों के कैसेट देते थे. कहते थे, “ मुन्ना ने इस फिल्म में बेजोड़ काम करके दिखा दिया है. आप भी इस फिल्म को देखिए.” 


वरिष्ठ कवि डा.गोविन्द व्यास का घर सोपान के साथही है. वे बताते हैं कि अमिताभ बच्चन दिवाली और होली जैसे पर्वों के अलावा भी इधर लगातार आते-रहते थे. उस दौर में सोपान  हिन्दी प्रेमियों का तीर्थस्थल बन गया था. इसके ड्राइंग रूम में बैठकों के दौर चलते थे. इधर लगातार साहित्यिक गोष्ठियां आयोजित होती. इनमें बच्चन जी भी अपनी रचनाएं पढ़ते. गुलमोहर पार्क में लंबे समय से रह रहे केवल कौशिक बताते हैं कि बच्चन जी शाम को अवश्य गुलमोहर पार्क क्लब में मित्रों के साथ मिल-बैठ के लिए पहुंचते थे. उन्हें गुलमोहर पार्क में गोपाल प्रसाद व्यास, अक्षय कुमार जैन, विनोद कुमार मिश्र, गिरीलाल जैन जैसे लेखक पत्रकारों के साथ बैठना पसंद था.


सोपान में हरिवंश राय बच्चन जी की निजी लाइब्रेयरी भी बेहद समृद्ध थी. उसमें हजारों किताबें करीने से रखी हुईं थीं. बच्चन जी यहां पर बैठा करते थे. अमिताभ बच्चन ने कई बार अपने ब्लॉग में अपने पिता की लाइब्रेयरी का जिक्र भी किया है, जिधर जाकर उन्हें नई उर्जा प्रेरणा मिलती थी.

साभार नवभारत टाइम्स 

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