कोस कोस पर बदल जाती है चटनी

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कोस कोस पर बदल जाती है चटनी

नई दिल्ली .खाने में चटनी का अपना अलग महत्त्व है. चटनी तरह-तरह की होती है. तरह-तरह की चटनियों से खाने का स्वाद बढ़ता है लेकिन गरीबों के लिए चटनी सालन भी है और भाजी भी. चटनी के साथ भात या फिर रोटी से वे पेट भरते हैं और मस्त हो जाते हैं. यानी चटनी हो तो खाने का मजा भी बढ़ता है और पेट भी भरता है. वैसे चटनी मुहावरों में भी इस्तेमाल होता है. दिलचस्प यह है कि चटनी न जाने कितने तरह की होती है और कितने तरीकों से बनाई जाती है. इलाके के साथ-साथ चटनी की स्वाद भी बदलता है और रंग भी. जनादेश लाइव के साप्ताहिक कार्यक्रम खाने के बाद-खाने की बात में चटनियों पर चर्चा हुई. चर्चा का संचालन किया प्रियंका संभव ने और इसमें हिस्सा लेने वाले खास मेहमान थे लेखक-चित्रकार चंचल, खान-पान की जानकार पूर्णिमा अरुण, शेफ अन्नया खरे, पत्रकार आलोक जोशी और  अंबरीश कुमार.

प्रियंका संभव ने चटनियों पर बातचीत करते हुए कहा कि खाने की थाली बिना चटनियों के स्वादिष्ट हो ही नहीं सकता. तरह-तरह की चटनी और उसका स्वाद मुंह में पानी भी लाता है और लुभाता भी है. चटनियों पर चटकारा लेने की शुरुआत अंबरीश कुमार ने कन्याकुमारी से की. सत्तर के दशक के अंतिम दौर की बात है परिवार के साथ कन्याकुमारी गया हुआ था. वहां विवेकानंद आश्रम में हम ठहरे थे. वह बहुत पुराना और बड़ा आश्रम है. रात का खाना आया केले के पत्ते पर. खाने में चावल था, सांभर था और कुछ चटनियां थीं. साथ में मट्ठा था जो वहां अलग से देते हैं. मुझे सांभर पसंद नहीं आया था क्योंकि उसमें वह सारी सब्जियां थीं, जिनसे हमलोग परहेज रखते थे. उसमें कद्दू था, सहजन था, बैगन था. चटनियां तीन तरह की थीं. एक तो लाल चटनी थी, सफेद नारियल की चटनी थी और एक सूखी चटनी थी. मैंने पूरा चावल उन चटनियों के साथ ही खा लिया. इसी तरह बस्तर के हाट-बाजार की घटना है, वहां चींटियां होती हैं. लाल चीटियां, उनकी वहां चटनी बनाई जाती है. आदिवासी उन्हें बहुत चाव से खाते हैं.

चंचल ने बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह विषय बहुत अच्छा है. चटनी का रिश्ता शरीर से है. शरीर में दो तत्व बहुत जरूरी हैं. ये दो तत्व मुतवातिर बनी रहती हैं. एक है पानी और दूसरा है नमक और कोई भी चटनी ऐसी नहीं बनी है जिसमें पानी और नमक न हो. किसी न किसी तरह से दोनों होते ही हैं चटनी में. इसलिए इसका नाम चटनी पड़ा है और चटनी खाया नहीं, चाटा जाता है. इसका रिश्ता जीभ से है. मजेदार बात यह है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में चले जाएं चटनी मिलेगी किसी न किसी रूप में, नाम भले उसका अलग हो सकता है. क्योंकि शरीर के लिए जिस तरह आक्सीजन की जरूरत होती है तो खाने के लिए नमक जरूरी होता है. जहां नमक की कमी होगी वहां चटनी को सब्सटीच्यूट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. तो दुनिया में जहां भी आप जाएंगे, चटनी की जरूरत आपको महसूस होती है. चाहे सॉस हो या किसी और रूप में, वह चटनी आपको मिलती रहती है. गांव में चटनी का रिवाज बहुत ही दिलचस्प है. इसके लिए बहुत कुछ करना नहीं पड़ता.

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