डा शारिक़ अहमद ख़ान
सर्दी शदीद थी तो आज मुर्ग़ टिक्का बिरियानी बनवायी.स्मोकी फ़्लेवर देने के लिए हमने ख़ुद जलता कोयला रख देगची को ढक दिया.कोयले से याद आया कि हम एक बार बरसों पहले किसी दूसरे शहर में गए.हिंदू कल्चर में पगा शहर था.अब हम बिना गोश्त के डिनर तो करते नहीं,लिहाज़ा उम्दा गोश्त की खोज मची.शहर में नदी पार की एक ऐसी दुकान का पता चला जो गोश्त लज़ीज़ पकाता था.उसके यहाँ तशरीफ़ ले गए.गोश्त का हिंदू होटल वाला शामी कबाब भी तले बैठा था.
रात का वक़्त,सर्द मौसम,गहन सन्नाटा.अब उसके यहाँ से मटन पैक करवाया और कबाब भी पैक करवाए.मटन तो उसने पैक कर दिया,लेकिन जब वो कबाब पैक कर डिब्बा बंद करने को हुआ तो बंद करने से पहले उसने हमसे पूछा कि क्या आपको नदी पार करनी है.हमने कहा हाँ करनी है.अब उसने एक जलते कोयले का टुकड़ा कबाब के डिब्बे के अंदर रख दिया.कोयला रखने की वजह पूछी तो कहने लगा कि अगर कोयला नहीं रखा तो पुल पर चढ़ते ही जिन्नात परेशान कर देंगे,सब लोग ऐसा ही करते हैं,जो बिना कोयला धराए गया उसका कबाब जिन्नातों ने पुल पर लूट लिया और इंसान को उठाकर नदी में फेंक दिया.पूरी की पूरी गाड़ियों समेत लोगों को उठाकर फेंक देते हैं.इसलिए किसी बाबा के कहने पर कोयला रखा जाने लगा.जब कोयला रखा होता है तो जिन्नात परेशान नहीं करते,उन्हें गोश्त और कबाब वग़ैरह पसंद होता है और किसी की हिम्मत नहीं होती कि बिना कोयला रखा गोश्त या कबाब का डिब्बा लेकर नदी पार कर जाए.ये सुन हमने होटल वाले से कहा कि जब जिन्नातों से इतना डरते हो तो गोश्त क्यों खाते हो,हटा मेरे डिब्बे सेेेे कोयले का टुकड़ा,हम ज़िन्दा पीर हैं,मेरे क़ब्ज़े में एक से बढ़कर एक ख़तरनाक और तिलिस्मी जिन्नात हैं,हल्के-फुल्के जिन्नात हमें देख डर से नदी में डुबकी लगा लेंगे.तब होटल वाले ने कोयला हटा दिया और हम गोश्त समेत कबाब लेकर पुल से नदी पार कर अपने स्थान पर आ गए,कोई जिन्नात हमसे रास्ते में नहीं मिला.
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