सुदीप्ति
मकर संक्रांति या खिचड़ी एक ऐसा त्योहार रहा जिसमें बनने वाली दोनों चीजें हमको बचपन से ही नापसंद रही. हम चूड़ा नहीं कहते चिवड़ा कहते और वह हमको बस सुरका के रूप में अगहनी धान का कातिक में पेरे जा रहे नए गुड़ के साथ पसंद रहा. दही के बिना. खिचड़ी तो खासी ना पसंद.बचपन में भी भुनभुनाते हुए गटकते थे. बचपन में तो आलम यह था कि लाईऔर तिलवा खाकर ही खिचड़ी बिता देते थे. चिवड़ा दही विधि के लिए खाते थे और खिचड़ी के वक़्त पेट भरा है कहते थे.
पर जैसे जैसे बड़े हुए अपनी ग्रामीण संस्कृति की इन चीज़ों से उतना ही प्यार होने लगा. आज भी चिवड़ा दही हम रोज़ नहीं खा सकते पर जब भी खाते हैं स्वाद लेकर ही. इसमें गुड़ होना ही चाहिए वह भी अपने जवार की खुशबू वाला . मेरठ-मुजफ्फरनगर नगर वाले गुड़ से अभी भी उतनी मोहब्बत नहीं. जो भी छठ या उसके आसपास घर जाता है वह गुड़ लेकर आता है. काले तिल की लाई तो मायके या ससुराल से बनकर दिसंबर जनवरी में जरूर आती है (अगर कोई भी आए)
खैर बात चिवड़ा दही की हो रही है. तो बीते कुछ बरसों से ईया की तरह की सजाव दही जमाने का रोग लगा है. हालांकि दिल्ली में मिट्टी की नदिया मिल भी जाए तो चलती नहीं है. नोनी जमने लगता है. तो क्ले या स्टील में ही पक्का पझा के जमाती हूँ. इस दही का थक्का देखिए, रंग देखिए समझ जाएँगे पझाने का मतलब. दही चिवड़ा में चिवड़ा शहरी पोहा वाला नहीं चाहिए. तीन पोहे की मोटाई को शामिल कर जो चिवड़ा होता है वही दही के साथ खाते है. दिल्ली के दुकानदारों के कहे अनुसार बासमती चिवड़ा पर लुभा कर बेवकूफ मत बनिए. चंपारण का कतरनी चिवड़ा, मोतिहारी-बेतिया का मिर्ची चिवड़ा, गोविंदभोग चिवड़ा जैसे ढूंढिए. हाथ में लेकर देखिए. वैसे भी धान की नई फसल का उत्सव है यह त्योहार.
आप चाहे तो धोकर खाएँ, चाहे दूध में भिगो कर या मुझ जैसे चुड़-चुड़ करते चिवड़े के लिए सीधे दही में डाल कर. उसका स्वाद आपको खुद ढूंढना पड़ेगा. जैसे अंडे का कौन सा रूप( बॉयल्ड, सक्रम्बल, ऑमलेट, भुर्जी) आपको पसंद यह आप ही पता करते हैं न? मेरे ही घर में कोई चिवड़े को पूरा फुला कर नरम कर खाता है, कोई जल्दी से एक पानी धोकर और मैं बिल्कुल कड़ा, कुरकुरा. चिवड़े के साथ दही एक दम ताज़ी और ठोस होनी चाहिए. गुड़, शक्कर या ऐसी ही देसी चीज़ के साथ खाएँगे तो आनंद ज्यादा है.
यह बेसिक है. इसके बाद की चीजें फिर लग्ज़री. जैसे हमने आलू-गोभी-मटर का दम, काबुली चने और कोहड़े की तरकारी, भरुआ मिर्ची का अचार, धनिए-लहसुन की चटनी, तिलकुट, गज़क सब खाया. पर तस्वीर उनकी नहीं दे रहे.वे सब अपने स्वाद, बना सकने के सामर्थ्य और मन पर है. ये बेसिक है जो खिचड़ी की सुबह नहा-धोकर हमारी तरह सभी खाते हैं.
तो सही टेकनीक से चिवड़ा-दही खाइए, प्रभु के गुण गाइए.
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