कहावत है खिचड़ी के चार यार .....पापड़ अचार खाएं पर रोज नहीं .खिचड़ी में घी से परहेज करें मक्खन डालें . यह उनके लिए जिन्हें कफ हो वे घी से परहेज करे पर पित्त हो तो मख्खन से खिचड़ी खाएं और वात हो तो बिना घी बिना मक्खन वाली खिचड़ी खाएं .रोगों से बचने का एक ही रास्ता है कि त्रिदोष को संतुलित रखें. और त्रिदोष को संतुलित रखने का उत्तम रास्ता है प्रवृति के अनुरूप ही भोजन व व्यवहार करें. पूर्व में हम जान ही चुके हैं कि प्रवृति के अनुसार आहार- व्यवहार कैसे रखना है . जैसे आपके जोड़ों में दर्द है या खाने के बाद पेट फूलता है तो आप वात रोगी है. आपको वात नाशक भोजन करना होगा। मीठा,खट्टा,नमकीन रस वाला घी में बना गर्म भोजन।जैसे-गर्म गर्म पूरी सब्जी. यदि खिचड़ी खानी हो तो घी के साथ ही खायें।कफ जनित रोगों- जुकाम खाँसी में कफ कम करने वाला कड़वा,कसैला बिना घी का गर्म भोजन करें. जैसे- सरसों के तेल में बनी हरी मैथी गाज़र की सब्जी बिना घी चुपड़ी रोटी के साथ गर्म गर्म खाएं।खिचड़ी खानी हो तो बिना घी की खाएं.
एक प्रयोग और करें
पांच अन्न गेंहू ,मूंग ,मोठ को अंकुरित कर उसमे मक्के का दलिया मिलाने का सुझाव दिया था .अन्न तो पांच पर्याप्त है लेकिन शाक सब्जी तो ग्यारह भी कम हैं .बस उसके तालमेल का ध्यान रखें .पांच शाक पोई ,चौलाई ,कुल्फा ,नारी का साग और पालक थोड़ी थोड़ी मात्र में लें .सब्जियों में लौकी ,आलू ,परवल ,मीठा कद्दू ,टिंडा ,बैगन ,टमाटर ,कच्चा केला भी .कमलककड़ी खानी हो तो उसे अन्न के साथ बाप में गलाना होगा .यदि कुरकुरी पसंद हो तो अन्न के साथ पकाना जरुरी नहीं है .परिवार में बच्चों ,बूढों को क्या पसंद है उसका ध्यान रखना चाहिए .
यह याद रखे कि नुस्खा स्टयू का है खिचड़ी का नहीं .इसलिए सब्जियां अन्न से तीन गुना होनी चाहिए .लौकी केले के अलावा अन्य सब्जी छीलना जरुरी नहीं है .लौकी को भी परवल की तरह मामूली खुरचें .आलू ,टिंडे की सिर्फ मिटटी साफ़ करें .परहेज और असवाद न हो तो अदरक ,हरी मिर्च ,कच्चा आम अवश्य डालें .सरसों के तेल या गाय के घी में ही इसे बनाएं .जहां तक संभव हो भैंस का दूध ,दही और घी जल्द से जल्द त्याग दें .बस गेंहू की खिचड़ी (समर स्टयू )को गुजराती उंदीए की तरह मिटटी के घड़े में भी पका सकते हैं .लेकिन कांति मिटटी (कच्चा लोहा )की कड़ाही बहुत ही उपयुक्त बर्तन है .शुक्रवार से
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