काली गाजर का हलवा

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काली गाजर का हलवा

डॉ शारिक़ अहमद ख़ान 

मौसम-ए-सरमा मतलब सर्दियों के मौसम में काली गाजर का हलवा ख़ूब पसंद किया जाता है.काली गाजर को हमारे आज़मगढ़ में जानवरों को खिलाने वाली गाजर भी कहा जाता था,वजह कि जानवरों को खिलाने के लिए ही काली गाजर उगायी जाती.ख़ुद हमारे खेतों में भी इसी वजह से काली गाजर की काश्त होती.कहते थे कि काली गाजर खाने गाय-भैंस दूध ख़ूब देती हैं.अब हमारे यहाँ इसकी काश्त नहीं होती,अब भैंसों को पशु आहार खिलाने का दौर है.काली गाजर अपेक्षाकृत लाल गाजर के कहीं अधिक पौष्टिक होती है,इस वजह से भी उस दौर में भैंसों को काली गाजर खिलायी जाती थी.

इस मौसम में हमारे आज़मगढ़ के मुस्लिम खानपान के कल्चर में काली गाजर का हलवा शामिल हो जाता है जो ज़्यादा मात्रा में बनता है और अलाव तापते लोगों को शाम को परोसा जाता है.अब काली गाजरें ख़ासतौर से हलवे के लिए ही उगायी जाती हैं.आज़मगढ़ में ख़ूब मिलती हैं,लखनऊ में ज़रा कम.बीते दिनों हमने एक पोस्ट में हलवा बनाने के लिए आयी काली गाजर की तस्वीर भी लगायी थी.घर में भी काली गाजर का हलवा बनता है,हमारे यहाँ भी गांव में बनता है.लखनऊ में हलवाई ख़ूब कसरत से काली गाजर का हलवा बनाते हैं,बीते दिनों लखनऊ के चौक के रामआसरे हलवाई और रहमत अली हलवाई की काली गाजर के हलवे का ज़िक्र हमने यहाँ पोस्ट में मय तस्वीर किया था. 

आज तस्वीर में जो काली गाजर का हलवा दिख रहा है ये लखनऊ के क्रिश्चियन कॉलेज के पास स्थित हलवाई की दुकान से हमने मंगाया है.वहाँ मौसम में काली गाजर का हलवा ख़ूब बनता है.पुराने लखनऊ के लोग इसे खाना ज़्यादा पसंद करते हैं.काली गाजर का हलवा सर्दियों में लाभकारी माना गया है,सिफ़त का गर्म होता है,इसकी लज़्ज़त भी लाल गाजर के हलवे से ज़रा हटकर होती है,हल्का सा खट-मिट्ठापन लिए होता है.काली गाजर के हलवे को शक्ति वर्धक हलवा भी माना गया है. 

रवायत में कहते हैं कि काली गाजर का हलवा शकर के मरीज़ों मतलब शुगर के मरीज़ों को ध्यान में रखकर भी पुराने दौर के हकीमों ने बनवाना शुरू किया और वहीं से इसका चलन शुरू हुआ,कहते कि काली गाजर में कम शुगर कंटेंट होता है और कुछ ऐसी चीज़ें होती हैं जिसकी वजह से शकर के मरीज़ इसे चाव से खा सकें और नुकसान भी ना करे.बहरहाल,ये तो रवायत की बात है,आधुनिक मेडिकल साइंस के साथ-साथ हम भी इसका समर्थन नहीं करते.हाँ,स्वस्थ लोग काली गाजर का हलवा इस मौसम में ख़ूब खाएं,इसकी लज़्ज़त के क्या कहने,जिसने भी खाया अश-अश कर बैठा और मुरीद हुआ. साभार 


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