चंचल
हम जब गांव में रहते हैं तो शहर को उतार कर दालान की खूंटी पे टांग देते हैं . एक लुंगी कुर्ता और चप्पल पहन कर दिन भर आवारागर्दी करते हैं . चौराहे की सभ्यता ने गाँव को बिगाड़ दिया है . गाँव में घुसने की जरूरत ही नहीं सब एकसाथ एक जगह चौराहे पर ही मिल जायंगे . चाय पीते . पान घुलाये . बीड़ी धौंकते . सब गड्ड-मद्द हो गया है .
गाँव के घरों में बस औरते रह जाती हैं और वो बच्चे जो खुद चलकर चौराहे तक नहीं पहुच् पाते . जब हम छोटे थे ,गाँव में जाते थे .खेलने ,आम बीनने , होली के लिए जलावन चुराने , नौटंकी देखने , मारनी करनी तब गाँव की शक्ल ऐसी नहीं थी . गो कि देश आजाद हो गया था पर विकास गांव की तरफ नहीं आया था . लोग मिल जुल कर अपने को विकसित किये जा रहे थे . लोहार ,कुम्हार .जुलहा ,धुनिया , हेला .डफाली ,नाई , सोनार ,चमार धरिकार .पासी औरत मर्द सब एक परिवार की तरह थे . बाभन ठाकुर सब . हर कोइ हर किसी का कुछ न कुछ लगता था . गाँव में एक शादी पडी कि पूरा गाँव उस उत्सव में शामिल . हँसी मजाक सब कुछ .
धरिकार दौरी बना कर ला रहा है ,सफाली सूप . नाटिं गारी गा रही है .कुम्हार भारुका ,हांडी ,कलश सब मिट्टी का .मुसहर दोना पत्तल .औरतें बाभन की हों या बाबूसाहेब की 'आँचर 'फैलाकर पूजा करती थी (हैं ) ...किरपाल लोहार अड़े बैठे हैं -इत्ते से काम ना चली , नेक द . नेक में पीतल क परात चाही .सूप 'छूवाई ' क दिन है पूरे गाँव की औरते जुटी हैं अपना अपना सूप लेकर .
हर सूप में उरद है . हर चहरे पर उमंग है . आँगन में हंसी ठट्ठा है . सलीम सूप लेकर आये हैं .नेग चाही -'बेटा क बिआह है ,बिटिया के शादी में कुछ मागे रहे का ? त द अबकी ! सलीम को साइकिल मिली पुरानी ही सही .पर सब बदल रहा है चट मंगनी पट बिआह . प्लास्टिक ने मार दिया . शहर का कचड़ा गाँव में गिर चुका है. प्लास्टिक की गिलास कप . ....
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