रामगढ़ (नैनीताल )रामगढ़ डायलॉग ऑनलाइन परिचर्चा के दूसरे दिन रविवार को पहले सत्र के दौरान साहित्य में हाशिया विषय पर गंभीर चर्चा हुई. इस दौरान वरिष्ठ साहित्यकार असगर वजाहत, ममता कालिया, रणेंद्र और अजय नावरिया ने अपने विचार रखें. परिचर्चा का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी विभूति नारायण राय ने किया.
वरिष्ठ साहित्यकार असगर वजाहत ने कहा कि हाशिये या कमजोर वर्ग के रचनाकार का लेखन बुनियादी सवाल उठाता है. ये सवाल सत्ता को पसंद नहीं है. जैसे आदिवासी अगर जल-जंगल-जमीन के सवाल उठा रहे हैं, उसे सत्ता पसंद नहीं करेगी. आज देश के सामने जो बड़े सवाल हैं, वह इन्हीं विमर्शों से सामने आ रहे हैं, जिनकी उपेक्षा की जा रही है. हाशिये के लेखन को प्रमाणित और सिद्ध करने के लिए अधिक श्रम करना पड़ता है.
वरिष्ठ साहित्यकार ममता कालिया ने कहा कि जब हम हाशिये की बात करते हैं या हाशिये पर खड़ी स्त्री की बात करते हैं तो सबसे पहले महादेवी वर्मा की याद आती है. पहले जब पत्रिकाएं निकलती थीं, तब कहीं एक जगह उनका नाम होता था. लेकिन 21वीं सदी में आज दिख रहा है कि हाशिया मुख्य हो गया है. हाशिये की स्त्री वह है, जिसने हाशिये तोड़े हैं, जिसने अपने को मुख्यधारा में शामिल किया और आज गर्व से कहतीं हैं, मैं लेखिका नहीं लेखक हूं, क्योंकि लेखन जेंडर फ्री काम है.
प्रसिद्ध दलित लेखक अजय नावरिया ने कहा कि हम जब यह मानते हैं कि यह हाशिये की आवाजें हैं तो हम अपने अवचेतन में यह स्वीकार कर रहे होते हैं कि कोई मुख्यधारा है. मेरा मानना है कि साहित्य में मुख्यधारा जैसा कुछ नहीं है. अगर मुख्यधारा होती है तो वह बहुत सारी धाराओं से मिलकर ही बनती है. कई दलित लेखकों के पास कलात्मक रचनाएं हैं, लेकिन उनकी कमजोर रचनाओं पर बात की जाती है, जिसे लोग अच्छा नहीं कहते हैं, क्योंकि जटिल कहानियां समझने को वह वर्ग पैदा नहीं हुआ है.
कथाकार रणेंद्र ने आदिवासी जीवन, उसके साहित्य और हिंदी तबके में उपेक्षा पर सवाल उठाए. कई रचनाकार आदिवासियों को खल पात्र के रूप में अपनी रचनाओं में लाते हैं. मुझे इस पर आपत्ति है. आदिवासियों को अलग नजरियों से देखने की जो अनुकूलता है, उससे जब तक हिंदी समाज नहीं निकलेगा तब तक यह स्थान नहीं पाएगा.
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments