संजीव भगत
मुनस्यारी कुमाऊँ का लोकप्रिय पर्यटक स्थल है .यहाँ से विराट और भव्य हिमालय के साक्षात दर्शन होते हैं.बंगाली पर्यटकों के लिए तो मुनस्यारी पहुँच बगैर कुमाऊँ की यात्रा पूरी ही नहीं होती .
आज विश्व पर्यटन दिवस पर बात पर्यटक स्थल मुनस्यारी को जोड़ने वाली मुख्य सड़क की है .आजकल थल से मुनस्यारी तक सड़क मार्ग से यात्रा करना साक्षात यमराज के दर्शन करने जैसा अनुभव है.थल से मुनस्यारी 70 किमी रोड़ पचास से ज्यादा जगह छिन्न-भिन्न है.स्थानीय लोग जिन्दगी की जरूरतों के लिए जान जोखिम में डालकर जैसे-तैसे यात्रा कर रहे हैं लेकिन पर्यटकों के लिए मुनस्यारी पहुंचना बहुत मुसीबत है.टूरिस्ट को घुमाने वाली गाड़ियां भी वहाँ जाने से कतरा रही हैं.आजकल वहाँ रोडवेज और केएमओयू की गाडियाँ भी नहीं चल रहीं हैं.
उत्तराखण्ड राज्य बनने से पहले भी मुनस्यारी सड़क मार्ग से जुड़ा था शायद तब इतने हालत खराब नहीं थे .पूरी सड़क जगह जगह धंस रही है.कहीं-कहीं पांच से दस मीटर तक सड़क धंस चुकी है.दर्जनों जगह बरसाती झरने बह रहे हैं.पानी और पत्थर सड़कों के ऊपर बह रहे हैं , नीचे हजारों फीट गहरी खाई आपकी चूक भर गलती के इंतजार मुंह खोले आपको निगलने के लिए तैयार है।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सड़क का रखरखाव मुश्किल है लेकिन इतना नामुमकिन भी नहीं है.
अब सरकारी सिस्टम ही ऐसा हो गया है कि बस काम चल रहा है.वहाँ एक तरह से पर्यटन बंद ही है. उत्तराखण्ड में पर्यटन रोजगार का सबसे बडा साधन है लेकिन कोरोना के बहाने ये सरकार तमाम प्रतिबंधों को पर्यटकों पर लाद रही है.आधी - अधूरी चारधाम यात्रा शुरू हुई है .सरकार की मंशा इसे पूरी तरह से खोलने को नहीं है.
पूरे उत्तराखण्ड में भाजपा, कांग्रेस व आप की ढेरों चुनावी रैली हो रही है लेकिन कोरोना रोकने के सारे कायदे कानून पर्यटकों के ऊपर लागू कर दिये हैं.
दो साल से पर्यटन उद्योग कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित है .लेकिन सरकार न तो पर्यटक स्थलों के रास्ते बनाने को तैयार है न ही पर्यटकों को उत्तराखण्ड में घुसने देना चाहती है।फोटो साभार नवभारत टाइम्स
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