संजय श्रीवास्तव
इन दिनों गोवा में हूं. मेरे होटल के ठीक सामने गोवन कार्टूनिस्ट मारियो मिरांडा की गैलरी है. गैलरी के सामने मारियो के 04 कैरेक्टर्स के पुतले आपका ध्यान खींचते हैं. मारियो दुनिया के सबसे बेहतरीन कार्टूनिस्ट में रहे हैं. मुझे उनकी खास शैली में बनाए स्कैच्स और चुटीले कैरिकेचर कैरेक्टर्स हमेशा अच्छे लगे. 30 साल से ज्यादा हो गए, जबसे मैं उनका मुरीद हूं. मेरठ में डीएन कॉलेज से मैथ से एमएससी कर रहा था, तब जलीकोठी में एक मियांजी पुरानी किताबें सजाकर बैठा करते थे. उनके पास से कमाल की किताबें मिल जाती थीं. वहीं मुझको मिरांडा की "इंप्रैशंस डि पेरिस" किताब हाथ लगी. किताब क्या कैरिकेचर के दीवाने लोगों के लिए ये किसी खजाने से कम नहीं. इसमें मारियो ने अपने पेरिस टूर के तमाम स्केचेज खास शैली में बनाए थे.
मारियो के कार्टून तब "इलैस्ट्रेटेड वीकली" में छपते थे, लिहाजा वो अपरिचित तो बेशक नहीं थे लेकिन इस किताब ने तो उनका मुरीद ही बना दिया. इसके बाद मैं लगातार उनके काम को ढूंढ-ढूंढकर देखने लगा.
मारियो तो रहे नहीं. गोवा के इस मस्तमौला कार्टूनिस्ट का निधन 2011 में 89 साल की उम्र में हो गया. जब गोवा आ रहा था, तो ये पढा जरूर था कि वहां उनके कामों का प्रदर्शन करने वाली गैलरी और म्युजियम है. उनके म्युजियम में अभी नहीं जा पाया. जाऊंगा तो जरूर. कैंडोलिम बीच के करीब अपने होटल के सामने जब मारियो गैलरी को देखी तो बांछे खिल गईं.
ये गैलरी नहीं बल्कि ऐसी जगह है जिसके कोने-कोने में मारियो अलग अलग प्रोड्क्ट्स में फैले हुए हैं. मग से लेकर कैनवस और तमाम साइज के माउंट से कार्ड्स तक, कुशन से लेकर स्कूल और लेडीज बैग तक, किताबों से लेकर लैंप शेड्स तक ...केवल यही नहीं खास गोवन स्टाइल के लेडीज कास्ट्यूम पर भी मारियो के कार्टून विराजमान हैं तो टीशर्ट्स पर भी. एक टीशर्ट और दीवार पर लगाने के लिए कुछ फ्रेम माउंट्स मैने भी खरीदे. मेरी टीशर्ट पर गोवा के एक मकान की खिड़की पर खड़ी की लड़की और सामने से गुजरते लड़के के बीच आंखमिचौली है. हां इस लिस्ट में की रिंग्स, कोरोना से बचने के लिए मास्क, वाल पेपर, क्राकरी सेट, ट्रे, कुशन जैसी चीजें भी हैं. ये सारे प्रोड्क्ट्स इस गैलरी में चार सेक्शंस में फैले हैं. मारियो का हर कैरिकेचर औऱ कार्टून गुदगुदाता है.
50 के दशक तक मारियो कार्टून और इलैस्ट्रेशन तो बनाते थे लेकिन 60 के दशक से वो खास गोवन स्टाइल में कैरिकेचर और कार्टून बनाने लगे. जब गोवा के क्रिश्चियन स्कूलों में पढ़ाई कर रहे तो पादरियों के भी कार्टून बना डाले. बेंगलुरू में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने पहले आईएएस की तैयारी की लेकिन बीच में ही छोड़ दिया. फिर आर्किटैक्चर कॉलेज की पढ़ाई भी नहीं भाई. स्कैच और कार्टून अच्छा बनाने के शौक ने उन्हें देश में आरके लक्ष्मण जैसा नामवर कार्टूनिस्ट बना दिया. हालांकि बेहतरीन स्केचेज और कैरिकेचर बनाने के मामले में वो लक्ष्मण से कहीं आगे लगते हैं.
मजे कि बात है कि "टाइम्स ऑफ इंडिया" ने पहले उन्हें कार्टूनिस्ट के तौर पर खारिज कर दिया था लेकिन बाद में वो खुद उनके पास कार्टून बनाने के लिए पहुंचे. उनके जीवन का बड़ा हिस्सा विदेश में बीता. 80 के दशक में वो भारत लौटे और पूरी तरह से गोवा में रम गए. इस शहर के लिए तो वो बहुत बड़ी हस्ती हैं.
आज तक देश का कोई ऐसा कार्टूनिस्ट नहीं हुआ, जिसके काम को कामर्शियल तौर पर गैलरी बनाकर मार्केट किया जा रहा हो. गोवा में 01-02 नहीं बल्कि 05 मारियो गैलरी हैं. गैलरी के मालिकाना हक मारियो के परिवार के पास नहीं बल्कि गोवा में रहने वाले देश के नामी आर्किटैक्ट गेरार्ड दा कुन्हा की कंपनी Architecture Autonomous के पास हैं. जिसने बखूबी मारियो के हजारों कार्टून, कैरिकेचर और स्कैच को जुटाया. उसे गैलरी के तमाम उत्पादों के जरिए परोसा. आर्किटैक्ट गेरार्ड दा कुन्हा का एक परिचय ये भी है कि वो अरुधंति राव के पति रहे हैं. हालांकि बाद में दोनों के बीच तलाक हो गया. हो सकता है कि मारियो गैलरी के उत्पाद आपको महंगे लगें लेकिन हैं ये सभी अद्वितीय और मारियो के कद्रदानों के लिए तो बहुत ही खास जैसे हैं.
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