जिन्ना की शाम की दावत का इंतजार रहता मित्रों को

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जिन्ना की शाम की दावत का इंतजार रहता मित्रों को

डा शारिक अहमद खान  
रत्ती बहुत अच्छा सूअर का गोश्त पकातीं.ख़ासतौर से उनकी बनाई सूअर की डिश पोर्क सॉसेज के तो मोहम्मद अली जिन्ना साहब दीवाने थे.रत्ती की वजह से जिन्ना साहब को उम्दा सूअर का गोश्त मिलने लगा.वरना नौकरों के हाथ का ही बना खाते.उस दौर में वो रोज़ शाम को बॉम्बे के अपने बंगले में अपने नौकर को एक हज़ार रूपये देते जिससे जिन्ना के घर प्राय: आयोजित होने वाली दावतों में कई किस्म का गोश्त आता और शराब आती.ये सब सामान कुछ ही पैसों में आ जाता और जो पैसे बचते उसे जिन्ना साहब नौकर को बतौर टिप दे देते.जब पाकिस्तान बना तो उनका नौकर पाकिस्तान का सबसे बड़ा उद्योगपति बन गया.वजह कि नौकर को जिन्ना से बहुत टिप मिल गई थी.बहरहाल,आज रत्ती की बात करते हैं.वजह कि एक मित्र ने आज उम्दा क़िस्म की सूअर की डिश पोर्क सॉसेज़ खाने और बारिश में रेड वाइन पीने की इच्छा जताई तो हम दोपहर लखनऊ में मित्रों संग एक रेस्त्रां चले गए जहाँ सजीले लाल सूअर का पोर्क सॉसेज़ बहुत लज़ीज़ बनता है जो तस्वीर में है.साथ में सूअर की चर्बी में स्टफ़्ड रोटी भी मिलती है.गोवा में हमने देखा है कि गाय और सूअर के गोश्त की मिक्स डिश मिलती है लेकिन लखनऊ के पोर्क सॉसेज़ से उन्नीस है.ख़ैर,जिन्ना और रत्ती की कहानी शुरू करें.जिन्ना और रत्ती की मोहब्बत की दास्तान दार्जिलिंग में शुरू हुई थी.उस वक़्त जिन्ना की उम्र चालीस बरस थी  और रत्ती की सोलह साल.जिन्ना के बॉम्बे निवासी दोस्त और पारसी रईस सर दिनशा पेटिट ने मोहम्मद अली जिन्ना को अपने दार्जिलिंग के बंगले पर छुट्टी बिताने के लिए बुलाया.पेटिट का बंगला शानदार था और माउंट एवरेस्ट का नज़ारा सामने दिखता था.हमने दार्जीलिंग में वो बंगला देखा है. जिन्ना उस वक़्त जाने-माने बैरिस्टर हुआ करते थे.हिंदू-मुस्लिम एकता के दूत कहे जाते थे. सन् 1916 की बात है.जिन्ना दार्जिलिंग पहुँचे और अपने दोस्त दिनशा पेटिट की कमसिन सोलह साला लड़की रतनबाई पेटिट उर्फ़ रत्ती से उनकी आंखें चार हो गईं.रत्ती बॉम्बे की बहुत ही माडर्न और  बोल्ड गर्ल थी और उसकी ड्रेसिंग सेंस ,रहन -सहन देखकर अंग्रेज़ लड़कियाँ भी हैरान रहा करतीं.मोहब्बत परवान चढ़ने लगी.एक दिन जिन्ना और उनके दोस्त पेटिट डिनर कर रहे थे,डाइनिंग टेबल पर सूअर का गोश्त पोर्क सॉसेसेज़ था जो जिन्ना को बहुत पसंद था.जिन्ना और पेटिट पोर्क खा रहे थे और वाइन पी रहे थे.तभी जिन्ना ने पेटिट से पूछा कि दो मज़हबों के आपसी विवाह के मामले पर आपकी क्या राय है.पेटिट बहुत उदार और सेक्युलर माने जाते थे. पेटिट ने लम्बा भाषण दिया,जिसका सार यह था कि इस तरह की शादियों से देश की एकता मज़बूत होती है. जिन्ना बस यही सुनना चाहते थे.उन्होंने छूटते ही कहा कि ' मैं आपकी बेटी रत्ती से शादी करना चाहता हूँ '.यह सुनते ही पेटिट को सांप सूंघ गया.उन्होंने किसी तरह ख़ुद को संभाला और जिन्ना को फ़ौरन वहाँ से डांटकर भगा दिया.कहाँ चालीस साल के जिन्ना जो पेटिट के दोस्त थे और कहाँ सोलह साल की दिनशा पेटिट की बेटी रत्ती. कोई मेल ही नहीं था.इस तरह की शादियों का उस ज़माने में कोई प्रचलन नहीं था.दिनशा पेटिट ने अपनी लड़की के ऊपर पहरा बैठा दिया और उसका घर से निकलना बंद करवा दिया.दो साल ऐसा ही चलता रहा.लेकिन जिस दिन रत्ती अट्ठारह बरस की हुई उसने अपने पिता का घर छोड़ दिया और जिन्ना के साथ शादी कर ली.मुसलमान हो गई और उसका नाम मरियम रखा गया.रत्ती फिर भी पोर्क सॉसेज़ बनातीं.क्योंकि जिन्ना सियासत में ही उलझे रहते इसलिए रत्ती को ख़ास वक़्त नहीं दे पाते.रत्ती ने एतराज़ किया तो जिन्ना ने कुछ बरस के लिए सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया.रत्ती को समय देते.फिर कुछ समय बाद रत्ती की आगोश से उठ राजनीति में वापस कूद पड़े.मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भी सियासत में चमके हुए थे.वो भी रोज़ शाम को शराब पीते और क़ीमे के चार बड़े-बड़े समोसे खाते.इस तरह से ग़ालिब के शब्दों में कहा जाए तो मौलाना आज़ाद आधे मुसलमान थे,शराब पीते थे लेकिन सूअर नहीं खाते थे. इधर जिन्ना को मुसलमानों में झमाझम प्रसिद्ध मिल रही थी.क्योंकि जिन्ना के आगे मौलाना आज़ाद कुछ पोंगा लगते,मौलाना टाइप के आदमी थे.ऊपर से अल्लाह-अल्लाह करते.अंदर छिपकर दारू पीते.जबकि जिन्ना प्रसिद्ध बैरिस्टर और रोशनदिमाग़ माने जाते थे.कुछ बरस बाद रत्ती की मौत हो गई और उसे मिट्टी देने के दौरान जिन्ना को पहली और आख़िरी बार किसी ने रोते हुए देखा.जिन्ना फिर कभी नहीं रोए.रत्ती की  मौत के बाद जिन्ना गुमसुम से हो गए थे.वो रत्ती ही थीं जिनकी वजह से जिन्ना सेक्युलर राजनीति त्याग नहीं पा रहे थे.रत्ती का ये जिन्ना पर प्रभाव था.रत्ती की मौत के बाद आख़िर में उन्होंने अपना कथित सेक्युलर रूप छोड़ दिया और सूअर खाना भी छोड़ दिया.क्योंकि दूसरों के हाथ का पसंद नहीं आता था.रत्ती के हाथ का बना लज़ीज और उम्दा सूअर खा चुके थे.फिर वो दिन आया जब जिन्ना ने सूट की जगह 1937 में मुस्लिम लीग के अधिवेशन में पहली बार काली शेरवानी पहनी.अधिवेशन में उनकी नज़र नवाब मोहम्मद इस्माइल ख़ान पर पड़ी जिन्होंने फ़ारसी स्टाइल की टोपी पहन रखी थी.जिन्ना ने उनकी टोपी मांगकर ख़ुद पहन ली और उग्र रूप धारण कर लिया.उसके बाद सबको मालूम है.रत्ती जीवित रहतीं तो शायद जिन्ना कथित सेक्युलर ही रहते.

फोटो साभार हिंदुस्तान टाइम्स 

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