बच्चों को लिखने दो

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

बच्चों को लिखने दो

चंचल  
अभी कल तक  साहित्य निखालिस साहित्य था .किसी तरह का कोई बटवारा या वर्गीकरण नही हुआ था .अचानक दिल्ली  में एक हवा चली , जुबानी जमा- खर्च की जुगाली का . कहा गया अदब को करीने से सजाया जाए , लोंगो को सहूलियत हो कि किताब की जिल्द पर छपे नाम से पता चल  जाय कि इस जिल्द ने किस मजमून को  ढंक रखा है ? पहली लकीर खींची गई  , लिंग पर - महिला लेखन / पुरुष लेखन .पाठक चौंका - कल तक तो ये नही था - महादेवी वर्मा ,  महास्वेता देवी अनेकों नाम हैं ,ये महज  अदब तक ही महदूद रहे और इनका आकलन लेखन , और युगबोध से होता रहा ।इन्हें महिला लेखन की हद में रख कर हम अदब को बेहुर्मत नही कर रहे ?  इतने में संतोष नही हुआ तो क्रांति का  मुलम्मा लीपा जाने लगा - प्रगतिशील लेखक . यह क्या होता है ? हर लेखक प्रगतिशील है शेष बुझझक्कड़ी करनेवाले  कलम घिस्सुओं को लेखक ही नही माना जाना चाहिए ।प्रतिक्रियावादी  लेखन, अदब   में आता ही नही , वह पोंगापंथ का प्रचार पर्चा भर होता है . प्रगतिशीलता मजमून, विषय , विधा और शैली से तय होती है,  पार्टी के ठप्पे से नही .मुंशी प्रेमचंद ,  हजारी प्रसाद द्विवेदी , धर्मवीर भारती , फणीश्वरनाथ रेणु , रघुवीर सहाय , सर्वेश्वर दयाल सक्सेना , गुलशेर खान शानी वगैरह प्रगतिशील या जनवादी नही हैं, इनके खीसे में प्रगतिशील या जनवाद की रसीद नही है ,  लेकिन लेखक हैं . 
     समाज के स्खलन के  साथ अदब भी टूटता रहा .इस कुटुम्ब रजिस्टर में और भी शाखाएं खुल गयी- दलित साहित्य (?) दलित का भाव क्या है .दलित साहित्य  मजमून से दलित है कि लेखक दलित है ? मुंशी प्रेमचंद ,  यू आर अनन्तमूर्ति , रेणु , दलित मजमून की रवादारी का अपना अलग का अंदाज रखते हैं .लेकिन दलित साहित्यकार की सूची में नही है , लेकिन लेखक हैं  , जहां मजमून में दलित से परहेज नही है , क्योंकि ये लेखक हैं  
     अदब की बखरी,  कितना और  तकसीम होगी , अमलबरदारो अब तो चुप रहो , बच्चों को लिखने दो . 


 

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