आज राजेंद्र यादव का जन्मदिन है

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आज राजेंद्र यादव का जन्मदिन है

चंचल  
बेअदबी मुआफ़ हो , राजेन्द्र यादव के साथ ' श्री ' .   
' स्वर्गीय  , या ' जी '  का दुमछल्ला नही लगा रहा हूँ , इसकी केवल एक वजह है कि जनाब राजेन्द्र यादव अपने जीते जी शख्सियत की उस हद पर जा खड़े हुए थे ,जहां ये ये शब्द बेमानी लगने लगते है . यकीन करिये जब कोई टालस्टाय , गोर्की , मार्खेज , प्रेमचंद ,  रेणु , शरतचंद या गुरुवर के साथ इन विशेषणों को टिकाता है तो सारा बोध पाखंड में सन जाता है . राजेन्द्र  यादव के साथ  'जी ' लगाने के लिए यादव को काटना पड़ता था ( जब तक वे जिंदा रहे ) राजेन्द्र जी उम्र में हमसे बड़े थे ,इसका पूरक यह  कत्तई नही है कि लेखन में हम बराबर थे . बराबरी का बोध इसलिए आ जाता था कि हम दोनों दो अलग अलग पगडंडियों पर चल रहे थे . वे लेखक थे और हम लेखक नही थे . हम चित्रकार थे , लेकिन हम पाठक अच्छे थे इसपर राजेन्द्र जी को ऐतराज था . राजेन्द्र जी तिकड़ी ( कमलेश्वर , मोहन राकेश और राजेंद्र यादव ) के एक पाए थे . राजेन्द्र जी शुरुआत में कम्युनिस्ट रहे जब तक मुलायम सिंह यादव का उदय नही हुआ था . ( ये हम कहते थे और इसपर वे मुस्कुराते थे और तुरंत झन्नाटेदार  'कुबात ' सुना देते थे )  
  मुलायम सिंह यादव के जमाने मे  उत्तर प्रदेश के थानों को सख्त हिदायत दी गयी थी कि जब भी थाने पर कोई फोन  करे , उसे अदब से उठाया जाए और 'जै हिन्द सर ' जरूर बोला जाय .  
    राजेन्द्र जी को हम जब भी फोन करते थे -  
       - जै हिन्द सर ! बोलता था . उधर से 'आज का'  
          ( सांझ का कार्यक्रम ) बताते . हफ्ते में दो तीन दिन यह होता रहता . नामवर जी , केदार जी , शानी जी , विष्णु खरे , कन्हैया लाल मलिक , गौतम नवलखा , वगैरह की  एक टीम थी . उसमे अकेले असाहित्यकार रहते . इतना ही नही उस समय दिल्ली में साम्यवादियों का ऐसा दबदबा था कि टुटपुँजिये कलमकार प्रगतिशील या जनवादी या वाम पंथ का बिल्ला लटकाए  इसमेबेधड़क दाखिल हो जाते और जब निहुर कर ड्योढ़ी से  बाहर निकलते तो लेखक होने की सनद कांख में दबी रहती .  हमसे यह खेल नही हुआ . हम उसी जफडी में खड़े रहे जो ' बे पंथ ' के रहे . लेकिन कुपंथी नही थे .  
   एक दिन राजेन्द्र जी ने सर्वेश्वर जी को फोन किया , उनसे कुछ बात  हुई होगी , सर्वेश्वर जी ने हमे बताया नही केवल इतना बोले तुम जाते समय राजेन्द्र यादव से मिल लेना .  पहुंचते ही जुमला ठोंका - किसको किसको  खिसका रहे हो ?  
     -  दिल्ली को क्या खिसकाना , खुदय ख़्सकी पड़ी है , गालिब तक निकल भागे हैं .  
     - शिव मूर्ति से मिले हो ?  
      -  हम उनके पड़ोसी हैं ,  मिले नही हैं , पढ़े हैं .  
इतने में शिवमूर्ति जी आ गए . बात चीत होती रही .  
        - तुमने धर्मयुग में क्या लिख दिया ? किसी ने क्लिपिंग भेजी है .  
       - जब आपने हमे छापने से मना कर दिया तो हम भारती जी ( धर्मयुग के संपादक धर्मवीर भारती जी ) को भेजने लगे . लेकिन यह क्लिपिंग तो पुरानी है .  
      - लेकिन हमें अब मिली है .  
      - आप लेट हुए तो हमारा क्या दोष ?  
  -       - यह विषय कहाँ से मिला ?  
          -   भारती जी जाने . उन्होंने हमे  चिट्ठी लिखा , विषय बताया  और हमने लिख दिया .  
                      क्या लिखा ? इस पर फर कभी . राजेन्द्र जी ने  ' हंस ' का  ताजा अंक सामने रख दिया . भाई शिवमूर्ति ने बताया  - आपको केंद्र में रख कर काशीनाथ जी ने बढ़िया लिखा है,  देख लीजिएगा .  
            भाई राजेन्द्र यादव जितने सूक्ष्म दृष्टि वाले लेखक थे उतने ही बेहतर इंसान .  
        राजेन्द्र भाई !हम आपको याद करते हैं .

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