क्या किसान आंदोलन सरकार बदल पाएगा ?

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क्या किसान आंदोलन सरकार बदल पाएगा ?

डॉ सुनीलम 
संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा लगभग 9 महीने से चलाए जा रहे किसान आंदोलन को दुनिया का सबसे लंबा एवं प्रभावशाली आंदोलन बताया जा रहा है. दुनिया के बड़े दार्शनिक नाम नोआम चोम्स्की ने इसे दुनिया के आंदोलनों के लिए मॉडल आंदोलन बताया है, जिससे दुनिया के आंदोलनों को सीख लेनी चाहिए.  
यह सच है कि संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहा किसान आंदोलन आजादी मिलने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाला सबसे बड़ा आंदोलन है. कई बार इस आंदोलन की तुलना जेपी आंदोलन और अन्ना आंदोलन से की जाती है . हालांकि किन्ही दो आंदोलनों की तुलना की नहीं जानी चाहिए . परन्तु बुद्धिजीवी ही नहीं आम  आदमी भी तुलना करता है . 
दोनो आंदोलनों और किसान आंदोलन में सबसे बड़ा अंतर यह है कि दोनों ही आंदोलन जे पी और अन्ना हज़ारे के इर्द गिर्द खड़े हुए थे. किसान आंदोलन का कोई एक नेता नहीं है .सामूहिक नेतृत्व में आंदोलन 9 महीने से चलाया जा रहा है. 
दोनो ही आंदोलनों के दौरान लाखों आंदोलनकारी 9 महीने तक देश की राजधानी दिल्ली को घेरे नहीं बैठे थे, ना ही आंदोलन के दौरान 600 से अधिक शहादतें हुई थीं. दोनों ही आंदोलनों में किसी भी राज्य में ऐसी स्थिति नहीं बनी थी कि पक्ष-विपक्ष दोनों आंदोलन के समर्थन में खड़े होने की होड़ करते दिखे हों ,जैसा कि पंजाब में दिखलाई पड़ते हैं. 
दोनों ही आंदोलनों में 550 विभिन्न विचारधाराओं वाले मजबूत आधार वाले संगठन सामूहिक रूप से खड़े नहीं थे.  
अन्ना आंदोलन के दौरान तो सरकार द्वारा कोई बड़ी दमनात्मक कार्यवाही भी नहीं की गई थी. जेपी आंदोलन के दौरान विपक्ष के लाखों नेताओं और कार्यकर्ताओं को 19 महीने जेल में डाल दिया गया था. 
संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहे किसान आंदोलन पर पंजाब में जहां आंदोलन का सबसे अधिक जोर है वहां आज तक कोई बड़ी दमनात्मक कार्यवाही नहीं हुई है. हरियाणा की भाजपा सरकार ने जरूर तमाम जिलों में दमनात्मक कार्यवाही की है,50 हज़ार किसानों पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए हैं लेकिन दिल्ली में बॉर्डरों पर जहां किसानों का अनिश्चितकालीन धरना चल रहा है वहां कोई बड़ी दमनात्मक कार्यवाही करने की हिम्मत सरकार की नहीं पड़ी है. इसी तरह से उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में कोई बड़ी दमनात्मक कार्यवाही देखी नहीं गई है. 
जेपी आंदोलन और अन्ना आंदोलन का विपक्ष समर्थन कर रहा था लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर सभी वामपंथी पार्टियां दोनों आंदोलनों के साथ खड़ी नहीं थी जो आज संयुक्त किसान मोर्चा के साथ पूरी शिद्दत से खड़ी दिखलाई पड़ रही हैं. 
   संयुक्त किसान मोर्चा बार-बार जनता के बीच अपनी ताकत दिखलाता रहा है. संयुक्त किसान मोर्चा ने बार-बार दिल्ली की बॉर्डरों पर तथा विभिन्न राज्यों में किसान महापंचायतें कर अपनी जन शक्ति का प्रदर्शन किया है. 
    दोनों ही आंदोलनों की तरह किसान आंदोलन को भी बदनाम करने, बांटने, विदेशी फंडिंग से संचालित होने तथा विपक्ष के इशारे पर आंदोलन चलाए जाने के आरोप लगाए जाते रहे हैं. 
    जेपी आंदोलन के बाद देश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी, तमाम विपक्षी दल एक हुए थे. जनता पार्टी का गठन हुआ था.अन्ना आंदोलन के बाद भी भ्रस्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस की केंद्र सरकार बदल गई . अन्ना आंदोलन खत्म होने  के बाद दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी की सरकार बन गयी. 
इसलिए तमाम राजनैतिक विश्लेषक अन्ना आंदोलन पर मोदी को देश पर थोपने और  
कांग्रेस को खत्म करने का आरोप भी लगाते हैं. 
यह भी कहा जाता है कि यह संघ समर्थित आंदोलन था. लेकिन यह आरोप वर्तमान किसान आंदोलन पर नहीं लगाया जा सकता. हालांकि आर एस एस के किसान संघ द्वारा 8 सितंबर के एम एस पी को लेकर आंदोलन की घोषणा कर किसानों को भ्रमित करने की साजिश रची जा रही है. 
    जेपी आंदोलन को रेलवे की हड़ताल से बहुत बड़ी ताकत मिली थी. आज फिर देश का मज़दूर आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा के साथ खड़ा दिखलाई पड़ रहा है. संयुक्त किसान मोर्चा भी निजीकरण तथा चार लेबर कोड के खिलाफ मजदूर संगठनों के संघर्ष में जमीनी स्तर पर समर्थन में  खड़ा दिखलाई पड़ रहा है. 
    संयुक्त किसान मोर्चे ने चुनाव में भी अपनी ताकत दिखाई है. बंगाल, तमिलनाडु तथा केरल में विधान सभा चुनाव जीतने के पहले भी देश में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के नेतृत्व में संपूर्ण कर्जा मुक्ति और लाभकारी मूल्य की गारंटी को लेकर जो आंदोलन चल रहा था उसके चलते मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार चली गई थी. 
पंजाब और उत्तरप्रदेश के स्थानीय निकाय के चुनाव में भी  
भा ज पा का सफाया जनता ने करके दिखाया है. 
     संयुक्त किसान मोर्चा ने अब उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड मिशन की घोषणा की है. उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय के चुनाव में पहले जो नतीजे आए थे उनसे यह साफ हो गया था कि उत्तर प्रदेश बदलाव की दिशा में आगे बढ़ रहा है. हालांकि बाद में धनबल, सरकारी मशीनरी और गुंडई का सहारा लेकर भाजपा ने अधिकतर स्थानीय निकायों पर कब्जा जमा लिया लेकिन यह कहा जा सकता है कि  स्थानीय निकायों के चुनाव ने योगी मोदी की जोड़ी की चुले हिला दी. 
     संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान संसद कर किसान विरोधी कानूनों के संबंध में अपने पक्ष को मजबूती से रखा है . जनता का व्हिप जारी करके संयुक्त किसान मोर्चा ने विपक्ष के सांसदों से जो अपील की थी उसका असर भी संसद की कार्यवाही के दौरान देखने को मिला. संपूर्ण विपक्ष ने किसान संसद की कार्यवाही देखकर किसान संसद की गरिमा को बढ़ाया तथा सदन के अंदर और बाहर किसान आंदोलन की सभी मांगों का समर्थन भी किया है. सोनिया गांधी ने 20 अगस्त को 19 विपक्षी दलों की बैठक कर संयुक्त किसान मोर्चा के समर्थन में 20 सितंबर से 30 सितंबर के बीच पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है. सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों से एकजुट होकर 2024 के चुनाव लड़ने की अपील की है. क्या संपूर्ण विपक्ष 2024 का चुनाव एकजुट होकर लड़ पाएगा? क्या जेपी आंदोलन और अन्ना आंदोलन के बाद जिस तरह से केंद्रीय सरकार बदली थी वैसे ही क्या 2024 में सरकार बदल पाएगी ?  यह कहना तो जल्दबाजी होगी लेकिन यह कहा जा सकता है  कि उत्तर प्रदेश में यदि विपक्ष एकजुट होकर चुनाव लड़ा तो  उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बदल सकेगा तथा मोदी सरकार को बदलने का रास्ता साफ हो जाएगा.  
जेपी आंदोलन के बाद देश की जनता ने तानाशाही खत्म कर लोकतंत्र की बहाली के लिए वोट दिया था, उसी तरह अन्ना आंदोलन के बाद भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए आम मतदाताओं ने वोट दिया. क्या देश के मतदाता किसानों और मजदूरों को उनका जायज हक दिलाने तथा कारपोरेट राज से मुक्ति के लिए वोट देंगे? यह यक्ष प्रश्न है इसका जवाब आज देना जल्दबाजी होगी  परन्तु बंगाल के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि यह संभव है.

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