ये अवध रियासत के कोट ऑफ़ आर्म्स की जलपरियां हैं

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ये अवध रियासत के कोट ऑफ़ आर्म्स की जलपरियां हैं

डा शारिक़ अहमद ख़ान 
ये अवध रियासत के कोट ऑफ़ आर्म्स की जलपरियाँ हैं.जब मुग़ल बादशाह ने नवाब सआदत अली ख़ान को अवध का गवर्नर नियुक्त किया और वो लखनऊ के लिए चले तो रास्ते में उन्होंने गंगा पार की.गंगा पार करते वक़्त दो मछलियाँ गंगा से उछलीं और नवाब की गोद में आ गईं.इसे शुभ चिन्ह माना गया.एक मत है कि अवध के निशान के तौर पर जो मछलियाँ हैं वो अकबर के दौर में अवध के गवर्नर नियुक्त हुए सूफ़ी संत शेख़ अब्दुर्रहीम की दी हुई हैं. 
इन मछलियों को माही-मरातिब सम्मान से भी जोड़ा जाता है.ये मछलियाँ माही-मरातिब सम्मान प्राप्त व्यक्ति को मिलती थीं जो मुग़लिया दौर के भारत का सबसे बड़ा सम्मान था जैसे आज भारत रत्न है.माही मरातिब सम्मान बादशाह शाहजहाँ के दौर में शुरू हुआ.क्योंकि अवध के नवाबों में माही मरातिब सम्मान प्राप्त नवाब रहे लिहाज़ा वो इन मछलियों का इस्तेमाल अपने प्रतीक के तौर पर करते थे.माही मरातिब सम्मान युद्ध में बहादुरी दिखाने वाले सर्वश्रेष्ठ योद्धा को मिलता था.जब अवध के बादशाह के तौर पर नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर की ताजपोशी हो रही थी तो अवध के दरबारी कलाकार राबर्ट होम ने जो राजचिन्ह बनाया उसमें दो मछलियों को शामिल किया.ये मछलियाँ महाशीर मछलियाँ थीं.इसका असली फ़ारसी नाम माहेशेर है.जिसका फ़ारसी में मतलब होता है मछलियों में शेर.महाशीर मछली को कुश्ती का भी प्रतीक माना जाता था और बहादुरी के प्रतीक के तौर पर भी इसे दर्जा मिला था.नवाब वाजिद अली शाह के दौर में राजचिन्ह के तौर पर इस्तेमाल होने वाली इन मछलियों में ये तब्दीली आयी कि ये मछली से बदलकर जलपरियाँ हो गईं. 
नवाब वाजिद अली शाह के दौर की इमारतों में इन जलपरियों को उकेरा गया और राजचिन्ह पर भी जलपरियों को स्थान मिल गया.मछली से जलपरी करना नवाब के शायर और कलाकार मन की कल्पना का कमाल रहा होगा,क्योंकि जलपरियाँ काल्पनिक ही होती हैं.नवाब वाजिद अली शाह के समय इन जलपरियों का इस्तेमाल लगभग हर शाही चीज़ पर होता,यहाँ तक कि उस दौर के हथियारों पर भी जलपरियाँ उकेरी जातीं.चिकनकारी के कलाकार कपड़ों पर भी जलपरियाँ बनाते.ये जलपरियाँ एक प्रकार से पूरे अवध की पहचान हो गईं.इन्हीं जलपरियों के कपड़ों की तर्ज़ पर ग़रारा-शरारा और दुपट्टा चलन में आया जिसमें ग़रारा बहुत लम्बा और घेरदार होता. 
क़ैसरबाग़ के लाखी दरवाज़े पर वाजिद अली शाह के दौर की लकड़ी की बनी जलपरियाँ हैं जो आज भी जस की तस सलामत हैं.जब देश आज़ाद हुआ तो उत्तर प्रदेश के राजकीय चिन्ह में जलपरियों की जगह पूर्व के नवाबों द्वारा इस्तेमाल की गईं महाशीर मछलियों को लिया गया जो आज भी यूपी के राजकीय चिन्ह में तीर कमान के साथ दिखती हैं.पोस्ट में क़ैसरबाग़ में लोहे से उकेरी गई जलपरियों की तस्वीर मेरे कैमरे से. 

 

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