झरने के नीचे से गुजरती ट्रेन में

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झरने के नीचे से गुजरती ट्रेन में

अंबरीश कुमार 
कभी ऐसी रेल गाड़ी में बैठे हैं जो किसी झरने के नीचे से गुजरती हो और पानी की बूंदे हवा के झोंके से आप तक पहुंच जाए .कभी ऐसी रेल यात्रा का भी अनुभव लेना चाहिए .हमने भी लिया इस झरने से गुजरती रेल यात्रा का .और एक नहीं कई बार .रेल के कई सफ़र यादगार होते हैं .कालका से चले तो शिमला पहुंचते पहुंचते बर्फीली वादियों  करते हुए कई बार पहाड़ पर चढ़ना  मांडवी नदी पर एक झरना है जिसके नीचे से ट्रेन गुजरती है .ऐसा झरना कम ही दिखेगा .इसे दूधसागर कहा जाता है .दूध सागर झरना गोवा-कर्नाटक की सीमा के पास मांडवी नदी पर स्थित एक जलप्रपात है. दूध सागर यानी ‘दूध का सागर’.और सही में यह पहाड़ से दूध की नदी गिरती हुई लगती है . यह झरना भारत का पांचवा और विश्व का 227वां सबसे खूबसूरत झरना है. यह झरना पंजिम से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर  है.310 मीटर से गिरता यह झरना कहीं कहीं तीस मीटर तक चौड़ा हो जाता है . 
पश्चिमी घाट के फॉल्स भगवान महावीर अभयारण्य और मोल्लेम राष्ट्रीय उद्यान के बीच यह झरना दरअसल कर्नाटक और गोवा के बीच विभाजन करता है.पर्णपाती जंगलों से घिरा हुआ यह झरना आपको अपने मोहपाश में बांध लेगा .पर हम लोग एक बार बच्चों के साथ यहां पर ऐसे फंसे कि लगा रात इसी जंगल में जानवरों के बीच काटनी पड़ेगी .बहुत है डराने वाला अनुभव था. 
गोवा और कर्नाटक सीमा पर एक बहुत खूबसूरत जल प्रपात पड़ता है दूध सागर .घने जंगल में इस जल प्रपात को देखने के चक्कर में कुछ साल पहले विकट स्थिति में फंस गए थे और जान पर बन आई थी .कलंगूट समुंद्र तट पर पर्यटन विभाग के रिसार्ट पर रुके थे जो मेरा सबसे पसंदीदा तट है और जब भी जाता हूँ वहां एक रात जरुर रुकता हूँ .गोवा के कई समुंद्र तट अपनी अलग अलग विशेषताओं की वजह से जाने जाते है जिनमे कलंगूट सत्तर के दशक में हिप्पियों के चलते चर्चा में आया था . 
पहली बार जब मुंबई होते गोवा गया था तब सांसद संजय निरुपम मुंबई जनसत्ता में थे और वहां जाने में मदद भी की थी क्योकि २५ दिसंबर के दिन गोवा पहुँच गया था .खैर जब किसी होटल में जगह नहीं मिली तो सर्किट हाउस जो पहाड़ पर सबसे ऊपर है वहां गया . जगह नहीं थी पर गोवा पर्यटन विभाग के एमडी से संपर्क करने को कहा और बात भी कराई गई .एक सरदारजी उस दौर में पर्यटन विभाग के मुखिया थे और दिल्ली से तबादले पर वहां गए थे .वह जनसत्ता का उभार वाला दौर था और प्रभाष जोशी लिख चुके थे -पाठक माईबाप अब जनसत्ता मांग कर पढ़े इससे ज्यादा नहीं छापा जा सकता .वह दौर भी था जब सिख दंगों की कवरेज से अख़बार ने पत्रकारिता को नई दिशा दी थी .यकीनन इसमे बड़ा योगदान आलोक तोमर का था जिन्होंने भाषा और भावनाओं का अलग प्रयोग दिखाया .इससे सिख समाज में अख़बार की बहुत अलग पहचान थी .ऐसे में पर्यटन विभाग के मुखिया सरदारजी को जब परिचय दिया तो बोले ,आप एक सन्देश भेज देते तो कोई दिक्कत नहीं होती .सर्किट हाउस में एक कमरा खाली है और मध्य प्रदेश के एक आईजी उसके लिए कई बार कह चुके है पर आप सर्किट हाउस में आज रुक जाए और इसका किराया दस रुपए जमा करा दे कल पर्यटन विभाग का कलंगूट बीच के रिसार्ट पर शिफ्ट करा देंगे .इससे पहले हजार दो हजार रुपए में भी कोई होटल नहीं मिल रहा था और भाग दौड़ काफी हो चुकी थी .अकेले था इसलिए कही जाने की इच्छा भी नहीं रह गई थी .खाने के लिए पूछा तो बताया रेस्टोरेंट में सब मिल जाएगा .गोवा का सर्किट हाउस बहुत खूबसूरत और भव्य है .कमरे भी काफी बड़े .नहा कर रेस्टोरेंट पहुंचा तो नजारा देख कर हैरान रह गया .पहला सर्किट हाउस देखा जहा बार की सुविधा थी और दिल्ली के प्रेस क्लब जैसा नजारा था .तब इस तरह का शौक नहीं हुआ करता था पर फेनी का बहुत नाम सुना था इसलिए खाने के साथ मंगाया पर एक घूंट में ही दिमांग ठीक हो गया और खाना खाकर उठ गया .रेस्टोरेंट में तली हुई मछली और फेनी की गंध भरी हुई थी जो बहुत से लोगो को अच्छी नहीं लगेगी .फेनी का नाम खूबसूरत है पर वह गोवा की देशी मदिरा है जो नारियल और काजू से बनती है .जिसकी गंध भी बर्दाश्त नहीं हो सकती .फेनी का वह पहला घूंट ही अंतिम घूंट साबित हुआ .हालाँकि जिसने जिसने माँगा था उनके लिए लेकर जरुर गया .पर गोवा की वाइन का स्वाद किसी भी वेदेशी वाइन से कम नहीं है .मुंबई में इंडियन एक्सप्रेस में उस समय विश्विद्यालय के साथी आनंदराज सिंह थे जिनके साथ एक शाम गुजारने के बाद गोवा गया था और उनके लिए भी फेनी की बोतल ले आया था.फोटो साभार फेसबुक जारी 

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