पांडिचेरी की एक सुबह

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पांडिचेरी की एक सुबह

अंबरीश कुमार  
सुबह होते ही बालकनी पर आ गए .सूर्योदय देखने के लिए .चाहते तो भीतर से भी देख सकते थे क्योंकि बालकनी की दीवार एक बड़ी खिड़की वाली थी .खुली रहे तो बाहर का दृश्य आसानी से नजर आता है .केतली में काफी का पानी खौल चुका था .एक बड़ा कप काफी लेकर बालकनी की कुर्सी पर जम गए .बालकनी पर बैठते ही खिड़की पर बैठे दो कौव्वे उड़े और सामने नारियल के दरख्त पर बैठ गए .अचानक सामने समुद्र का रंग बदलता हुआ नजर आया और कुछ ही देर में दहकता हुआ सूरज समुद्र के ऊपर था और समुद्र की लहरें सुनहरे रंग में बदल चुकी थी .कल तो सूरज चमकता हुआ सामने आ गया था पर आज बादलों से संघर्ष करता नजर आया .इस बीच एक नाव भी नारियल के पेड़ों के बीच आ गई उछलती हुई .कुछ देर बैठे फिर तय किया कि साइकिल लेकर एक चक्कर बीच रोड के साथ राजभवन के सामने पार्क का लिया जाए .अख़बार भी मिल जायेगा और टहलना भी हो जायेगा .साइकिल पार्किंग में खड़ी हुई थी .बादल थे पर बरसने से पहले एक चक्कर लगा लेना चाहता था .  
पार्क गेस्ट हाउस की यही विशेषता है कि यहां दूसरी मंजिल के अपने कमरे से समुद्र नजर आता है जबकि काटेज गेस्ट हाउस राजभवन के पास है .सुविधाएँ कुछ कम भी है .पिछली हम अरविंदो आश्रम के काटेज गेस्टहाउस में रुके. साफ-सुथरा गेस्टहाउस जहां शांति पसरी हुई थी. कमरे में पानी की सुराही रखने आई तमिल युवती ने चाय पर आने का न्योता दिया. काटेज गेस्टहाउस में नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात के भोजन का समय तय है. रात साढ़े आठ तक भोजन का समय समाप्त हो जाता है. जो करीब सवा सात बजे शुरू होता है. तय समय के बाद पहुंचने पर निराश होना पड़ सकता है या फिर बाहर के होटल में जना पड़ेगा. यह कड़ा अनुशासन आश्रम व्यवस्था का अंग है. हालांकि बीच पर बने पार्क  गेस्ट हाउस में कुछ ज्यादा आजादी मिल जाती है. वहां एक अलग रेस्त्रां भी है जो समुद्र तट से लगा हुआ है. 
पांडिचेरी शहर काफी साफ सुथरा और सेक्टर की तरह कई हिस्सों में बंटा हुआ है. समुद्र के किनारे का हिस्सा तो किसी फ्रांसीसी शहर जैसा ही लगता है. चाहे आवास हो या होटल या फिर अन्य कोई ईमारत. फ्रांसीसी वास्तुशिल्प पर आधारित है. नाम भी रोमा रोला स्ट्रीट, विक्टर सिमोनेल स्ट्रीट और सेंट लुई स्ट्रीट जसे नजर आते हैं. पांडिचेरी पर १८१६ पर फ्रांसिसों का जो वर्चस्व स्थापित हुआ उसने मछुआरों के गांव को फ्रांसीसी रंग में रग दिया. यही वजह है कि यहां की जीवन शैली, संस्कृति और वास्तुशिल्प पर फ्रांस का काफी असर पड़ा है. फ्रांसीसी शासन ने इस शहर को फ्रांसीसी शहर में बदल डाला है. फ्रांसीसी उपनिवेश का असर आज भी नजर आता है. समुद्र तट के पास पुरानी इमारतें हों या फिर होटल या मयखाने. हर जगह फ्रांस का असर नजर आता है. जिस तरह गोवा में पुर्तगाल दिखता है उसी तरह. फ्रांस के व्यंजन से लेकर मशहूर ब्रांड की मदिरा भी यहां मिल जएगी. और तो और यहां के बहुत से नागरिकों की नागरिकता भी फ्रांस की है. 
पांडिचेरी में अरविंदो आश्रम है, फ्रांसीसी वास्तुशिल्प का नायाब नमूना, गवर्नर का निवास जो अब राजभवन कहलता है. और एक नहीं कई भव्य चर्च हैं. यहां पर कई एतिहासिक मंदिर हैं. पर मंदिर जाते समय ध्यान रखना चाहिए कि दोपहर बारह बजे के बाद ये मंदिर बंद हो जते हैं और चार बजे खुलते हैं. यह परंपरा दक्षिण के ज्यादातर मंदिरों में नजर आती है. महर्षि अरविंद का आश्रम तो यहां का मुख्य पर्यटन स्थल भी है. इस आश्रम में अनोखे फूल नजर आएंगे और कोई आवाज नहीं सुनाई पड़ती. लोग खामोशी से लाइन लगाकर महर्षि अरविंद के समाधि स्थल तक पहुंचते हैं और कुछ देर रुक कर उनके आवास देखते हुए बाहर आते हैं. इसकी स्थापना १९२६ में की गई थी. उनके साथ रहीं फ्रांस से आई मदर मीरा जो बाद में मां/मदर के नाम से मशहूर हुईं. उन्होंने १९६८ में ओरविल नामक अंतरराष्ट्रीय नगर बनाया. अंतरराष्ट्रीय बंधुत्व के सिद्धांत पर आधारित यह नगर पांडिचेरी से दस किलोमीटर दूर एक नई दुनिया दिखाता है. इस नगर की व्यवस्था में करीब १५ हजर लोगों को रोजगार मिला हुआ है. शिक्षा, चिकित्सा, कला, विज्ञान, हस्तशिल्प से लेकर अध्यात्म तक के केंन्द्र्र देखने वाले हैं. 

 

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