प्रेम से मोक्ष का एक रास्ता खुलता

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प्रेम से मोक्ष का एक रास्ता खुलता

सुप्रिया रॉय   
प्रेम से मोक्ष का एक रास्ता खुलता है. रूपमती और बाज बहादुर की प्रेम कहानी मांडू के जिन पत्थरों में लिखी है, वहां से लगभग कावेरी के किनारे किनारे धामनोद के रास्ते चलते चले जाए तो अंतत: पहुंचेगे वहां जहां कावेरी नर्मदा से मिलती हैं दोनों ही नदियां तेज धार वाली है, मगर मिलन के ठी पहले उनकी धार दोस्ती की यानी धीमी हो जाती हैं इसका श्रेय आप या यहां केपहाड़ी भूगोल को दे, या नदियों के मिलन के प्रेम रूपक को या यहां की धार्मिक किंवदंती बन गए धर्म स्थल ओंकारेश्वर को मगर सच यह है कि नदियां इतनी खामोशी से एक दूसरे में विलीन नहीं होती. खास तौर पर नर्मदा तो दुनिया की अकेली नदी है, जो पूर्व की तरफ नहीं पश्चिम की तरफ बहती है. एक बागी नदी को भी आत्मीय बनाने का यह चमत्कार ओंकारेश्वर में होता है. 
दोनों नदियां सीधे नहीं मिलती. थोड़ा घूम कर लजाते शर्माते एक दूसरे के करीब आती है और उनके इसी प्रवाह में एक द्वीप बन गया हैं पड़ोस के पर्वतों या हेलीकॉप्टरों से देखें तो यह द्वीप सीधे ओम अक्षर की आकृति में बना है. इस द्वीप के नाम पर इस तीर्थ का नामकरण हुआ है- ओंकारेश्वर. इंदौर-महाराष्ट्र राजमार्ग पर बाड़वाह से 12 किलोमीटर जंगलों से घिरे एक रास्ते पर चलें तो आेंकारेश्वर की दुनिया प्रकट होती है. 
रास्ते में ओंकारेश्वर बांध के कारण बस गया नर्मदा नगर का रास्ता भी है फिर हमेशा एक आस्तिक मेले की शकल में जागता रहने वाला ओंकारेश्वर तीर्थ है, जोहै तो नर्मदा के पार मगर वहां पहुंचने के लिए दो पुल मौजूद है. एक सीधा और दूसरा झूलता हुआ. पूल पार करते ही ऊपर एक बहुत प्राचीन लेकिन बसे हुए किले के नीचे रास्ता चला जाता है और वहां से एक तंग लेकिन उदार गली आप को आेंकारेश्वर महादेव के परम प्राचीन मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचा देती है. हाइटेक जमाना आ गया ह, इसलिए मंदिर के प्रेवश द्वार के सामने ही इस तीर्थ की महिमा बखानने वाली सीडी भी बिकती है और आम इसे देख सकें, इसकी व्यवस्था भी है. 
आज तो आवागमन और संचार के सब साधन मौजूद है- जैसे ओंकारेश्वर के एटीएम से आप पैसे निकाल सकते हैं, दुनिया भर में बात कर सकते हैं, बीबीसी और सीएनएन देख सकते हैं, इंटरनेट पर संदेशें भेज सकते हैं और इसी कारण उस युग की कल्पना करना जरा कठिन प्रतीत होता है. जब भगवान राम के पूर्वज मांधाता ने यहां तपस्या करके सीधे भगवान शिव का दर्शन पया था और यही आदि शंकराचार्य ने अपने प्रारंभिग शिष्यों मेंसे एक को दीक्षा दी थी. मंदिर के तलघर में एक चट्टानी गुफा अब भी मौजूद हे, जहां मांधाता ने तपस्या की थी ओर इसके ठीक ऊपर एक कक्ष में एक आसन भी रखा है, जिसे राजा मांधाता का आसन कहा जाता हैं कहावत तो यह भी है कि इसी रघुवंश के राजा परीक्षित का जब नागदेव से झगड़ा हो गया था और नागदेवता राजा परीक्षित को दंडित और दंशित करने पर तुले हुए थे, मांधाता के तप ने ही मध्यस्थता की थी. 
यही भगवान शिव की तपस्या करने नक्षत्र मंडल से उतर कर शनि देवता के आने की कथा भी कहीं जाती है और उसी पहाड़ी चट्टान पर शनि की एक सिध्द मंदिर भी है. ओंकारेश्वर मंदिर को श्री ओंका मांधाता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है और यह एक मल लंबे और आधा मील चौड़े चट्टानी द्वीप पर बना हुआ हैं. 
चूंकि स्वयं भगवान शिव यहां प्रकट हुए थे, इसलिए वे अपने आगमन के स्मारक के रूप में एक ज्योर्तिलिंग की शक्ल में यहां स्थापित है और ओंकारेश्वर इसलिए संसार में 12 ज्योतिर्लिंग में से एक गिना जाता हैं एक उत्सुक साधारण यात्री के लिए ओेंकारेश्वर का महत्व इसलिए भी ज्यादा है कि यह बद्रीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री जैसे शिव को समर्पित तीर्थों की तुलना में सबसे कम दुरूह रास्ते के अंत पर बसा है. इंदौर से सवा घंटे में आप या कर के कारक युग में पहुंच जाते हैं और वहां से जप तप के कर्मकांड से गुजर कर वापस अपने इस इस नश्वर संसार में अपने दुनियादारी के कर्तव्य पूरे कर सकते है. 
वैसे अगर समय हो तो ओंकारेश्वर में हर धर्म और हर विचार का अपना तीर्थ मौजूद है. मध्य कालीन ब्राम्हणी विचार धारा का अति प्राचीन सिध्दनाथ मंदिर है, जहां एक ही चट्टान पर हाथियों की पूरी बारात मौजूद है. चौबीस अवतार के नाम से हिंदू और जैन मंदिरों का एक पूरा सिलसिला मौजूद है जो धर्म के अलावा अपने स्थापात्य के लिए भी देखा जाना चाहिए. सिर्फ 6 किलोमीटर दूर दंसवी सदी के मंदिरों का एक समूह है हां फिर कलाकरों के भक्ति से जुड़ने की साक्षात कथा देखी जा सकती है. पिकनिक का मन हो तो नो किलोमीटर दूर पर काजल रानी गुफाए हैं, जो 21 वीं सदी में भी आपको जंगल बुक की दुनिया में होने का एहसार करवा सकती है। 
वैसे आेंकारेश्वर महादेव मंदिर के एक दम पड़ोस में गायत्री शक्ति पीठ भी लगभग बन कर तैयार है और वह भी कम तीर्थ नहीं हैं ठहरने की चिंता छोड़ दीजिएं दस रुपए रोज की धर्मशालाओं से ले कर 700 रुपए तक के वातालुकूलित कमरे मौजूद हैं और जब तीर्थ में आए है तो मैन्यू देख कर खाने का क्या लाभ? शाकाहारी भोजनालयों की कतार लगी है, भरपेट खाइए, चाहें तो सो जाइए या फिर नर्मदा में चल रही नावों पर नौका विहार करके आइए. आप बहुत सारे ईश्वरों और देवताओं की छत्र छाया में हैं इसलिए चिंता की कोई बात नहीं. 
 

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