सतीश जायसवाल
गर्मियों के मौसम की शाम रसीले तरबूजों और मीठे खरबूजों से खिलती है.कितने मौसमों से ये फल मन को ललचा रहे थे.लेकिन बड़े बड़े तरबूज एक अकेले आदमी को बस दूर दूर से ललचाते हैं. तरबूज का रसीला स्वाद तो भरे-पूरे घर-परिवार का मजा होता है.
इसका एक तरीका सूझा.इंडियन कॉफी हाउस की हमारी टेबल मण्डली भी तो मेरे लिए एक परिवार ही हुई.पिछले 04, 05 मौसमों से अपनी इस मण्डली के सामने तरबूज-भोज का एक शानदार प्रस्ताव रख रहा था.लेकिन इतना निर्दोष सा प्रस्ताव भी मण्डली की टेबल पर हर बार गिरता रहा.और रसीले तरबूज का शीतल लाल रंग दूर दूर से ललचाता रहा.
रंजना ने एक रास्ता सुझाया. और मुझे समझ में आया कि बहुत हुआ. कोई साथ नहीं तो क्या हुआ ? मैँ तो हूँ ना !मैंने आज एक बढ़िया सा तरबूज खरीदा. और सुन्दर ढंग से काटकर प्लास्टिक के दो डिब्बों में सजाया और ठंडा होने के लिए फ्रिज में रख दिया. अब बेसब्री से अपने तरबूजों के लिए रास्ता देख रहा हूँ. किन्हीं औरों के लिए क्या रास्ता देखना ? कहीं, कोई एक तो है ! जिसके साथ मेरा कोई रिश्ता नहीं, फिर भी कोई रिश्ता तो है.
हाँ, यह रंजना कौन है.नहीं बताऊंगा.लोग अंदाज़ लगाते रहें और मेरे दोस्तों की सूची खंगालते रहें.वहां एक नहीं, बल्कि 05- 05 रंजना हैं.सभी अपने अपने फील्ड के जाने-माने नाम.
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