चंचल
दो तीन दिन पहले की बात है . अचानक विनोद दुआ का फोन आया . - यार! एक बात बताओ आलू गोश्त खाते हो न ? - बिल्कुल , लेकिन अचानक यह आलू गोश्त ? - कल रात में सपना देखा और विनोद हमे सपने में लेकर चले गए . बात होती रही ,और विराम लगा दिल्ली पहुच कर तुरत मिलने के वायदे पर . बाज दफे कुछ शब्द , वाकयात , लम्हे , यहां तक कि हवा की खुनक ,आपको उठाकर दूसरे लोक में फेंक आती है और आप कुछ देर तैर कर जब वापस आते हैं बहुत कुछ तरो ताजा हो जाता है . विनोद दिल्ली के दोस्त हैं . निहायत जहीन , नफीस , सलीके का सदाचारी और अव्वल दर्जे का दोस्तबाज . हम लोग ' बहके हुए जमात ' से ताल्लुकात रखनेवाले वो लोग रहे हैं जो गलत गलत हर हाल में बोलते रहे हैं . विनोद सियासत में नही गए , क्यों ? इसपर कभी चर्चा नही हुई गो कि दिल्ली विश्व विद्यालय से अनेक बेहतरीन शख्सियतें सियासत से जुड़ी और जेरे बहस रहीं . तुर्रा यह कि हमारे ताल्लुकात इन सब से रहे और बेहतर रहे . प्रो0 राजकुमार जैन , भाई हरीश खन्ना , विजय प्रताप , ललित गौतम , अरुण जेटली , रजत शर्मा सुधीर गोयल , वगैरह वगैरह . ये उस समय की बात है जब ' मन भेद ' और ' मतभेद ' दो अलहदा स्थितियां हुआ करती थी , उनपर हम जीते थे . भाई विनोद दुआ उसी माहौल से निकले तालिबे इल्म रहे जिनकी खूबी इनकी सपाट बयानी और ' खतरनाक ' पंच और विट है . जिसके चलते भाई विनोद दुआ को पहला बेबाक एंकर कहा जा सकता है और यही सच है . दूरदर्शन का एक अकेला कार्यक्रम उस पर लगे सत्तामुखी होने के लांछन को मिटा देता है . विनोद न चीखते थे (हैं ) न ही चिल्लाते थे , छोटा सा सवाल मंत्री जी की तरफ बढ़ा देते थे ,अब उछलना कूदना , फिर माफी तक आ जाना मंत्री या नौकरशाह को करना पड़ता . उन दिनों हम लोग की सांझ मंडी हाउस के श्री राम सेंटर की कैंटीन पर ठहाकों के साथ गुजरती . साहित्य , पत्रकारिता , रंगमंच , संगीत , गरज यह कि अदब की सारी विधा फिजा के जद में रहती और हम उनके संवादी रहते . अज्ञेय , रघुवीर सहाय , सर्वेश्वर दयाल सक्सेना , मनोहर श्याम जोशी , महेंद्र भल्ला , प्रयाग शुक्ल , यम के रैना , भानु भारती , रंजीत कपूर , ओम पुरी , के के रैना , मनजीत बाबा , राजेन्द्र नाथ , यस यन जहीर , पंकज कपूर कहाँ तक नाम गिनाया जाय ? इनकी मौजूदगी ही कई चैप्टर पढा जाती थी .
' इस पोस्ट को लिखने की वजह ? '
- अब यह सोहबत नही रही , रवायत खत्म हो रही है ,
ऐसा नही की अब की पीढ़ी में विनोद दुआ नही हो रहे हैं , या ख्वाब आना बंद हो चुका है , सब है लेकिन फोन उठा कर चंचल से दरियाफ्त करने की ललक ही मर चुकी है . क्या वक्त बर्बाद किया जाय कि - यार चंचल ! आलू गोश्त तो खाते हो न ? यह जिज्ञासा भर नही थी , दोस्ती
आपकी आवश्यक आवश्यकता का एक जरुरी हिस्सा है उसे जिंदा रखो . इस पीढ़ी ने यह दरवाजा बंद कर दिया है , ऐसा नही है . इसे तकनीकी विकास (?) ने बधिया कर दिया है एल्विन टफलर का फ्यूचर शॉक इस पीढ़ी को देख लेना चाहिए .
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments