अडानी मुद्दा - फाइनेंशियल टाइम्स रिपोर्ट पर डटा है

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अडानी मुद्दा - फाइनेंशियल टाइम्स रिपोर्ट पर डटा है

संजय कुमार सिंह 

भारतीय जनता पार्टी के शासन में अगर अडानी का नेटवर्थ कई गुना बढ़ा और वे दुनिया के दूसरे-तीसरे नंबर के पूंजीपति बन गए तो यह सरकार के सहयोग के बिना संभव नहीं है. मामला इतना खुला था कि हिन्डनबर्ग ने इसमें कमाई देखी और उसके घपलों-घोटालों की रिपोर्ट कई पन्नों में है. एक पुस्तिका बन जाए. पुराने समय में इसे अखबारों ने किस्तों में छापा होता. पर कुछ नहीं हुआ – और यही इसकी गंभीरता बताता है. दूसरी ओर, मामले को खत्म करने या ठंडे बस्ते में डालने की कोशिशों को कोई ना कोई झटका लग ही जाता है. ताजा मामला फाइनेंशियल टाइम्स की खबर का है. इसके बाद कुछ दिन शांति रही लेकिन 13 अप्रैल 2023 को पता चला कि फाइनेंशियल टाइम्स अपनी खबर नहीं हटायेगा. यहां भारत सरकार ऐसे कानून बनाने जा रही है जिसके तहत अगर भारत सरकार की संबंधित एजेंसी ने कह दिया कि खबर गलत है तो संबंधित पोर्टल या संस्थान को वह खबर हटानी होगी. इस लिहाज से एफटी अगर भारत में होता तो उसे शायद यह खबर हटानी पड़ती. पर वह अलग मुद्दा है.  

द टेलीग्राफ के अनुसार फाइनेंशियल टाइम्स की खबर का शीर्षक था, "आंकड़ों से पता चलता है कि अडानी का साम्राज्य विदेशी फंडिंग पर आश्रित है". यह खबर 22 मार्च 2023 को छपी. इससे पहले अडानी पर राहुल गांधी का भाषण एक्सपंज किया जा चुका था. बीच में राहुल गांधी की सदस्यता गई, बंगला खाली करने का नोटिस आया, ललित मोदी ने कहा कि वे लंदन में राहुल गांधी पर मुकदमा करेंगे. उनके वकील रहे सुषमा स्वराज के पति और दोनों की बेटी बांसुरी को भाजपा में पद मिला. यह सब 30 मार्च तक चला. उधर, 31 जनवरी को शुरू हुआ संसद का सत्र राहुल गांधी के बोले और माफी मांगे बगैर 6 अप्रैल को अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया. 10 अप्रैल को अडानी समूह ने फाइनेंशियल टाइम्स से कहा कि अपनी रिपोर्ट हटा ले. इसकी कॉपी तमाम पत्रकारों को भेजी गई. कुछ अखबारों में इस आधार पर खबर भी छपी और सरकार समर्थक लोग कहने लगे कि विदेशी निवेश की खबर गलत है. 

फाइनेंशियल टाइम्स को खंडन जारी होने के बाद और इस आधार पर खबर को गलत कौन कहे. लोग प्रचार करते रहे. इस तथ्य के बावजूद कि एफटी की खबर की शुरुआत इस तरह हुई थी, “गौतम अडानी के संघटन का तकरीबन आधा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश विदेशी कंपनियों से आया है जो उनके परिवार से जुड़े हुए हैं.” इससे समझा जा सकता है कि समूह में आने वाले धन के प्रवाह की जांच करने वालों की भूमिका कितनी मुश्किल है. एक विश्लेषण के अनुसार 2017 से 2022 तक भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश मद में आए भुगतान का 45.4 प्रतिशत अडानी से जुड़ी विदेशी कंपनियों से आया है. इस अवधि में कुल राशि 5.7 अरब डॉलर बताई गई है. इस आंकड़े से यह तथ्य रेखांकित होता है कि अडानी को अपना विशाल समूह बनाने में किस तरह की मदद मिली है. कहने की जरूरत नहीं है कि यह मदद किसी और को मिली होती तो भी सवाल उठते. अडानी प्रधानमंत्री के मित्र हैं. इसे तो उन्होंने तब भी नहीं छिपाया था जब वे पत्नी और भाइयों का भरा पूरा परिवार होते हुए दावा कर रहे थे कि उनका कोई नहीं है. 

परिवार से जुड़े विदेशी संस्थाओं से अडानी समूह में धन प्रवाह की पूरी मात्रा और अधिक होने की संभावना है क्योंकि एफडीआई डेटा केवल विदेशी निवेश के एक हिस्से का ही होता है. हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट 23 जनवरी को आई थी और तथ्य है कि सितंबर 2022 तक, अडानी समूह भारत के सबसे बड़े धन प्राप्तकर्ताओं में से एक था. इसे आधिकारिक तौर पर एफडीआई के रूप में दर्ज किया गया था, और देश में जो आया उसका छह प्रतिशत अडानी को गया. 12 महीने की अवधि में समूह ने जो एफडीआई सूचीबद्ध की है वह $2.5 बिलियन है और इसमें से, $526 मिलियन अडानी परिवार से जुड़ी मॉरीशस की दो कंपनियों से आए हैं जबकि लगभग $2 बिलियन अबू धाबी की इंटरनेशनल होल्डिंग कंपनी से आए हैं. यह एफटी की रिपोर्ट का भाग है जिसे द टेलीग्राफ ने 13 अप्रैल को बताया है. 

अडानी कंपनियों में अस्पष्ट विदेशी निवेश की पूरी सीमा इससे भी अधिक होगी. आधिकारिक एफडीआई आंकड़ों में न तो विदेशी पोर्टफोलियो निवेश शामिल हैं और न ही सूचीबद्ध कंपनियों में उनकी चुकता पूंजी के 10 प्रतिशत से कम के निवेश शामिल हैं. संघटन को एफडीआई की आपूर्ति करने वाली अधिकांश अपतटीय शेल कंपनियों को अडानी के 'प्रवर्तक समूह' के हिस्से के रूप में दिखाया गया है, जिसका अर्थ है कि वे अडानी या उनके निकट परिवार से करीब से जुड़े हुए हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अपतटीय संस्थाओं की भूमिका पहले से ही एक ऐसे साम्राज्य की तरह है जहां सब कुछ दिखावे के लिए क्योंकि सम्राट ही अकेला शासक है. अडानी समूह की सैकड़ों सहायक कंपनियां हैं और हजारों संबंधित- लेनदेन का खुलासा किया गया है. इससे पूरे मामले में पारदर्शिता और कम हो जाती है. इतनी कि इसके बावजूद उसके शेयर कैसे बढ़े यह आश्चर्यजनक है.      

दूसरी ओर, एक दिलचस्प खुलासा है और वह यह कि, अडानी के अनुसार ये सारे लेन-देन हमारे खातों में पूरी तरह घोषित हैं और 2015 से चले आ रहे हैं. यही तो मुद्दा है. 2015 में कंपनी ने अगर एलान किया कि उसके पास विदेशी शेल कंपनी से निवेश आए हैं तो इसकी जांच होनी चाहिए थी. अगर इसमें कुछ गलत था तो कार्रवाई होनी चाहिए थी. चुप रहना ही तो शिकायत है और इसीलिए गंभीर है कि 2015 में इसका खुलासा हुआ. चूंकि खुलासा किया जा चुका है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि सब ठीक है और यही मिलीभगत का संदेह पैदा करता है. यही नहीं, अडानी हिन्डनबर्ग के आरोपों से सख्ती से इनकार करते हैं पर यह बताने से मना कर दिया कि इतने बड़े अनुपात में विदेशी पैसे उन कंपनियों से क्यों आए हैं जिनके पैसे का अंतिम स्रोत स्पष्ट नहीं है." यही राहुल गांधी का सवाल है.         

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