डॉ शारिक़ अहमद ख़ान का ऐसे जाना

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डॉ शारिक़ अहमद ख़ान का ऐसे जाना

विजय शंकर सिंह

डॉ शारिक़ अहमद ख़ान के आकस्मिक निधन की सूचना ने मेरे सहित, उनके सभी मित्रों के लिए वज्रपात के समान है. विचलित कर देने वाली इस खबर ने कुछ समय के लिए तो स्तब्ध कर दिया था. काफी दिनों से उनकी पोस्ट नहीं आ रही थी, तो Shambhunath Shukla जी, जो उनसे निरंतर संपर्क में रहते थे की वॉल से कभी कभी उनकी खबर मिल जाती थी और यह आस बंध जाती थी कि, अब वे फेसबुक पर नियमित हो जायेंगे. 

पर आज जब शंभूनाथ शुक्ल जी की वॉल पर शारिक भाई के दुःखद मृत्यु की सूचना मिली तो एक झटका सा लगा. सोचा शुक्ल जी से फोन कर के पूरी बात जानूं. पर मेरी हिम्मत नहीं हुई और शुक्ल जी भी ऐसे वक्त पर क्या बताते क्या कहते. इसलिए उनसे भी बात नहीं कर सका. 

डॉ शारिक़ लगभग हर विषय पर लिखते थे और उनकी लेखक शैली रोचक और तथ्यात्मक भी होती थी. मैं अक्सर उनकी पोस्ट, अपने पेज लोक माध्यम पर उनके कुछ लेख शेयर किए हैं और वे खूब पढ़े भी गए हैं. फिराक गोरखपुरी, लखनऊ शहर, मुस्लिम समाज के रीति रिवाज, पूर्वांचल की सांझी विरासत, आजमगढ़, जहां के वे मूल निवासी थे, से लेकर खानपान तक अनेक विषयों में उनकी पकड़ थी. पैनी नजर और बांधे रखने वाली उनकी किस्सागोई आकर्षक थी. मेरी उनसे मुलाकात कभी नहीं हुई. पर मैं उनका नियमित पाठक था. आज मैं उनकी एक  पुरानी पोस्ट, जो निलहे अंग्रेज जमींदार जेम्स बार्बर, से जुड़ी है को पुनः आप सबसे साझा कर रहा हूं. 

बार्बर साहब द नील ज़मींदार

आज हम सुनाते हैं नील के अत्याचारी ज़मींदार चार्ल्स जोसेफ़ बार्बर की अनसुनी दास्तान।जब 1857 की जंग ख़त्म हुई और अंग्रेज़ों से लड़ने वाले आज़मगढ़ के माहुल स्टेट के राजा इदारत जहाँ ख़ान को अंग्रेज़ों ने हाथी से कुचलवाकर मार डाला तो उनके राज्य की ज़मीनों पर क़ाबिज़ हो गए।अंग्रेज़ अपनी पलटन में लड़ने वालों को जीतने पर ईनाम और आमतौर पर विजन का अधिकार देते।विजन एक तरह की लूट होती जिसके तहत हारे हुए राज्य की प्रजा को अंग्रेज़ी सेना और उसकी सहयोगी सेना के सैनिक लूटते।प्रजा से विजन नाम की लूट में मिला सोने-चाँदी जैसा क़ीमती सामान अंग्रेज़ सेना रखती,ज़मीन पर क़ब्ज़ा भी वही रखती और बाकी की संपत्ति सहयोगी सेनाओं और काले सैनिकों के हाथ लगती।जब माहुल राज्य हारा और उसके शासक का क़त्ल अंग्रेज़ों ने कर दिया तो राज्य का तीन हिस्सों में बंटवारा कर ज़मीन की नीलामी कर दी।तीनों हिस्से की ज़मीनों को नीलामी में आज़मगढ़ के सुपरिटेंडिंग सर्जन रहे चिकित्सक जेम्स बार्बर नामक एक अग्रेज़ अधिकारी ने ख़रीदा।अंग्रेज़ों ने तीनों जगहों की ज़मींदारी नील की खेती करने की शर्त पर नीलामी में ज़मीन हासिल करने वाले सर्जन को सौंपी।अंग्रेज़ लोग  ज़मींदार को ज़िमिन्दार भी कहते और लिखते।सर्जन के तीन पुत्र थे।तीनों को उन्होंने ज़िमिन्दारी बाँटी।उनकी एक हिस्से की ज़मींदारी का मुख्यालय आज़मगढ़ ज़िले के फूलपुर के पास स्थित गाँव खुरासों था।वो सर्जन ने अपने पुत्र मॉर्टिन को दिया।अंग्रेज़ ज़मींदार मॉर्टिन साहब नील की खेती कराते और देसी लोगों में बहुत प्रसिद्ध थे,वो दयालु माने जाते।लकड़ी की साईकिल से भी चलते जो उस दौर में अजूबा थी और क्रिसमस की पूर्वसंध्या पर सेंटा बन ग़रीब बच्चों को उपहार बांटते।उनसे स्थानीय लोग बहुत प्रेम करते।उनके खुरासों बंगले के अवशेष आज भी मौजूद हैं।जहाँ खुरासों का इंटर कालेज है उसी के पीछे इनका बंगला था,हमने देखा है।दूसरी ज़मीन के हिस्से का मुख्यालय था खुरासों से आगे स्थित शमसाबाद,जहाँ शमसाबाद का क़िला था और आज भी उसका ध्वस्त कोट मौजूद है,हमने वो स्थान देखा है।वहाँ नदी से क़िले में पानी खींचकर लाने की एक अनोखी तकनीक पर आधारित लगभग ध्वस्त हो चुकी एक कुआंनुमा इमारत है।यहाँ सर्जन जेम्स बार्बर के दूसरे पुत्र मिस्टर लॉली को ज़मींदारी मिली।तीसरा हिस्सा निज़ामाबाद की सोंढरी की ज़मींदारी का था जो जेम्स बार्बर के तीसरे पुत्र चार्ल्स जोसेफ़ बार्बर उर्फ़ रॉनी को मिला।जिनको देसी लोग राणी साहब कहा करते।यहाँ चार्ल्स जोसेफ़ बार्बर साहब नील की खेती कराने लगे और सोंढरी की ज़मींदारी संभालने लगे।सोंढ़री में ही बंगला बनाकर रहते।वहीं नौकर-चाकर-बग्घी-साईस सब कुछ उन्हें हासिल थे।चार्ल्स जोसेफ़ बार्बर की शादी तब आज़मगढ़ के दोहरीघाट के नील के अंग्रेज़ ज़मींदार रहे मिस्टर हैरी डाड्सवर्थ की बेटी एलन रोज़ से हुई थी।एलन रोज़ भी आज़मगढ़ के निज़ामाबाद के पास स्थित अपने पति की ज़मींदारी में स्थित सोंढ़री के बंगले पर रहती थीं और उनकी प्रसिद्धि एक दयालु और ग़रीब परवर के रूप में थी।इसके उलट उनके पति मिस्टर चार्ल्स बार्बर आला दर्जे के अत्याचारी ज़मींदार थे और रिआया उनके अत्याचारों से तंग थी।जबरन नील उगवाते और प्रजा के हाथ कुछ नहीं लगता।तरह-तरह से प्रजा को कष्ट देने में बार्बर साहब को आनंद आता।बहरहाल, मिस्टर बार्बर के कपड़े धुलने के लिए आज़मगढ़ शहर के अतलस टैंक नाम के पोखरे में आते।अतलस एक तरह का कपड़ा होता था जो उस समय बहुत महंगा मिलता।रईस ही पहनते।जिस पोखरे में अंग्रेज़ों और रईसों के अतलस के कपड़े धुलते उसका नाम ही अतलस टैंक पड़ गया।एक बार धोबी उनके कपड़े लेकर सोंढ़री से अतलस टैंक की तरफ़ चला तो कपड़े ज़मीन से लगते जा रहे थे,बार्बर के किसी चाटुकार ने उनसे धोबी की बात बताई और कहा कि ये आपका अपमान है कि आपके कपड़े को धोबी ज़मीन से रगेदता हुआ ले जाए।ये सुन ज़मींदार बार्बर ने क्रोधित हो धोबी को बुलवाया और उसका क़त्ल कर दिया।अब पानी सिर से ऊपर हो गया।प्रजा ने तय किया कि बार्बर का ख़ात्मा ज़रूरी है।रिआया उनके रोज़ के अत्याचारों से तंग आ गई थी।लेकिन बार्बर को बाहर मारना नामुमकिन था।क्योंकि बाहर बार्बर बंदूक भी संग रखता और उसके अंगरक्षक भी उसके साथ रहते।लिहाज़ा तय हुआ कि बार्बर का ख़ात्मा रात में उसके बंगले पर ही हो।कुछ सरकश किस्म के लोग इस काम को अंजाम देने के लिए आगे आए।सबने तय कि जिस बर्बरता से बार्बर लोगों को प्रताड़ित कर मारता है और जैसी बर्बरता से उसने धोबी का क़त्ल किया,उसी तरह उसे भी ख़ौफ़नाक मौत दी जाएगी।अब इन लोगों ने बार्बर का खाना बनाने वाले हिंदोस्तानी कुक को मिला लिया।लेकिन बार्बर के पास एक ख़तरनाक कुत्ता भी था।कुत्ता रात में पहरा देता।उसके रहते कोई बार्बर तक नहीं पहुंचता,कुत्ता भौंककर बार्बर को जगा देता तो बार्बर सबको गोली मार देता।लिहाज़ा योजना के अनुसार कुक ने काम किया।कुक ने रात में मिस्टर बार्बर को रोज़ की तरह शराब परोसी और खाना खिलाया।ज़मींदार बार्बर सो गए।उसके बाद कुक ने कुत्ते को ज़हर दे दिया।कुत्ता मर गया तो कोठी के भीतर से कुक ने दरवाज़ा खोल दिया।अब बार्बर से पीड़ित भारतीय प्रजा में से वही छंटे हुए लोग अंदर आ गए जिनको काम अंजाम देना था और बार्बर का बेरहमी से क़त्ल कर दिया।लेकिन बार्बर की पत्नी को कुछ नहीं किया।क्योंकि वो दयालु थीं और ग़रीब परवर।बार्बर की हत्या से सनसनी फैल गई।अंग्रेज़ सरकार सकते में आ गई।ये घटना सन् 1902 की है।इस क़त्ल का मामला इंग्लैंड तक गूंजा।कई लोग हत्या के आरोप में पकड़े गए,कुछ को फांसी हुई तो कुछ को लंबी सज़ाएं हुईं।बार्बर को आज़मगढ़ शहर में स्थित अंग्रेज़ों के नए क़ब्रिस्तान हरबंशपुर में दफ़नाया गया।बार्बर की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी एलन रोज़ भी लंबे समय तक जीवित नहीं रहीं।लगभग छह बरस बाद वो भी चल बसीं।बार्बर की क़ब्र के बगल में उनकी पत्नी को भी दफ़नाया गया।चार्ल्स जोसेफ़ बार्बर और एलन रोज़ में बहुत मोहब्बत थी,इसकी भी एक लंबी प्रेम कहानी है और उनसे जुड़ी एक हवेली भी हमने देखी थी उसकी भी दिलचस्प और लंबी कहानी है जो फिर कभी सुनाएंगे।बार्बर और एलन रोज़ की क़ब्र को उनके परिवार ने शानदार बनवाया और क़रीब एक जैसी ही दोनों की कलाशैली है।दोनों अब दुनिया से जाने के बाद भी साथ हैं क्योंकि अगल-बगल हैं।दोनों की क़ब्रें आज भी मौजूद हैं।हमने सोचा कि बार्बर की दास्तान सुना दें,शोध करने वालों के काम आएगी।वरना हमारे बाद ये दास्तान कोई सुना नहीं पाएगा।क्योंकि अब आज़मगढ़ में भी शायद सभी लोग बार्बर को भूल चुके हैं. 

© डॉ शरिक अहमद खान

डॉ शारिक़ अहमद खान के दुखद निधन पर मेरी विनम्र श्रद्धांजलि. उनके परिवार को यह वज्राघात सहन करने की शक्ति मिले, यही प्रार्थना है. 

(विजय शंकर सिंह)

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