चंचल
अरसे बाद बच्चे का हुनर देख रहा था ,गो की यह एक बुजुर्ग हो चुकी मानसिकता की गलतफहमी हो सकती है ,और हुआ भी यही . नानू और नातिन आमने सामने थे , गवाह में परिंदे थे जिन्हें अरसे बाद धूप मिल रही थी ,वे मगन थे अपने अपने दरख्तों पर .
नातिन का नाम अनुष्का है . वरीयता क्रम में यह पहली ग्रैंड डॉटर है . बेटी की बेटी . इंजियनरिंग करके बिदेशी कम्पनी में काम कर रही है ,इतनी सामान्य जानकारी हमे है बाद बाकी कुछ पता नही .
नानू तुम अपनी बॉयोग्राफी लिखो
- क्यों ?
- मजेदार होगा , मम्मी जो किस्से बताती हैं बहुत मजेदार होते हैं .
- जैसे आप बहुत गरीब थे
- गरीब कभी नही रहा
- क्यों नही रहे ? क्या ये सच नही है कि आपको पढ़ने के लिए मां जी ने अपने गहने बेच कर पैसे दिए ?
- हमारे जमाने मे नोट किसी घर मे छप्पड़ फाड़ कर नही गिरते थे . पैसे पिता जी रखते थे , गहने भीतरखाने के जद में रखे जाते थे . पिता जी ने साफ इंकार कर दिया कि अब यह पढ़ेगा नही , इसलिए कोई खर्च नही .
- ऐसा क्यों ?
- एक दिन एक साधू आया और भविष्य बता गया कि यह लड़का पढ़ेगा लिखेगा नही इसकी लकीरें बता रही हैं यह जेल जायगा . बस , माँ रोने लगी , पिता जी को सबूत मिल गया और हम लखैरा घोषित हो गए . असलियत यह थी कि हम अंग्रेजी हटाने गए थे , सरकार ने कान पकड़ कर जेल में डाल दिया और इसकी जानकारी उस साधू ने कहीं से पता कर लिया था वही भविष्यवाणी बन गयी .
- लिख डालो न नानू ! किताब लिख दो .
- एक शर्त पर
- बोलो
- लिखने का पैसा लूंगा
- कितना ?
- पूरे पचास हजार
- पक्का . तय .
कमबख्त यहां भी गच्चा खा गए . 'नाई के लड़िका सोहारी के सपन देखे ' . ख्वाइश की कंगाली देखिये पचास हजार था मामले को उलझाने के लिए और वार्ता पर विराम लगाने के लिए , ठीक उसी तरह जैसे जिन्ना ने बटवारे को बे"मन से स्वीकारा और अंत एक अड़ंगेबाजी भी किया कि उसे ढाखा से लाहौर के बीच 70 मील चौड़ी कारीडोर दिया जाय . जिन्ना तो उपहास के विषय बन गए लेकिन हम पचास हजार में फंस गए .
एक महीना . इतना वक्त बहुत है .
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