सुप्रीम कोर्ट को मातहत बनाने की कोशिश

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सुप्रीम कोर्ट को मातहत बनाने की कोशिश

हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली! एलक्शन कमीशन और इंफारमेशन कमीशन समेत मुल्क के तमाम संवैधानिक इदारों (संस्थानों) को अपने इशारों पर चलाने वाली मोदी हुकूमत को सुप्रीम कोर्ट की आजादी पसंद नहीं है.  सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की सिफारिशात मानी नहीं जा रही हैं.  मरकजी वजीर कानून किरण रिजिजू के काबिले एतराज बयानात पर भी सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जाहिर की है.  सुप्रीम कोर्ट और सरकार के दरम्यान पैदा हुए टकराव को खत्म करने की कोशिश अगर वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने न की तो हालात और खराब हो सकते हैं.  मुख्तलिफ हाई कोर्टों में जजों की तकर्रूरी से मुताल्लिक कोलेजियम की सिफारिशात की फाइल दबाए रहने  और उसपर गैरजरूरी बयानबाजी करने वाले मरकजी वजीर कानून और सरकार दोनों को सख्त नसीहत देते हुए अदालते आलिया की जस्टिस एस के कौल, जस्टिस ए एस ओंका की बेंच ने कहा कि सरकार को कानून तो मानना ही पड़ेगा.  अदालत ने कहा कि सरकार के रवैये की वजह से मुल्क में अदलिया (न्यायपालिका) की कार्रवाई बुरी तरह मुतास्सिर हो रही है.  सरकार हमें कानूनी कार्रवाई करने के लिए मजबूर न करे.  इस दरम्यान किरण रिजिजू के बयान के बाद सरकार ने बीस में से अट्ठारह फाइलें सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को वापस कर दी जिनमें कोलेजियम ने जजों की तकर्रूरी की सिफारिश की थी.  इन बीस फाइलों में नौ मामलात ऐेसे हैं जिनकी सिफारिश कोलेजियम ने सरकार को दूसरी बार भेजी थी.  कानून के मुताबिक अगर सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम जज की तकर्रूरी की सिफारिश सरकार से दूसरी बार दे तो सरकार को उसे मानना ही पड़ता है. 


अगर किरण रिजिजू के बयानात  पर गौर किया जाए तो सरकार यह चाहती है कि आरएसएस नजरियात (विचारधारा) वाले लोगों को ही जज बनाया जाए.  पार्लियामेंट के पिछले इजलास में किरण रिजिजू ने लोक सभा में कहा था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की सिफारिशात को दबा कर नहीं बैठती है बल्कि कोेलेजियम के जरिए भेजे गए नामों वाले वकीलों का बैकग्राउण्ड और उनके नजरियात (विचारधारा) मालूम करने के बाद ही नामों को मंजूरी देती है.  उनके इस बयान पर बीएसपी मेम्बर कुंवर दानिश अली ने खड़े होकर कहा कि आपके नजरियात तो आरएसएस के हैं जो देश के लिए खतरनाक हैं.  आप आरएसएस बैकग्राउण्ड के वकीलों को ही जज बनाना चाहते हैं.  इसपर किरण रिजिजू ने कहा था कि हमारे जो नजरियात हैं वही देश के भी नजरियात हैं और वही देश के लिए बेहतर है.  उन्होने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पास ऐसी कोई एजंेसी नहीं है जो वकीलों के बैकग्राउण्ड और उनकी कारकर्दगी का पता लगा सके, जबकि सरकार के पास कई एजेंसियां हैं.  जिनके जरिए हम किसी भी वकील के बारे में हर तरह की इत्तेला हासिल कर सकते हैं. 

सरकार ने कोलेजियम के जरिए भेजी गई सभी बीस फाइलें कोलेजियम को वापस कर दीं, इससे तो यही अंदाजा लगता है कि सरकार कोलेजियम का वजूद खत्म करके जजों की तकर्रूरी का काम अपने हाथों में लेना चाहती है.  वर्ना बीस नामों में कुछ तो ऐसे होंगे जिन्हें सरकार जज बना सकती थी.  इन बीस नामों में साबिक चीफ जस्टिस बी एन कृपाल के बेटे सौरभ कृपाल का नाम भी शामिल था.  जिनका दावा है कि वह ‘गे’ (हमजिंस) हैं.  सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की सिफारिश वाली सभी बीसों फाइलें वापस किए जाने पर जस्टिस एस के कौल और जस्टिस ए एस ओका की बेंच ने अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से पूछा कि क्या सरकार के जरिए मुजव्विजा (प्रस्तावित) नेशनल ज्यूडीशियल अपवाइंटमेंट कमीशन को सुप्रीम कोर्ट के जरिए रद्द किए जाने की वजह से सरकार नाराज है और ऐसा कर रही है.  बेंच ने कहा कि वजीर कानून किरण रिजिजू के कोलेजियम के बारे में दिए गए बयान से तो ऐसा ही लगता है.  लेकिन सरकार को समझ लेना चाहिए कि तयशुदा कानून को ही मानने की कोई वजह नहीं है.  उन्हें तो तस्लीम करना ही पड़ेगा.  सरकार हमें कानून के मुताबिक एकतरफा फैसला करने पर मजबूर न करे. 

मोदी सरकार और उनके वजीर कानून शायद यह चाहते हैं कि जजों की तकर्रूरी का मामला सीधे-सीधे सरकार के हाथों में आ जाए.  अगर ऐसा मुमकिन न हो तो कोलेजियम उन्हीं नामों की सिफारिश सरकार से करे जिन नामों का मश्विरा पहले ही सरकार की जानिब से दिया गया हो.  मतलब सुप्रीम कोर्ट को जजों की तकर्रूरी में कोई अख्तियार बाकी न रहे.  उसका काम सिर्फ डाकिए जैसा हो जाए.  मरकजी वजीर कानून किरण रिजिजू ने बार-बार कहा है कि जजों के जरिए दूसरे जजों की तकर्रूरी का जवाज (औचित्य) क्या है. 


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