मैनपुरी क्या संदेश देगा ?

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

मैनपुरी क्या संदेश देगा ?

डा रवि यादव 

मुलायम सिंह यादव के असामयिक निधन से रिक्त लोकसभा सीट का उपचुनाव बेहद दिलचस्प होने जा रहा है.  यूँ इस सीट पर अपनी तमाम कौशिशों के बावजूद भाजपा अब तक कभी सफल नहीं रही है .  अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों और 2 उपचुनाव मे 8 बार सपा के अलावा इस लोकसभा सीट पर 5 बार कांग्रेस , एक एक बार  प्रजा सोशलिस्ट पार्टी , भारतीय लोकदल, जनता पार्टी और जनता दल का क़ब्ज़ा रहा है .किंतु इस उपचुनाव में भाजपा किसी भी क़ीमत पर इस सीट पर जीत हासिल कर मुख्य विपक्षी पार्टी सपा के अब तक अभेद्य गढ़ पर क़ब्ज़ा कर आगामी लोकसभा चुनाव में उसके मुक़ाबले में कोई नहीं का संदेश देना चाहती है तो समाजवादी पार्टी भी इस संदेश को समझ रही है और इसलिए पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव जो अब तक उपचुनावों में प्रचार से दूर रहते रहे है अब गाँव गाँव जाकर चुनाव प्रचार कर रहे है.


भाजपा को अखिलेश - शिव पाल सिंह यादव के बीच आपसी मतभेद से बढ़ी उम्मीद थी मगर  समर्थकों के दबाव ,और राजनीतिक ज़रूरत ने अखिलेश यादव को चाचा शिवपाल सिंह से मतभेद दूर करने पर मजबूर किया तो राजनीतिक मजबूरी और सामाजिक मान्यताओं ने चाचा शिवपाल सिंह को भी बहु डिम्पल का साथ देने पर मजबूर कर दिया. मुलायम सिंह के निधन के बाद सैफ़ई घर पर संवेदना प्रकट करने आने बालें तमाम आम-ओ-ख़ास से दोनो को साथ आने की सलाह दी तो शिवपाल सिंह यादव यह भी समझ रहे थे कि उनके शुभचिंतक और अखिलेश के शुभचिंतक कोमन है वे यदि कोई अलग राह पकड़ते तो भी बहुत अधिक फ़र्क़ डालने की स्थिति में न होते अतः दोनो ने साथ आना ही बेहतर समझा . दोनो के मिलने से सीधे वोट कितना बढ़ेगा इसमें संदेह है मगर समाजवादी पार्टी समर्थकों के लिए यह घटना उत्साह बढ़ाने का काम ज़रूर करेगी जिससे वे अधिक मेहनत कर चुनाव लड़ सकेंगे. दूसरी तरफ़ भाजपा इस फिर परिवार और परिवारवाद कह प्रचारित करेगी. 


गोया भाजपा परिवारवाद से अछूती पार्टी है . डिम्पल यादव  को समाजवादी पार्टी प्रत्याशी  बनाए जाने पर तमाम बडे भाजपा नेताओ ने प्रतिक्रिया में परिवारवाद का ही आरोप लगाया है. अब इसे बिडम्बना कहा जाए या पाखंड  हाल ही में गोला उपचुनाव में अपने स्वर्गीय विधायक  अरविंद गिरि के पुत्र अमन गिरि को टिकट देने वाली पार्टी ने प्रदेश में होने जा रहे एक लोकसभा और दो विधान सभा उपचुनाव के लिए  दिए गये तीनों टिकट परिवारवाद के दायरे में है .मैनपुरी से चुनाव लड रहे रघुराज सिंह यद्यपि आयातित परिवारवाद में गिने जायेगे क्योकि उनके पिता राम सिंह शाक्य सपा के टिकट पर एम पी रहे है और रामपुर विधान सभा से भाजपा ने आकाश सक्सैना सुपुत्र श्री शिव बहादुर सक्सैना पूर्व मंत्री को टिकट से नवाजा है तो खतौली विधान सभा से श्रीमती राजकुमारी सैनी  पूर्व विधायक श्री विक्रम सैनी की पत्नी को प्रत्याशी बनाया है. हो सकता है इन्हे परिवारवाद की बजह से नही बल्कि दोनों को अमेरिका की आजादी के संघर्ष में अहम योगदान को ध्यान में रखकर चयनित किया गया हो . जैसे पूर्व में भी रविशंकर प्रसाद, किरण रिजज़ू, पीयूष गोयल , निर्मला सीतारमन ,जयंत सिन्हा , राव इंद्रजीत सिंह अनुप्रिया पटेल ज्योतिरादित्य सिंधिया , अनुराग ठाकुर विजय बहुगुणा, रीता बहुगुणा , योगी आदित्यनाथ , वसुंधरा राजे सिंधिया ,यशोधरा राजे सिंधिया ,ज्योतिरादित्य दुष्यंत सि, बसवराव बोम्मई , पंकजा व प्रीतम मुंडे ,पूनम महाजन, राजवीर सिंह, संदीप सिंह ,पंकज सिंह ,आशुतोष उर्फ़ गोपाल टंडन अनादि अनादि अनंत को बंग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष में मोदी जी के साथ जेल जाने के लिए चुना गया है और वरुण गांधी , श्रीमति मेनका गांधी , ज्योतिरादित्य सिंधिया और अपर्णा यादव ..........आदि को सपा काग्रेस का परिवारवाद खत्म करने के लिए आयातित किया गया है .


यद्यपि  आज अखिलेश यादव और  सपा पर  लगने वाले परिवारवाद या जातिवाद के आरोप  नये नही है नेता जी मुलायम सिंह यादव पर उम्र भर परिवारवाद और यादववाद का आरोप रहा अलग बात है कि उनकी पार्टी में उनके बाद 10 नम्बर तक हैसियत रखने वाला कोई यादव नेता नही था - पहले दस  नम्बर तक की हैसियत बृज भूषण तिवारी , जनेश्वर मिश्र, बेनी प्रसाद वर्मा, आजम खान, राम शरण दास , कपिलदेव सिंह, मोहन सिंह, अमर सिंह, रेवती रमण सिंह और राज बब्बर जैसे नेताओ की थी तो ग्यारहवें नम्बर पर रमा शंकर कोशिश आदि कई गैर यादव नेताओ को गिना जा सकता है. आज भी सपा में अखिलेश के ऊपर  नो रत्नों की बात मानने का आरोप  लगाने वालो से रत्नों के नाम पूछे जाये तो  उसमें एक के अलावा सभी गैर यादव ही है और स्वामी प्रसाद मौर्य, राम अचल राजभर , लाल जी वर्मा,  इन्द्र जीत सरोज , मिठाई लाल भारती , आजम खान......जैसे अन्य कद्दावर गैर यादव नेता है . 


मुलायम सिंह यादव ने अपने सुरक्षा अधिकारी सत्य पाल सिंह बघेल को 1998 में टिकट देकर जब  सदन भेजा तब तक बघेल/ गडरिया जाति से किस पार्टी ने किसे सदन भेजा था ये गडरिया कोम और पिछड़ो के सोचने का विषय है . वही बघेल साहब भाजपा के हारमोनियम पर संगत कर रहे है और सपा अखिलेश के खिलाफ चुनाव लड पिछड़ो को हक दिला रहे है .


1996 में इटावा से राम सिंह शाक्य को संसद भेजा . फिर उनके काबिल सुपुत्र रघुराज सिंह शाक्य को संसद व विधान सभा भेजा . 1996 के पहले कितने शाक्य सांसद हुए ये शाक्य मौर्य जानते है . आज रघुराज सिंह मुलायम का शिष्य बता भाजपा से पिछड़ो की लड़ाई लगेगें. पाल, केवट, प्रजापति .....जैसी कई जातिया है जिन्हे पहली बार मुलायम सिंह जी ने आगे बढ़ने की कोशिश की  तो काशीराम जैसे  दलित चिंतक आन्दोलनकारी को पहली बार लोकसभा सदस्य चुनवा कर दलित आन्दोलनको मजबूत किया . मगर  दलित पिछड़ो की एकता को तोड़ने के लिए सवर्ण मीडिया के सहयोग से भाजपा  सपा को यादवों की पार्टी सिद्ध करने में  काफी हद तक  कामयाब रही है 


मैनपुरी चुनाव सपा भाजपा  के अलावा दलित -पिछड़ो  की चेतना का परीक्षण भी होने जा रहा है. ईडब्ल्यूएस पर  कोर्ट के हालिया निर्णय और दलित पिछड़ो  के आरक्षण से लगातार हो रही खिलवाड के बीच पिछडे अपने हकों के प्रति जागरूकता दिलाएंगे या अभी भी  दुष्यंत कुमार जी की तरह  कल तक का इंतजार कर कहना होगा-


मेले में भटके होते तो कोई घर पहुंचा जाता 

हम घर में भटके है कैसे ठोर ठिकानों आयेगे 


हम क्या बोलें इस आंधी में कई धरौंदे टूट गये

इन असफ़ल निर्मितियों के शव कल पहचानें जाएगे .

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